@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: 'मेरी हत्या न करो माँ' कविता -यादवचंद्र पाण्डेय

सोमवार, 6 जुलाई 2009

'मेरी हत्या न करो माँ' कविता -यादवचंद्र पाण्डेय

बाबा नागार्जुन के संगी-साथी यादवचंद्र पाण्डेय विकट रंगकर्मी, साहित्यका, शिक्षक और संगठन कर्ता थे। जनआंदोलनों में उन की सक्रिय भागीदारी हुआ करती थी इसी कारण अनेक बार जेल यात्राएँ कीं। सम्मानों और पुरस्कारों से सदैव दूर सदैव श्रमजीवी जनगण के बीच उन्हीं के स्तर पर घुल-मिल रहने की सादगीपूर्ण जीवन शैली को उन्हों ने अपनाया। वे विकल्प अखिल भारतीय जन-सांस्कृतिक-सामाजिक मोर्चा के संस्थापक अध्यक्ष थे। उन का प्रबंध काव्य 'परंपरा और विद्रोह' आपातकाल में प्रकाशित हुआ। एक उपन्यास 'एक किस्त पराजय' 1975 में, नाट्य रूपांतर 'प्रेमचंद रंगमंच पर' 1980 में, काव्य पुस्तिका 'संघर्ष के लिए' 2002 में, एक कविता संग्रह 'खौल रही फल्गू' 2006 में प्रकाशित हुए।  उन्हों ने भोजपुरी में नाटक, कविताएँ, विभिन्न विषयों पर लेख और व्यंग्य लिखे जो विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में मूल और छद्म नामों से प्रकाशित हुए। आज भी उनका बहुत सा साहित्य अप्रकाशित है। 15 फरवरी 2007 को उन का निधन हो गया।

मुझे उन से मिलने का सौभाग्य कोटा में दो बार मिला। एक बार वे अपना पूरा नाट्य-दल ले कर कोटा आए थे और 'समरथ को नहीं दोष गुसाईं' तथा 'कफन' नाटक प्रस्तुत किए। कफन में वे स्वयं अभिनेता थे। जितना डूब कर उनका अभिनय देखा वैसा मैं ने कुछ ही अभिनेताओं का देखा है।  यहाँ उन की एक कविता कन्या भ्रूण हत्या पर प्रस्तुत है। जो न केवल अपने कथन में श्रेष्ठ है, अपितु शिल्प की दृष्टि से नए कवियों को सीखने को बहुत कुछ देती है ......

मेरी हत्या न करो माँ
  • यादवचंद्र

महाप्राण जगत-गुरू
शंकराचार्य जी
क्यों कहा आप ने 
'माता कुमाता न भवति'?

अरे पूंजीवाद में खूब भवति
और मिडिल क्लासे तो 
थोक भाव में भवति
भ्रूण मध्ये पलित बालिका
कान लगाकर सुनो
कि क्या कहती आचार्य जी!


" माँ
मेरी हत्या न करो माँ 
मैं तेरा ही अंश हूँ माँ 
मैं तेरा ही वंश हूँ माँ
एक बार, सिर्फ एक बार
मुझे कलेजे से लगा लो
पिताजी को समझा दो माँ 
पिताजी को मना लो माँ
एक बार मुहँ देख लूंगी
फिर मुझे चाकू लगा देना
नमक या ज़हर चटा देना
डस्टबिन में फेंक देना
या कुत्तों को खिला देना
पर मुझे डॉक्टर के हवाले 
न करो माँ न करो..न करो..."


" तेरा भला होगा डॉक्टर
एक बार तो झूठ बोल 
एक बार तो मुहँ खोल
कि गर्भस्थ शिशु बेटी नहीं
वह बेटा है! बेटा है
मेरी जान बच जाएगी डॉक्टर
सारे देश की बेटियाँ 
तेरे पाँव पड़ती हैं
तेरी मिन्नतें करती हैं डॉक्टर
तेरे हाथ जोड़ती हूँ डॉक्टर 
पिताजी की फीस लौटा दे
लौटा दे डॉक्टर, लौटा दे 
लौटा दे....."

"तेरा चौका-बर्तन
झाड़ा-बुहारी 
चूल्हा-चक्की सब संभाल दूंगी
तेर पोते की धाय बन कर 
अपनी सारी जिन्दगी गुजार लूंगी
सिर्फ एक बार पिताजी को 
भर आँख दिखला दे डॉक्टर 
कि बाप कहलाने वाले की 
अरे शक्ल कैसी होती है
उस की नस्ल कैसी होती है
बस, एक बार दिखा दे .. एक 
बार....."

मैं एक लाचार चीख हूँ 
तुमसे भीख मांगती हूँ डॉक्टर
कि पिताश्री के आने के पर
अपना चाकू उन्हें थमा देना
और कहना-
कि मैं भी 
जिंदगी से जुड़ना चाहती थी
मैं भी गरुड़ की तरह 
तूफान में उड़ना चाहती थी
अपनी साठ करोड़ बहनों को 
बाघिन, शेरनी बनाना चाहती थी
और सारी दरिंदगी,  हैवानियत को 
इक बारगी ग्रस जाना चाहती थी
शोषण के तमाम ठिकानों पर
बदन से बम बांधकर 
निर्व्याज बरस जाना 
चाहती थी ... एक छत्र ...

मैं ने सिंदूर जैसा लाल 
अपना वतन बनाना चाहा था
जाँबाज बेटियों का
बारूदी लहू
और सेतु हिमालय
बिछाना चाहा था
ताकि दुनिया का एक भी 
कत्लगाह सबूत बच न पाए
और मातृत्व का गला घोंटने 
कोई भी यहाँ 
न आए ... न आए.........।


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21 टिप्‍पणियां:

Ashok Pandey ने कहा…

गजब की कविता है। चेतना को पूरी तरह झकझोर देती है। यह कहते हुए शर्मिंदगी महसूस हो रही है कि इस तरह की यथार्थवादी कविता के रचनाकार को हम जानते तक न थे। आपसे निवेदन है कि बाबा यादवचन्‍द्र पाण्‍डेय की कुछ और रचनाएं पढ़वाएं... आज की कलम तो सिर्फ पद, पैसा और पुरस्‍कार की ओर भागती है।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

संस्मरण व सुंदर कवित-प्रस्तुती हेतु आभार.

निर्मला कपिला ने कहा…

श्री यादव चँद्र पाँडेय जी को मेरी नमन श्रधाँजली और इस मार्मिक कविता ने आँखों को नम कर दिया आभार्

बालसुब्रमण्यम लक्ष्मीनारायण ने कहा…

बहुत ही मार्मिक। इस कविता की कापी निकालकर सब गाइनेकोलोजिस्टों के नोटिस बोर्ड पर लगा देना चाहिए।

क्या इनकी रचनाओं का संकलन निकला है? नागार्जुन की रचानाओं का संकलन राजकमल प्रकाशन ने निकाला है, जिसे मैंने हाल में खरीदा है।

यदि नहीं, तो किसी को ज्लद इस दिशा में प्रवृत्त होना चाहिए, वरना बहुत सारी रचनाएं खो जाएंगी।

संदीप ने कहा…

जिंदगी से जुड़ना चाहती थी
मैं भी गरुड़ की तरह
तूफान में उड़ना चाहती थी


__ये पंक्तियां वाकई दिल को छू गईं।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

बहुत ही सुंदर .

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

द्विवेदी जी!
बढ़िया पोस्ट लगाने के लिए आपका आभार।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

श्री यादव चँद्र पाँडेय जी को सादर नमन. बेहद मार्मिक पोस्ट. शुभकामनाएं.

रामराम.

Vinay ने कहा…

बहुत सुन्दर

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चर्चा । Discuss INDIA

राज भाटिय़ा ने कहा…

पता नही वो केसे मां बाप है जो ऎसा करते है, क्यो करते है,...
आप की कविता पढ कर आंखो मै आंसू आ गये, ्बहुत सुंदर बाबा यादवचन्‍द्र पाण्‍डेय ओर आप का धन्यवाद

शेफाली पाण्डे ने कहा…

jhakjhorne valee rachna.....

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

निःशब्द हूँ।

Udan Tashtari ने कहा…

गज़ब!! अद्भुत!!

बहुत आभार इसे प्रस्तुत करने का.

संजीव गौतम ने कहा…

अन्दर तक हिलाकर रख दिया. आपको इस लेख और कविता के लिये बहुत-बहुत साधुवाद.

Ashok Kumar pandey ने कहा…

bhahi mere naam rashi pahle hi bahut kuch kah chuke hain

par maaf kiijiye yahan bhi bas kumata tak hi pahunch paye hain kubaap ki koi baat nahi?

yah bhi apne tarah ka poorvagrah hai.

जितेन्द़ भगत ने कहा…

इस कवि‍ता में बड़ी सहजता से भ्रूण-हत्‍या के दोषि‍यों को धि‍क्‍कारा गया है। धारा-प्रवाह पढ़ते हुए अच्‍छा लगा।

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

उद्वेलित और नतमस्तक...

Smart Indian ने कहा…

सच, इसे कहते हैं कविता, हिला के रख दिया!

बेनामी ने कहा…

सर जी

नमस्कार।

आपने "द फोटुगेलेरी" पर पधार कर मान बढाया शुक्रियाजी!

मैं ने सिंदूर जैसा लाल
अपना वतन बनाना चाहा था
जाँबाज बेटियों का
बारूदी लहू
और सेतु हिमालय
बिछाना चाहा था
ताकि दुनिया का एक भी
कत्लगाह सबूत बच न पाए
और मातृत्व का गला घोंटने
कोई भी यहाँ
न आए ... न आए.........।

आपकी कविता का मेने वाचन किया, बडी ही सुन्दर व अर्थ पुर्ण बात है इसम॥ आप जैसे प्रखर लेखक, वकील हिन्दी ब्लोग जगत के लिए गोरव की बात है।

आभार/शुभमगलसहीत

हे प्रभु यह तेरापन्थ

मुम्बई टाईगर

द फोटू गेलेरी

बेनामी ने कहा…

अन्दर तक झकझोर देने वाली रचना...

गौतम राजऋषि ने कहा…

uff!

बड़े दिनों बाद कोई ऐसी कविता पढ़ी है जो पूरे अस्तित्व को झकझोर गयी..