सांख्य का मूल वैदिक साहित्य, उपनिषदों से ही आरंभ हो जाता है। बौद्ध ग्रंथों में उस के उल्लेख से उस की प्राचीनता की पुष्टि होती है, उस पर ईसा के जन्म के पहले और बाद में बहुत कुछ लिखा गया और लगातार कुछ न कुछ लिखा जाता रहा है। जिस से यह स्पष्ट होता है कि यह एक प्रभावशाली चिंतन प्रणाली रही है और इस का विकास भी हुआ है। इस के आद्य दार्शनिक कपिल कहे जाते हैं। पिछले आलेख में इसे समझने के लिए जिस पद्यति का उल्लेख किया गया था। हम आज उसी से प्रारंभ करते हैं, अर्थात ब्रह्मसूत्र से। ब्रह्मसूत्र में वेदांत को सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है और इसी प्रयास में साँख्य दर्शन की जम कर आलोचना की गई है। ब्रह्मसूत्र एक ऐसी रचना है जिसे बिना भाष्य के समझा जाना संभव नहीं है। इसलिए हम उस के दो प्रमुख भाष्यों शंकर और रामानुज भाष्यों का सहारा लेते हैं।
दोनों ही भाष्यकार कहते हैं कि साँख्य जगत का कारण स्वतंत्र रूप से अचेतन प्रधान को मानता है और इस कारण से वह अवैदिक है। इस आलोचना से हम साँख्य के उस प्रारंभिक रूप का अनुमान कर सकते हैं जिस में प्रधान को अर्थात आद्य निष्क्रिय प्रकृति अथवा अव्यक्त प्रकृति को ही जगत का कारण बताया जाता है। यह निश्चित रूप से आज के पदार्थवाद के समान है, जिस में एक महाणु के रूप में उपस्थित पदार्थ में महाविस्फोट (बिग-बैंग) से आज के विश्व के विकास का सिद्धान्त सर्वाधिक मान्यता पाया हुआ है। महाविस्फोट के इसी सिद्धांत के अनुरूप साँख्य की मान्यता है कि प्रकृति से जगत का विकास हुआ है। प्रकृति के बारे में साँख्य की मान्यता है कि यह त्रिगुणयुक्त है, अर्थात तीन गुणों सत, रज और तम से युक्त है। ये तीनों गुण प्रकृति से अभिन्न हैं। ये अव्यक्त प्रकृति में भी सम अवस्था में मौजूद थे। तीनों गुण प्रकृति से अभिन्न हैं तथा प्रकृति के प्रत्येक अंश में विद्यमान रहते हैं।
साँख्य में कहीं 24, कहीं 25 और कहीं 26 तत्वों का उल्लेख है। हम चौबीस तत्वों का यहाँ उल्लेख करेंगे। अव्यक्त प्रकृति, आद्य प्रकृति या जिसे प्रधान कहा गया है वह प्रथम तत्व है। इस आद्य प्रकृति के तीन गुणों में प्रारंभिक अन्तर्क्रिया के कारण उन की समता भंग हो जाने के कारण विकास की प्रक्रिया आरंभ हुई और अन्य 23 तत्वों की उत्पत्ति हुई। सद्गुण की प्रधानता से दूसरा तत्व महत् उत्पन्न हुआ। महत् प्रकृति से उत्पन्न होने के कारण स्वयं पदार्थ का एक रूप है लेकिन सद्गुण की प्रधानता के कारण यह मानसिक और वैचारिक महत्ता रखता है जिसे बुद्धि कहा गया। बुद्धि मानव की सर्वोत्तम थाती है। इसी से मनुष्य निर्णय करने और वस्तुओं में भेद करने जैसी क्षमता रखता है। इसी से वह अनुभवों को संजोता है और निष्कर्ष पर पहुँचता है। इसी से वह स्वयं और पर में भेद करता है। रजोगुण की प्रधानता से तीसरे तत्व अहंकार की उत्पत्ति होना साँख्य मानता है। अहंकार से व्यक्ति अपने स्व की पहचान करता है और स्वयं को शेष प्रकृति से भिन्न समझ पाता है।
हम संक्षेप में इसे इस तरह समझ सकते हैं कि साँख्य सिद्धान्त के अनुसार आद्य अव्यक्त प्रकृति अथवा प्रधान के तीन गुणों में अंतर्क्रिया से उन में असमानता उत्पन्न हुई अथवा उन का साम्य भंग हुआ, जिस ने जगत के विकास को आरंभ किया। सद्गुण की प्रधानता से महत् अर्थात बुद्धि का और रजोगुण की प्रधानता से अहंकार का विकास हुआ।
आगे हम शेष 21 तत्वों और अंत में पच्चीसवें और छब्बीसवें तत्वों के बारे में जानेंगे।
14 टिप्पणियां:
संख्य को समझाने की आपकी कोशिश अच्छी है | पोस्ट के लिए धन्यवाद | संख्य थोडा गूढ़ है , ठीक से समझ मैं नहीं आता |
समझने में वक़्त लगेगा ...बुद्धि में अंहकार ...या ...बुद्धि का अंहकार ..!!
बहुत सुंदर श्रंखला. आगे का इंतजार रहएगा.
रामराम.
चलिए राहत हुयी -तत्व मीमांसा शुरू तो हुयी और टिप्पणियों का घटना भी ! पर फिकर नाट १०० पाठक के बराबर हमी हैं !
फिर से पढ़ना पड़ेगा आत्मसात करने..बहुत उम्दा पोस्ट!!
असंतुलन तो सदैव परेशानियाँ देता है ।
इस तत्व-मीमांसा का सजग पाठक हूँ - हमें भी दस-बीस पाठकों के बराबर मान ही लिया जाना चाहिये ।
यही तो है गूढ़ ज्ञान,बधाई लेखन के लिए.
ेक बार पढ कर सहेज ली है ये पोस्ट इसे कई बार पढना पडे्गा मगर जो कुछ समझ आया वो ग्यानवर्द्धक है बहुत बहुत धन्यवाद
जय हो!
वैदिक साहित्य के गूढ़ सांख्य दर्शन पर लिखा यह प्रभावशाली आलेख है।
बहुत ज्ञानवर्धक पोस्ट
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1. विज्ञान । HASH OUT SCIENCE
2. चाँद, बादल और शाम
3. तकनीक दृष्टा
काफी गूढ़ दर्शन है। जानकारी के लिए आभार।
बहुप्रतीक्षित श्रृंखला आखिरकार अवतरित हुई...
ाज स्य्बह उठते ही इसे दोबारा पढा और पूरी तरह समझ आ गया रोचक जानकारी है पहले ऐसे विश्य औपचारिक रूप से पढे बहुत बार लेकिन सब कुछ समझ नहीं आता था ये मेरा सौभाग्य है कि अपके ब्लाग से ऐसे विश्य समझने मे आसानी है धन्यवाद्
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