दिल्ली में कोहरा है
वायुयान देरी से उड़ रहे हैं
या उड़ानें रद्द हैं
कहीं कहीं बरसात है
पीछे तेज हवा है
शीत लहर जारी है
अखबारों में लोगों के
सर्दी से मरने की खबरें हैं
यह कोई कविता नहीं, मौसम का जायजा भर है। आप यादवचंद्र जी से अवश्य परिचित होंगे यदि नहीं तो यहाँ इस ब्लाग पर यादवचंद्र वाली टैग को क्लिक कर देखें, आप उन्हें जानने लगेंगे। यहाँ उन की एक कविता प्रस्तुत है......
मरे ठंड से
- यादवचंद्र
सूरज - चांद - सितारे सारे अस्त आज दो हफ्तों से
मंगन - दाता - सेठ - मजूरे त्रस्त आज दो हफ्तों से
रिक्सा चला, न गाड़ी निकली पस्त आज दो हफ्तों से
सिर्फ शराबी - तस्कर - नेता व्यस्त आज दो हफ्तों से
जोर ठंड का ऐसा प्यारे
दूकानों से लकड़ी गायब
गाँव गाँव में जोर श्राद्ध का
कफन, दही, औ पगड़ी गायब
पाले के मारे खेतों से
आलू दलहन मसूरी गायब
पॉकिट कटी कमल साहु ने
हुई भूख से अंतड़ी गायब
अन्न - वस्त्र के बिना मरे, पर
रपट हो गई - मरे ठंड से
खैर, सभी दल मिल - जुल उन की
शोक - सभा कर रहे ढंग से
पारित कर प्रस्ताव शोक का
भाषण देंगे अंग - अंग से
भरे - पेट अखबार रहेंगे
फोटो - भाषण - ग़ज़ल - व्यंग से
बूढ़े, बच्चे नाक सुड़कते खाँस रहे दो हफ्तों से
कब दिन बदले, पंडित पतरा बाँच रहे दो हफ्तों से
कब ब्याहेगी गैया, दादी आँक रही दो हफ्तों से
गौने आई दुलहन सूरज झाँक रही दो हफ्तों से