मकान बीस साल पहले बनना आरंभ हुआ था। पहले दो कमरे, रसोई, स्टोर, बरांडा और टॉयलट बनाया गया। दस साल बाद उन में कुछ परिवर्तन कर के एक बड़ा हॉल, एक शयनकक्ष और एक टॉयलट और जोड़ दिया गया और एक कमरे के आकार में वृद्धि कर दी गई। पाँच साल बीते होंगे कि यह भी छोटा पड़ने लगा। साथ ही मकान की डिजाइन असुविधाजनक लगने लगी। आज की जरूरतों के मुताबिक उसे दुरुस्त करने में बहुत पैसा लगना था। इस लिए एक नया भूखंड खरीदने की योजना बनाई गई। भूखंड की तलाश जारी थी, पर इस पर मकान तभी बन सकता था जब पहले मकान को बेच दिया जाए। गृहस्वामी ने मकान बाजार में खड़ा कर दिया। उस के खरीददार पहले आ गए। समस्या यह थी कि इसे बेचने का सौदा कर दिया तो रहेंगे कहाँ? तब एक मित्र काम आए। उन का मकान नया बना था और वे खुद उस में साल भर बाद रहने जा रहे थे। गृहस्वामी ने मौके का इस्तेमाल किया और उस मकान में रहने आ गए और अपना मकान बेच दिया। कुछ ही दिनों में भूखंड भी खरीद लिया गया। अगले सप्ताह से गृहस्वामी उस पर निर्माण आरंभ कराने वाले हैं।
मित्र के मकान में आए हुए कुछ ही समय हुआ था कि गृहस्वामी को जयपुर जाना पड़ा। जिन के साथ जाना हुआ वे जयपुर की फीणी के शौकीन हैं, वह भी सांभर वाले की फीणी लाजवाब के। उन्हों ने एक किलो खरीदी तो गृहस्वामी भी आधा किलो खरीद लाए। रात को जब घऱ पहुँचे तो खूबसूरत गोल डब्बे में पैक फीणी गृहस्वामी ने अपनी गृहस्वामिनी को सौंप दी। गृहस्वामिनी ने दो दिन बाद ही उस पर चीनी की चाशनी चढ़ा कर उसे मीठी कर दिया। अब इस फीणी चढ़े डब्बे ने भोजन कक्ष में खुलते रसोई के द्वार के बाहर रखे रेफ्रीजरेटर के ऊपर अपना अड्डा जमा लिया। जब जी चाहे डब्बे में से निकाल कर एक फीणी प्लेट में रखो और उस का स्वाद लो। इस बीच जितने भी बालक मेहमान आए सभी ने उस फीणी का स्वाद लिया।
लेकिन फीणी के चक्कर में कोई और भी था। एक दिन सुबह गृहस्वामिनी उठी तो उस ने पाया कि डब्बे का ढक्कन उठा हुआ है। यानी फीणी किसी ने चुराई थी। अब घर में तो इस बीच गृहस्वामी और गृहस्वामिनी के अलावा कोई और तो आया नहीं था। गृहस्वामिनी ने तुरंत गृहस्वामी के थाने में रपट दर्ज कराई। गृहस्वामी को घरेलू मोर्चे पर एक तफ्तीश मिल गई। मौका-ए-वारदात और आस-पास का मुआयना किया गया। घर के सभी दरवाजे अंदर से बंद थे, चोर कहाँ से आया था इस का पता लगाना कठिन था, खिड़कियाँ आदि भी देख ली गईं। कोई सुराग लग ही नहीं रहा था। गृहस्वामी के अदालत जाने का वक्त हो चला था और वे अभी तक हजामत तक नहीं बना सके थे।
गृहस्वामी ने तफ्तीश को शाम तक के लिए मुल्तवी किया और तुरंत अपना हजामत का डब्बा संभाला। वाश बेसिन पर पहुँचे तो उन की निगाह उस से निकल कर नीचे जा रहे पाइप पर पड़ी। उस की जाली कुछ हटी हुई थी। पाइप निकाल कर देखा तो वह जाली के अंदर-अंदर कटा हुआ था। गृहस्वामी के भीतर का शरलक होम्स तुरंत जागृत हुआ और मामूली दिमागी कसरत से पता लग गया कि चोर कौन हो सकता है। चोर ने घर में प्रवेश का जो मार्ग बनाया था उसे बंद किया गया उसे तुरंत बंद किया गया। इस बड़े ऑपरेशन से निबटने के बाद ही गृहस्वामी हजामत का अभियान आरंभ कर पाए। हजामत आरंभ होने के पहले तक देख लिया गया था कि और तो कोई स्थान ऐसा नहीं कि चोर घर में प्रवेश कर सके। अब गृहस्वामिनी और गृहस्वामी निश्चिंत थे कि चोर से घर सुरक्षित हो चुका है। लेकिन उन का यह भ्रम दूसरे दिन सुबह ही टूट गया। दूसरे दिन सुबह जब गृहस्वामिनी सो कर उठी तो पाया कि फीणी के गोल डब्बे का ढक्कन फिर से उठा हुआ है।
पिछले दिन बंद किए गए चोर-मार्ग की जाँच की गई, वह स्थान सुरक्षित पाया गया। फिर से पूरे घर का निरीक्षण किया गया। कोई स्थान नहीं था जहाँ से चोर घर में घुस सके। शरलक होम्स ने अपना विचार दिया कि चोर घर छोड़ कर गया ही नहीं कहीं घर में ही छुपा हुआ है। फिर से घर की तलाशी आरंभ हो गई। पूरी तलाशी के बाद भी पता नहीं लग सका कि चोर आखिर छुपा कहाँ है? अब तो एक ही मार्ग था कि चोर को पकड़ने के लिए जाल बिछाया जाए। गृहस्वामिनी ने सुझाया कि दो बरस पहले जब पुराने घर में ऐसे ही चोर घुस आए तब एक जाल खरीदा गया था, क्यों न उस का उपयोग कर लिया जाए? गृहस्वामी को इस में क्या आपत्ति हो सकती थी। तुरंत सुझाव पर अमल किया गया। जाल में कुछ रोटियाँ रख दी गईं। रात को जाल के पास से आवाजें आने लगीं, तो गृहस्वामी और गृहस्वामिनी दोनों प्रसन्न हुए कि तरकीब काम कर गई, चोर पकड़ा गया।
सुबह उठ कर देखा तो जाल की दुर्दशा हो चुकी थी, रोटी गायब थी। लगता था चोर कुछ रुस्तमे हिन्द टाइप का था और जाल उस के लिए पर्याप्त नहीं था। रुस्तमे हिन्द इस सस्ती किस्म के हवालात में बंद होने को तैयार न थे इस लिए तय पाया कि उन के लिए नया, मजबूत और बड़े आकार का जाल लाया जाए। आखिर शाम को दोनों पति-पत्नी शॉपिंग के लिए निकले और पूरे सवा सौ रुपए खर्च कर नया जाल खरीद कर लाए। इस रात उस का उपयोग किया गया। पर सुबह फिर नतीजे के नाम सिफर था। जाल में रखी रोटियाँ बदस्तूर अपने स्थान पर मौजूद थीं। फीणी के डब्बे का ढक्कन रोज उठा हुआ मिलता था। अब गृहस्वामी पूरी तरह निराश हो चले थे। घर में आने जाने के सब मार्ग बंद हैं, आखिर चोर छुपा कहाँ है।
अगली रात को जब गृहस्वामिनी सो चुकी थी और गृहस्वामी सोने जा रहे थे तब अचानक शरलक होम्स के दिमाग की बत्ती जल उठी। समझ आ रहा था कि जब फीणी का डब्बा आसानी से उपलब्ध है तो इस गच्च माल को छोड़ कर कौन उल्लू का पट्ठा रोटी की और झाँकने वाला था। हमारे रुस्तमें हिन्द से तो ऐसी अपेक्षा करना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं। शरलक होम्स को अफसोस हो रहा था कि दिमाग की बत्ती इतनी देर से क्यूँ रोशन हुई? गृहस्वामी ने तुरंत सारी भोजन सामग्री भोजन कक्ष से हटा कर रसोई में बंद की और एक फीणी निकाल कर जाल में चारे की जगह लगा कर सोने चले गए।
अगली सुबह सफलता शरलक होम्स के कदम चूम रही थी। रुस्तमे हिंद जाल में चीख रहे थे। सांभर वाले की फीणी के शौक ने उन्हें हवालात में डाल ही दिया था। दिन भर उन्हें हवालात में बंद रखा गया। सजा तो उन्हें दी नहीं जा सकती थी। गृहस्वामिनी के संस्कार इस में बाधा उत्पन्न कर रहे थे। रुस्तमे हिन्द आखिर भगवान गणपति के वाहन का रिश्तेदार जो था। आखिर जिस तरह विपक्ष द्वारा पिकेटिंग करने पर गिरफ्तार कार्यकर्ताओं और नेताओं को कुछ देर किसी स्कूल आदि में बंद रख कर शाम को शहर से दूर छोड़ दिया जाता है गृहस्वामी रुस्तमे हिन्द को नहर के नजदीक छोड़ आए। जैसे ही उन्हें जाल से बाहर निकाला गया, उन्हों ने कुलांचे भरी और घास के मैदान में गायब हो गए।
दिवाली के लिए सफाई अभियान चला तो पता लगा कि रद्दी अखबारों के ढेर के पीछे रुस्तमे हिन्द जी ने अपना विश्राम कक्ष बनाया हुआ था और एक फीणी वहाँ ले जा कर संकटकाल के लिए सुरक्षित रखी गई थी। वैसे जितने दिन वे रहे रोज गोल डब्बे में सैंध लगाते रहे। कुछ भी हो रुस्तमे हिन्द गायब हो चुके थे। लेकिन कल रात फिर उन के दर्शन हुए वे खिड़की के परदे को सीढ़ी बना कर रोशनदान से बाहर जा रहे थे। गृहस्वामी और गृहस्वामिनी का चैन फिर भंग हो चुका है। आज फिर से उन्हों ने जाल रखा है। इस बार फीणी नहीं है, दिवाली पर देसी घी में तले गए शकरपारों ने उस का स्थान ले लिया है। सुबह की प्रतीक्षा है इस बार रुस्तमे हिन्द हवालात में तशरीफ लाते हैं या नहीं?