'गीत'
बीच में ये जवानी कहाँ आ गई ...
- पुरुषोत्तम ‘यक़ीन’
रोज़ मिलते थे हम
साथ रहते थे हम
बीच में ये जवानी कहाँ आ गई ....
बात करते थे
घुट-घुट के पहरों कभी
ये बला कौन-सी दर्मियाँ आ गई .....
दिन वो गुड़ियों के, वो बेतकल्लुफ़ जहाँ
मिलना खुल के वो और हँसना-गाना कहाँ
हाय बेफ़िक्र भोले ज़माने गए
इक झिझक बेक़दम, बेज़ुबाँ आ गई ...
ये बला कौन-सी दर्मियाँ आ गई .....
बस ज़रा बात पर कट्टी कर लेना फिर
चट्टी उँगली भिड़ा बाथ भर लेना फिर
रूठने के मनाने के दिन खो गए
सामने उम्र की हद अयाँ आ गई ...
ये बला कौन-सी दर्मियाँ आ गई .....
रोज़ मिलते थे हम
साथ रहते थे हम
बीच में ये जवानी कहाँ आ गई .....
बात करते थे
घुट-घुट के पहरों कभी
ये बला कौन-सी दर्मियाँ आ गई .....
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13 टिप्पणियां:
पुरुषोत्तम यकीन जी को बधाई और आपका आभार. वाकई बेहद मासूम गीत है. मुखडा बहुत जानदार है.
ये बला कौन दरमियाँ आ गयी -आज की बोली में कहें तो कमीनी जवानी ! हा हा !
बेहतरीन रचना !
वास्तव में ये जवानी कमबख्त कब आ कर
काम बिगाड़ देती है पता ही नहीं चलता और शर्मो- हया के कारण बात हो नहीं पाती
बहुत आभार इतनी अच्छी गजल व अच्छे फनकार से परिचय करने के लिए सुबह सुबह ही मूड फ्रेश कर दिया आपकी प्रस्तुति ने
वाह बहुत लाजवाब.
रामराम.
बहुत ही सुंदर और प्यारा गीत है! बहुत बढ़िया लगा!
रूठने के मनाने के दिन खो गए
सामने उम्र की हद अयाँ आ गई ...
ये बला कौन-सी दर्मियाँ आ गई .....
अतीत के सुंदर पलों की ओर जाती हुई..
लाज़वाब रचना!!!
बचपन के दिन भी क्या दिन थे ...इतनी सरल इतनी ख़ुशी देता ये गीत सचमुच मन को भा गया बिलकुल वैसा ही जैसे झूट से भरे इस माहौल में सलोना सा सच बतिया रहा हो ....लेखक को बधाई ..आपको ज्यादा प्रस्तुत करने हेतु
मासूम गीत!! गीत में ये मासूमियत कहाँ से आ गई:)
मासूम सा गीत…
बस ज़रा बात पर कट्टी कर लेना फिर
चट्टी उँगली भिड़ा बाथ भर लेना फिर
बहुत बढ़िया चयन है आपका। उम्र के गुज़रते सालों के साथ ये अनुभूतियां कुछ अलग ही असर पैदा करती हैं...
हाय बेफ़िक्र भोले ज़माने गए
इक झिझक बेक़दम, बेज़ुबाँ आ गई ...
ये बला कौन-सी दर्मियाँ आ गई .....
बहौत सुन्दर गीत है येकीन जी को बहुत बहुत बधाई
kyaa baat kah dee aapne....bahut acchhi...lajawaab...sach....!!
बचपन बीता, जवानी आयी तो कुछ छूटने के साथ बहुत कुछ मिला भी। प्यार, इश्क, मोहब्बत, पुरुषार्थ, जिम्मेदारी, काबिलियत, ताकत, सामर्थ्य, ज्ञान-विज्ञान आदि। तकलीफ़ तो तब होगी जब बुढ़ापा आएगा और यह सब भी जाता रहेगा।
बहुत सुन्दर गीत पढ़वाया आपने। गीतकार और प्रस्तोता दोनो को बधाई और शुक्रिया।
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