@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: जगत का विकास, प्रलय और पुनः जगत का विकास

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

जगत का विकास, प्रलय और पुनः जगत का विकास

साँख्य कारिका के पुरुष केवल अनुमान हैं। ईश्वर कृष्ण कहते हैं कि ये सब प्रकृति के तत्व हैं वे सब उपभोग के लिए हैं इस कारण भोक्ता जरूरी है। इसी से पुरुषों की सिद्धि होती है। इस से कमजोर प्रमाण पुरुषों की सिद्धि के लिए दिया जाना संभव नहीं है।  लेकिन साँख्य की जगत व्याख्या की जो विधि है उस में पुरुष किसी भी तरह से प्रासंगिक नहीं होने से कोई मजबूत साक्ष्य मिलना संभव नहीं था। यह साक्ष्य भी चेतन पुरुष को सिद्ध नहीं कर सका और साँख्य प्रणाली के अनुसार उसे एक से अनेक होना पड़ा, कारिकाकार को कहना पड़ा कि प्रत्येक शरीर के लिए एक अलग पुरुष है और बहुत से पुरुष हैं।  इन प्रमाणों से प्रतीत होता है कि पुरुष की उत्पत्ति शरीर से है। कुल मिला कर पुरुष प्रत्येक शरीर का गुण बन कर रह जाता है। वह शरीर के साथ अस्तित्व में आता है और मृत्यु के साथ ही उस की मुक्ति हो जाती है।  हम कारिका और उस के बाद के साँख्य ग्रन्थों में पुरुष की उपस्थिति पाते हैं। लेकिन सभी तरह के तर्क देने के उपरांत भी साँख्य पद्धति में पुरुष एक आयातित तत्व ही बना रहता है।
मेरा अपना मानना है कि साँख्य पद्धति ने उस काल में अपनी विवेचना से जगत की जो व्याख्या की थी वह सर्वाधिक तर्कपूर्ण थी,  उसे झुठलाया जाना संभव ही नहीं था।  इस कारण से प्रच्छन्न वेदांतियों ने सांख्य में पुरुष की अवधारणा को प्रवेश दिया और उसे एक भाववादी दर्शन घोषित करने के अपने उद्देश्य की पूर्ति की। कुछ भी हो, इस से साँख्य पद्धति का हित ही हुआ।  यदि यह भाववादी षडदर्शनों में सम्मिलित न होता तो इस की जानकारी और भी न्यून रह जाती।  फिर इस की केवल आलोचना ही देखने को मिलती।  प्रधान (मूल प्रकृति) को अव्यक्त कहा गया है। इस अव्यक्त के साथ एक और अव्यक्त माना जाना संभव नहीं है।  इस मूल प्रकृति से ही जगत का विकास होना तार्किक तरीके से समझाया गया है।  विकास के पूर्व की अवस्था को प्रलय की अवस्था कहा गया है जब केवल अव्यक्त प्रकृति होती है और उस के तीनों अवयवों के साम्य के कारण उस में आंतरिक गति होने पर भी वह अचेतन प्रतीत होती है।  सांख्य इसी तरह यह भी मानता है कि जगत का विकास तो होता ही है,  लेकिन उस का संकुचन भी होता है और यह जगत पुनः एक बार वापस प्रलय की अवस्था में आ जाता है और त्रिगुण साम्य की अवस्था हो जाने से संपूर्ण जगत पुनः प्रधान में परिवर्तित हो जाता है। 
साँख्य की यह व्यवस्था केवल बिग बैंग जैसी नहीं है  जिस में बिग बैंग के उपरांत यह जगत लगातार विस्तार पा रहा है और उस का सम्पूर्ण पदार्थ एक दूसरे से दूर भाग रहा है।  आज वैज्ञानिकों ने श्याम विवरों (ब्लेक होल) की खोज कर ली है। इन श्याम विवरों में पदार्थ की गति इस सिद्धांत के विपरीत है। अर्थात इन की सीमा में कोई भी पदार्थ इन से दूर नहीं जा सकता यहाँ तक कि प्रकाश की एक किरण तक भी नहीं। हमारी नीहारिका के केंद्र में भी एक ऐसे ही ब्लेक होल की उपस्थिति देखी गई है। श्याम विवर जगत के संकुचन के सिद्धांत की पुष्टि करते है। साँख्य के इस सिद्धांत की  कि जगत पुनः प्रधान में परिवर्तित हो जाता है विज्ञान की नयी खोजें पुष्टि कर रही हैं।  प्रधान की अचेतन अवस्था को  ही साँख्य  में प्रलय की संज्ञा दी गई है और प्रधान से पुनः नए जगत के विकास की अवधारणा प्रस्तुत की गई है।

15 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

जबरदस्त चित्रों के साथ जोरदार विवेचन !

Arvind Mishra ने कहा…

जबरदस्त चित्रों के साथ जोरदार विवेचन !

Udan Tashtari ने कहा…

वाह!! ऐसा उम्दा आलेख...गजब!! आभार!!

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण ने कहा…

बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक लेखमाला है यह। हमारी दार्शनिक परंपरा के वैभव को स्पष्ट करनेवाली लेख माला। आश्चर्य इस बात का होता है कि वे पुराने दार्शनिक इतने हजार साल पहले केवल कोरी आंखों से अंतरिक्ष का निरीक्षण करके कैसे कृष्ण विवर जैसे खगोलीय चीजों का अनुमान लगा सके, जिन्हें स्वयं आधुनिक विज्ञान अपने उन्नत प्रेक्षण उपकरणों (जैसे हबल दूरबीन) की मदद अभी हाल ही में खोज पाया है।

Himanshu Pandey ने कहा…

गम्भीर और महत्वपूर्ण विषय पर गम्भीर और महत्वपूर्ण आलेख श्रृंखला चल रही है यह । दिल-दिमाग लगाकर पढ़्ते हैं इसे । आभार ।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

वहुत सुंदर तरीके से वैज्ञानिक दृष्टिकोण को सम्मिलित करते हुये यह श्रंखला रोचकता और उत्सुकता पुर्वक आगे बढ रही है. शुभकामनाएं.

रामराम.

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत सुन्दर और ग्यानवर्धक आलेख है जिसे आज तक भी कई पुस्तकें पढने पर भी समझा नहीं जा सका ापने इतने सरल भाव से समझा दिया आभार्

Science Bloggers Association ने कहा…

Rochak prastuti.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

जोरदार। समग्र को एक साथ पढ़ें तो पल्ले पड़े।

Ashok Kumar pandey ने कहा…

अब और रोचक होता जा रहा है आलेख्।
आज आपके प्रदेश से लौटकर पढा…

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

ज़माने का दस्तूर है ये पुराना
मिटा कर बनाना बना कर मिटाना.....:)

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

बहुत ही सुन्दर लेख ! भारतीय दर्शन की कई गुत्थियों को सुलझाती हुई एक और सुन्दर कडी ! आभार !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

विद्वतापूर्ण आलेख आखिरकार सांख्य और साइंस का आपसी संबंध भूत भविष्य और वर्तमान ,
विगत और आगत का मेल और ब्लैक होल जैसे दुरूह विवरों पर भी आपने अच्छा प्रकाश डाला है

Yogi ने कहा…

सच बताऊ तो अंग्रेजी medium में पढ़े होने के करण मुझे तो लगभग सभी मुश्किल समझ नहीं आये... सिवाए एक श्याम विवर (black hole) को छोड़ कर...

मुझे अच्छा लगेगा अगर आप सभी scientific words का english translation भी साथ में पोस्ट करेंगे.

धन्यवाद !!!

Yogi ने कहा…

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