न लगें लोग जब साथ
तब खिसियाहट होती है
बिल्ली खंबा नोचती है।
जब पता लगता है
कि एक निरा मूर्ख
नौ बरस तक
उन का भगवान स्वरूप
एक-छत्र नेता बना रहा
तब यही बेहतर कि
भक्त-गण ऐसे भगवान से
पल्ला झाड़ लें
- दिनेशराय द्विवेदी
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11 टिप्पणियां:
सही कहा जी
राम राम
द्विवेदी जी, बहुत गहरी बात कह दी आपने।
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मिलिए तंत्र मंत्र वाले गुरूजी से।
भेदभाव करते हैं वे ही जिनकी पूजा कम है।
नौ वर्ष क्यों ?
`खुलने लगें जब राज'
बजने लगे सब साज़ :)
किसकी तरफ है इशारा
किस के ऊपर ये तीर है मारा..
सही वचन ....लगता है कहीं किसी से चोट खायी है ..
मैं उलझन में पड गया हूँ।
मुझे अच्छी तरह याद आ रहा है कि कल ही मैंने आपकी इस कविता पर टिप्पणी की थी किन्तु यहॉं टिप्पणियों में वह कहीं नजर नहीं आ रही।
गहराई लिये पंक्तियाँ।
सच्चाई !
कुछ गहरा राज़ है इस कविता मे। शुभकामनायें।
वाह द्विवेदी जी आपके भीतर का कवि जागने लगा है ..
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