भारतीय जनता पार्टी के दो पुरोधा अडवाणी और जसवंत (जिन में से एक निकाले जा चुके हैं) जिन्ना को सेकुलर कह चुके हैं, तो कोई तो वजह होगी। नेहरू पर उंगली उठाने से नेहरू की सेहत पर क्या फर्क पड़ेगा? उन पर पहले भी बहुत उंगलियाँ उठती रही हैं, और उठती रहेंगी। यह एक खास राजनीति की जरूरत भी है। फिर यह भी है कि गलतियाँ किस से नहीं हुई? कौन घुड़सवार है जो घोड़े से नहीं गिरा? मशहूर उक्ति है कि 'गिरता है शह सवार ही मैदाने जंग में'। जो मैदाने जंग में ही नहीं हो वही नहीं गिरेगा। बाद में लड़ने वालों पर उंगलियाँ भी वही उठाता है।
गलती तो बहुत बड़ी भारतीय साम्यवादियों से भी हुई थी। वे अपने ही दर्शन को ठीक से नहीं समझ कर मनोवाद के शिकार हुए थे। सोवियत संघ और मित्र देशों का पक्ष ले कर अंग्रेजों के विरुद्ध स्वाधीनता संग्राम से अपने को अलग कर लेने की गलती के लिए उसी सोवियत संघ के और विश्व साम्यवाद के सब से बड़े नेता स्टॉलिन ने भी उन्हें गलत ठहराया था। उस के बाद भी उन्हों ने कम गलतियाँ नहीं की हैं। कभी वामपंथी उग्रवाद के बचकानेपन के और कभी दक्षिणपंथी अवसरवाद के शिकार होते रहे हैं और आज तक हो रहे हैं।
लेकिन आज जसवंत ने मुर्दे को कब्र से निकाला है तो यह आसानी से फिर से दफ़्न नहीं होने वाला। नेहरू के साथ पटेल पर भी उंगली उठी और पटेल को अपना आदर्श मानने वाले गुजरात में जसवंत की पुस्तक प्रतिबंधित कर दी गई। चाहे वे नेहरू हों, या फिर पटेल, या फिर कथित सेकुलर जिन्ना, इन के राष्ट्र प्रेम पर उंगली उठाना इतना आसान तो नहीं है। गलतियाँ तो ये सब कर सकते थे और उन्हों ने कहीं न कहीं की ही हैं। लेकिन आजादी के इन दीवानों से ये गलतियाँ क्यों हुई? इस समय में क्या इस की तह में जाना जरूरी नहीं हो गया है? मेरी समझ में तो इस बात की खोज और विश्लेषण होना चाहिए कि आखिर वे कौन सी परिस्थितियाँ थीं जिन के कारण इन तीनों से और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की प्रमुख धारा से ये गलतियाँ हुई कि जिन्ना उस मुख्य धारा से अलग हुए। देश बंट गया। यहाँ तक भी जाना प्रासंगिक और महत्वपूर्ण होगा कि उन परिस्थितियों को उत्पन्न होने देने के लिए जिम्मेदार शक्तियाँ कौन सी थीं? उन शक्तियों का क्या हुआ? वे शक्तियाँ आज कहाँ हैं? और क्या कर रही हैं?