आजादी की बासठवीं वर्षगाँठ है। गाँव-गाँव में समारोह हो रहे हैं। शायद वही गाँव ढाणी शेष रह जाएँ, जहाँ कोई स्कूल भी नहीं हो। अपेक्षा की जा सकती है कि जहाँ अन्य कोई सरकारी दफ्तर नहीं होगा वहाँ स्कूल तो होगा ही। नगरों में बड़े बड़े सरकारी आयोजन हो रहे हैं। सरकारी इमारतें रोशनी से जगमगा रही हैं। कल रात नगर के प्राचीन बाजार रामपुरा में था तो वहाँ सरकारी इमारत के साथ दो अन्य इमारतें भी जगमगा रही थीं। पूछने पर पता लगा कि ये दोनों जगमगाती इमारतें मंदिर हैं और जन्माष्टमी के कारण रोशन हैं। जन्माष्टमी को जनता मना रही है। आज नन्दोत्सव की धूम रहेगी। कृष्ण जन्म भारत में जनता का त्योहार है। इसे केवल हिन्दू ही नहीं मना रहे होते हैं। अन्य धर्मावलम्बी और नास्तिक कहे-कहलाए जाने वाले लोग भी इस त्योहार में किसी न किसी रुप में जुटे हैं। जन्माष्टमी को कोई सरकारी समर्थन प्राप्त नहीं है। क्यों है? इन दोनों में इतना फर्क कि हजारों साल पुराने कृष्ण से जनता को इतना नेह है। आजादी की वर्षगाँठ से वह इतना निकट नहीं। वह केवल बासठ बरसों में एक औपचारिकता क्यों हो गया है?
कल दिन में मुझे एक पुराना गीत स्मरण हो आया। 1964 में जब मैं सातवीं कक्षा का विद्यार्थी था। हमारे विद्यालय ने इसी गीत पर एक नृत्य नाटिका प्रस्तुत की थी, जिस में मैं भी शामिल था। गीत के बोल आज भी विस्मृत नहीं हुए हैं। बहुत बाद में पता लगा कि यह गीत शील जी का था। इस गीत में आजादी के तुरंत बाद के जनता के सपने गाए गए थे। आप भी देखिए क्या थे वे सपने? ..........
आदमी का गीत
-शील
देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल।
नया संसार बसाएंगे, नया इन्सान बनाएंगे।।
सौ-सौ स्वर्ग उतर आएँगे,
सूरज सोना बरसाएँगे,
दूध-पूत के लिए पहिनकर
जीवन की जयमाल,
रोज़ त्यौहार मनाएंगे,
नया संसार बसाएंगे, नया इंसान बनाएंगे।
देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल।
नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे॥
सुख सपनों के सुर गूंजेंगे,
मानव की मेहनत पूजेंगे
नई चेतना, नए विचारों की
हम लिए मशाल,
समय को राह दिखाएंगे,
नया संसार बसाएंगे, नया इन्सान बनाएंगे
देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल।
नया संसार बसाएंगे, नया इन्सान बनाएंगे।
एक करेंगे मनुष्यता को,
सींचेंगे ममता-समता को,
नई पौध के लिए, बदल
देंगे तारों की चाल,
नया भूगोल बनाएँगे,
नया संसार बसाएंगे, नया इन्सान बनाएंगे
देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल।
नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे॥
इस गीत में शील जी के देखे सपने, जो इस देश का निर्माण करने वाली मेहनतकश किसान, मजदूर और आम जनता के सपने हैं, नवनिर्माण का उत्साह, उल्लास और उत्सव है। जनता कैसा भारत बनाना चाहती थी इस का ब्यौरा है। लेकिन विगत बासठ वर्षों में हमने कैसा भारत बनाया है? हम जानते हैं। वह हमारे सामने प्रत्यक्ष है। जनता के सपने टूट कर चकनाचूर हो चुके हैं। चूरा हुए सपने के कण तो अब मिट्टी में भी तलाश करने पर भी नहीं मिलेंगे।
क्या झूठी थी वह आजादी? और यदि सच भी थी, तो हमारे कर्णधारों ने उसे मिथ्य करने में कोई कोर-कसर न रक्खी थी। आज देश उसी मिथ्या या मिथ्या कर दी गई आजादी का जश्न मना रहा है। वह जश्न सरकारी है या फिर उस झूठ के असर में आए हुए लोग कुछ उत्साह दिखा रहे हैं। करोड़ों भारतीय दिलों में आजादी की 62वीं सालगिरह पर उत्साह क्यों नहीं है। इस की पड़ताल उन्हीं करोड़ों श्रमजीवियों को करनी होगी, जिन के सपने टूटे हैं। वे आज भी यह सपना देखते हैं। उन्हों ने सपने देखना नहीं छोड़ा है। इन सपनों के लिए, उन्हें साकार करने के लिए, एक नई आजादी हासिल करने के लिए एक लड़ाई और लड़नी होगी। लगता है यह लड़ाई आरंभ नहीं हुई। पर यह भ्रम है। लड़ाई तो सतत जारी है। बस फौजें बिखरी बिखरी हैं। उन्हें इकट्ठा होना है। इस जंग को जीतना है।
मिथ्या की जा चुकी आजादी की सालगिरह पर, हम मेहनतकश, अपने सपनों को साकार करने वाली एक नयी आजादी को हासिल करने के लिए इकट्ठे हों। ऐसी आजादी के लिए, जिस का सपना इस गीत में देखा गया है। जिस दिन हम इसे हासिल कर लेंगे। आजादी के जश्न में सारा भारत दिल से झूमेगा। भारत ही क्यों पूरी दुनिया झूम उठेगी।
आजादी के इस पर्व पर,
नयी और सच्ची आजादी के लिए शुभकामनाएँ!
14 टिप्पणियां:
दिनेश जी
मै यह तो नही मानता कि वह आजादी झूठी थी क्योंकि उपनिवेशवाद से मुक्ति निश्चित रूप से इतिहास का आगे बढा हुआ कदम था.लेनिन ने भी साम्राज्यवाद की सीमाओं के भीतर की राष्ट्रीय मुक्ति को मान्यता दी थी...हाँ यह ज़रूर है कि जंग अभी ख़त्म नही हुई .....इस देश के करोडो लोगों की मुक्ति की लड़ाई जारी है इस विशवास के साथ कि
वह सुबह कभी तो आयेगी...
आपका अनुज
अशोक कुमार पाण्डेय
रोज नये बैरेयर टूट रहे हैं। हमारा पड़ोसी चीन हमारे बारे में प्रचार कर रहा है कि उसे भारत से खतरा है। इतनी बड़ी गरीब जनसंख्या के साथ भी विकास सम्भव है - यह अपने आप में बड़ी उपलब्धि है।
हमें उसे हताशा में नकारना नहीं है।
शायद एक मायने मे आपका कथन सहमत होने लायक भी है कि क्या आजादी झूंठी थी? लेकिन शुरुआती सालों मे मौकापरस्त लोग अपनी स्वार्थ सिद्धि मे लगे हैं. मेरा ऐसा मानना है कि आजादी एक सतत प्रक्रिया है विकास की तरह. अभी परिपकवता ना तो जनता मे लगती है और ना लूटने वालों में. दोनो ही बाल अवस्था मे हैं. समय के साथ साथ ही सब होगा.
स्वतंत्रता दिवस की घणी रामराम.
रामराम
सच है कि चूरा हुए सपने के कण तो अब मिट्टी में भी तलाश करने पर भी नहीं मिलेंगे।
आजादी की कीमत हमसे ज्यादा वे लोग समझते होंगे जिन्होंने गुलामी को देखा था ,
आजकल तो बहुत सुनने को मिलता है कि पूरी आजादी नहीं मिली,
पर जितनी मिली वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं !
अशोक भाई से मुखातिब होते हुए कहूं तो झूठ और सच के बीच बहुत धुंधली लाइन है मित्र, जरा गौर से देखें।
आज गावत मन मेरो झूम के...
आज के दिन तो उत्सव मना लें। बाकी 364 दिन तो कोसने कासने, सपने देखने दिखाने और नए कदम बढ़ाने के हैं ही।
जय हिन्द
(1)बहुत कुछ बाकी है पर वह करना हमें ही है...इसके लिए बाहर से लोग नहीं बुलाए जाएंगे...
(2)अभी भी, वोट काबिलियत के बजाय सभी दूसरी वजहों से देने का रिवाज़ जारी है
सचमुच हताशा ही तो पसरी है चारो और
फिर भी इस अवसर पर बधाई !
द्विवेदी जी ..इसमें कोई शक नहीं की आज देश ने आजादी के बाद बहुत ही तेजी से तरक्की की ..मगर उससे ज्यादा दुखद ये रहा की उतनी ही तेज़ गति ..उन मूल्यों, उन सपनो , उन उद्देश्यों ...की तिलांजलि दे दी गयी...जो आजादी की जंग लड़ने वालों ने देखा था ..
परिस्थितियाँ बदल पाएंगी....बहुत ही कठिन लगता है ....
haan theek kahaa aapne magar....phir bhi.....
क्या हुआ जो मुहँ में घास है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो चोरों के सर पर ताज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो गरीबों के हिस्से में कोढ़ ओर खाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो अब हमें देशद्रोहियों पर नाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो सोने के दामों में बिक रहा अनाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो आधे देश में आतंकवादियों का राज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या जो कदम-कदम पे स्त्री की लुट रही लाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो हर आम आदमी हो रहा बर्बाद है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो हर शासन से सारी जनता नाराज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
क्या हुआ जो देश के अंजाम का बहुत बुरा आगाज है
अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
इस लोकतंत्र में हर तरफ से आ रही गालियों की आवाज़ है
बस इसी तरह से मेरा यह देश आजाद है....!!!!
इसी प्रसंग में।
कल आज़ादी की पहली रात के फोटोग्राफ्स देखने को मिले।
बग्घीयों और कारों में अंग्रेज।
सफ़ेद कपडों में कुछ टोपीधारी।
और धोती साफ़े की भीड़ जो अट नहीं पा रही थी।
अंग्रेज गये।
बग्घियों और कारों में टोपीधारियों ने जगह संभाल ली।
और भीड वहीं हैं।
आज़ादी मुबारक?
कम-अज़-कम हम भरे पेटों को तो है ही।
THERE IS DIFFERENCE BETWEEN FACT AND FICTION:)
हम जो झेल रहे हैं वो हकीकत है और हम जो आज़ादी का सपना संजोये थे वो फ़िक्शन है:)
शील जी की अनमोल कविता फिर से याद कराने का शुक्रिया साहेब...
आज़ादी तो सच्ची ही है मगर उसका मोल भूल गए हैं हम...
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