कविता के अलावा
- शिवराम
नीरो बजा रहा रहा था वंशी
जब जल रही है पृथ्वी
हम लिख रहे हैं कविता
नीरो को संगीत पर कितना भरोसा था
क्या पता
हमें जरूर यक़ीन है
हमारी कविता पी जाएगी
सारा ताप
बचा लेगी
आदमी और आदमियत को
स्त्रियों और बच्चों को
फूलों और तितलियों को
नदी और झरनों को
बचा लेगी प्रेम
सभ्यता और संस्कृति
पर्यावरण और अंतःकरण
पृथ्वी को बचा लेगी
हमारी कविता
इसी उम्मीद में
हम प्रक्षेपास्त्र की तरह
दाग रहे हैं कविता
अंधेरे में अंधेरे के विरुद्ध
क्या हमारे तमाम कर्तव्यों का
विकल्प है कविता
हमारे समस्त दायित्वों की
इति श्री
नहीं, तो बताओ
और क्या कर रहे हो आजकल
कविता के अलावा ?
13 टिप्पणियां:
बहुत सही कहा है ...केवल लिखने से ही कुछ नहीं होगा ...अनुसरण भी करना चाहिए ...बहुत अच्छी रचना .
एकदम सही।
कविता के आदर्शों को जिया जाये, तो बने बात।
लिखने से भी हलचल होती है..
मैं तो कविता छोड़ सभी कुछ करने पर उतारू हूं इन दिनों !
कालजयी प्रश्न...
और क्या कर रहे हो आजकल
कविता के अलावा ?
...आदर्श लिखने से बेहतर है जीया जाय...लेकिन कुछ न करने से तो बेहतर है कुछ कहा जाय। कम से कम जीवित होने का एहसास तो कराती है कविता। वैसे ही जैसे ठहरे हुए पानी में फेंका हुआ एक कंकड़ तालाब को भर तो नहीं सकता लेकिन उठती हैं लहरें...
अच्छा लिखते हो मियाँ !!! आप यह बतलाईये कविता झूठी होती है या विज्ञानं .....? मेरी अध्यापिका कहती है के कविता झूठी होती है और विज्ञानं सत्य होता है |
क्या कविता और विज्ञान एक दुसरे के विपरीत हैं ??
दिल को छूती ही रचना है.... एक-एक बात सही है... लिखना भी करने जैसा ही है, लेकिन करना नहीं...
बहुत ही प्रेरक और सुन्दर कविता !
मेरी जो बात मैं नहीं कह पाता, कविता कह देती है, किसी और की कलम से।
यह होती है कविता।
कविता में भी तो हम अलख नहीं जगा रहे| लिख रहे हैं बस अपने टूटे हुए सपने.. थोपी गयी महत्वाकांक्षा...अपना ही अधूरा जीवन...
शिवराम जी की यह कविता ज़िन्दगी मे कविता की अहमियत को पूरी ताकत के साथ साबित करती है ।
एक आवश्यक सवाल सभी कवियों से। लेकिन खुद से भी कि मैं क्या कर रहा हूँ कविता के अलावा?
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