शोषण, दमन और उत्पीड़न से जन्मे विद्रोह का रंग कैसा हो सकता है? आप पचास रंगों का अनुमान लगा सकते हैं। लेकिन मेरा मत है कि वह श्याम के अतिरिक्त कुछ हो ही नहीं सकता। प्रकाश खा जाने वाला कैसे कोई भी रंग उपजा सकता है। शोषण, दमन और उत्पीड़न का स्रोत ही श्याम जन्मता है। यही श्याम उसे चुनौती देता है। इसी श्याम रंग कृष्ण भी हैं। उस के जन्मने के पहले ही घोषणा हो जाती है ....... ऐ! आतताई! तू अपनी ही सहोदरा को सताए है। अब ले, उसी की कोख से तेरी मृत्यु जन्म ले रही है।
प्रकाश निगलने वाले के पास दृष्टि नहीं होती। लेकिन आहट सुनने के लिए कान होते हैं, जिन में घंटियाँ बजने लगती हैं। उसे सब दिशाओं से नृत्य करती मृत्यु के घुंघरुओं की आवाज आती सुनाई देने लगती है। वह उस अंधे की तरह तलवार चलाने लगता है, जिसे सब ओर से खतरा है। दमन बढ़ता है। स्वयं को बचाने के लिए वह अपना हर दांव खेलने लगता है। वह एक-एक कर नवजातों को मारने लगता है। लेकिन अपनी मृत्यु को छू तक नहीं पाता। उस की मृत्यु जन्म लेती है, और उस के आस-पास ही पनपने लगती है।
कृष्ण जन्मता है, वंशी की धुन छेड़ता है तो कण-कण नृत्य करने लगता है। यह नृत्य जहाँ उन के लिए जीवन है, दमनकारी के लिए मृत्यु की आहट वह उसे नष्ट कर देना चाहता है। लेकिन वह नष्ट हो सकता है, भला? वह तो जैसे-जैसे तलवार चलती है विकसित होता है, युवा होता है। उस के विरुद्ध चला गया हर दाँव असफल हुआ जाता है। दमनकारी उसे नष्ट करना चाहता है, लेकिन निकट आने से भय लगता है। उस का संधान किया हर शस्त्र परास्त होता जाता है। यहाँ तक कि उस के तरकस में अब कोई दूर-मारक तीर बचता ही नहीं। अब आमने सामने के द्वंद्व युद्ध के अलावा कोई उपाय ही नहीं रहा। फिर भी वह खुद चल कर उस के नजदीक नहीं जाना चाहता। उसे आमंत्रित करता है। कृष्ण यही तो चाहता है। श्याम अपने सखाओं को साथ लिए पूरी अल्हड़ता के साथ चल देता है। द्वंद्व युद्ध के लिए। श्याम जानता है, दमन, शोषण और अत्याचार का अंत अब निकट है, उन के स्रोत ने अपनी मृत्यु को आमंत्रित किया है। वह यह भी जानता है कि वहाँ श्याम के स्वागत की तैयारियाँ कैसी हैं?
साक्षात काल बना चला आता है, कृष्ण। परकोटों और दुर्दांत रक्षकों से घिरा शत्रु, उस के हर पग से कांप उठता है। श्याम के जन्मने का कारण वही है, श्याम को उसने खुद ही बुलाया है। लेकिन उसे खुद तक नहीं पहुँचने देने की सारी योजनाएँ भी तैयार हैं। वह चाहता है कृष्ण की मृत्यु हो जाए और वह अमर। लेकिन यह संभव कहाँ। एक-एक कर हर अवरोध धराशाई होता है। वह सोच पाए कि अब कृष्ण को कैसे रोका जाए? कृष्ण उस की गर्दन तक आ पहुँचा।
अंत हुआ, शोषण, दमन और अत्याचार का, यह सब सोचते हैं। लेकिन कृष्ण नहीं। वह तो धरती पर अभी बहुत जीवित है। वह चल पड़ता है। आगे और आगे, वहाँ, जहाँ अभी बहुत सा शोषण, दमन और अत्याचार शेष है। पालक माता उस की प्रतीक्षा में है। प्रेम उस का बाट जोह रहा हैं। पर उसे कहाँ विश्राम इस सब के लिए। वह तो अब युद्ध भूमि में है। उसे तो अब किसी पार्थ का सारथी बनना है। उसे तो अभी घोषणा करनी है ..........
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत,
अभ्युत्थानमधर्मस्य स्वात्मानं सृजाम्यहम।।
कृष्ण जन्म के पर्व पर सभी को
हार्दिक शुभकामनाएँ!