इन दिनों अपने आसपास लगातार कुछ ऐसा घटता रहा है कि ब्लाग लेखन की गति बाधित होती रही है। पिछले दस दिनों में एक दिन छोड़ कर शेष दिनों बरसात होती रही। मैं नगर के जिस क्षेत्र में रह रहा हूँ वहाँ की सड़क के किनारे पिछले दिनों ही सीवर लाइन के लिए पाइप डाले गए। निकली हुई मिट्टी वापस भर दी गई। लेकिन बहुत सी मिट्टी बाहर थी। बीच-बीच में जहाँ चैम्बर बनाए गए थे वहाँ मिट्टी का ढेर था। बरसात से सारी मिट्टी बह कर सड़क पर आ गई। पैदल चलना दूभर हो गया। मेरे घर के आगे की सड़क उसी मुख्य सड़क पर जहाँ मिलती है वहीं सीवर लाइन का पाइप डालने से जितनी सड़क टूटी वहाँ मिट्टी भर दी गई थी, लेकिन बरसात से बैठ गई और गड्ढा हो गया, उपर से चिकनी मिट्टी का कीचड़। वहाँ हो कर दुपहिया वाहन का निकलना तक दूभर हो गया। अब यदि कहीं जाना है तो अपनी कार में जाइए और उसी से वापस आ जाइए। यह सुविधा मेरे पास तो है लेकिन बाकी लोग? उन का आना-जाना कैसे हो रहा है? वे ही जानते हैं।
सप्ताह भर पहले सुबह-सुबह कार ने स्टार्ट होने से मना कर दिया। बेचारी क्या करती। यह संकेत वह पिछले दो माह में तीन-चार बार दे चुकी थी। धकियाया जाता तो चल पड़ती और एक-दो सप्ताह कोई शिकायत नहीं करती। मैं ने जिन्हें बताया उन्हों ने कहा कि बैटरी दिखाओ। मैं ने बैटरी वाले के यहाँ जो मेरा एक मुवक्किल भी है, बैटरी दिखाई, उस ने जाँच करवा कर बताया कि बैटरी बिलकुल ठीक है, इस का सेल्फ लोड ले रहा है आप उस की सर्विस कराइये। इस बीच समय नहीं मिला और सर्विस नहीं करवा पाया। वैसे कार की सर्विस का समय भी निकल चुका था। आखिर मैं ने कार को कुछ लोगों की मदद से धकिया कर चालू किया और उस के अस्पताल पहुँचा दिया। पास ही स्थित इस अस्पताल ने शाम को चमचमाती कार मेरे हवाले कर दी। कार एक सप्ताह शानदार चलती रही।फिर तीन दिन पहले एक शादी में गए, वहाँ से किसी को उन के घर छोड़ा, तो वहाँ कार ने फिर चालू होने से मना कर दिया। कार किसी तरह चालू कर हम घर ले आए। रात को बरसात आरंभ हो गई। और सुबह कार ने चालू होने से इन्कार कर दिया।
मैं ने कार को रिवर्स में अपने घर से उतारा और रिवर्स में उसे चालू करने का प्रयत्न किया। लेकिन उसने इस तरह चालू होने से मना कर दिया। समय ऐसा था कि कोई धकियाने वाला नहीं दिखाई दिया। एक सज्जन आए तो उन्हों ने कोशिश की पर कार को चालू नहीं होना था वह चालू नहीं हुई। बरसात ने सड़क को कीचड़ से भर दिया था। पैदल कार-अस्पताल तक जाना संभव नहीं था। अस्पताल का फोन नंबर भी नहीं मिल रहा था। सोचा बाइक से जाया जाए। पर मुझे बाइक का इतना अभ्यास नहीं कि कीचड़ वाली सड़क और गड्ढों में आत्मविश्वास से चला सकूँ। आखिर बहुत दिनों से धूल खा रहा अपना बीस साल पुराना साथी बजाज स्कूटर काम आया। उस की धूल साफ की गई। फिर उसे दायीं तरफ झुका कर सलामी दी गई। एक सलामी से काम न चला तो दूसरी सलामी दी, जिस के बाद एक किक में स्टार्ट हो गया।
कार अस्पताल में भीड़ थी। मैं ने प्रबंधक को बताया कि चार दिन पहले सर्विस के समय मैं ने बताया था कि गाड़ी सेल्फ यूनिट से स्टार्ट होने मना करती है इसे विशेष रूप से चैक कर लें। प्रबंधक कहने लगा, हमने चैक किया था और कार सामान्य रूप से चालू हो रही थी। हम ने उसे छेड़ना उचित नहीं समझा। अब मैं कुछ देर में मिस्त्री को फुरसत होते ही भेजता हूँ। वैसे भी आज तो सेल्फ यूनिट की सर्विस नहीं हो पाएगी। मैं परेशान, स्कूटर या बाइक से अदालत जाना कठिन था, बीच-बीच में बारिश हो रही थी। मैं घर आ कर मिस्त्री का इंतजार करता रहा। उसे न आना था, न आया। मैं ने आखिर महेन्द्र भाई (नेह) को शिकायत लगाई। वे कोटा के सब से बड़े सर्वेयर और क्षति निर्धारक हैं। उन के बात करने पर अस्पताल वाले ने संदेश दिया कि आप बाइक ले कर अस्पताल आ जाएँ। हम मिस्त्री भेजते हैं। मैं मिस्त्री को लेकर आया। वह एक नई बैटरी साथ ले कर आया था। बैटरी बदलते ही कार सामान्य रूप से चालू हो गई। कार को चालू छोड़ कर मिस्त्री ने अपनी बैटरी निकाल ली और पुरानी वापस डाल दी। कहने लगा आप अब तुरंत बैटरी बदल दीजिए।
मैं ने कार से मिस्त्री को ठिकाने छोड़ा और बैटरी वाले के पास पहुँचा। उस ने बैटरी को चैक किया तो फ्लूड का घनत्व सही पाया लेकिन सेल सांसे गिन रहे थे। नई बैटरी डाल दी गई। मैं ने बैटरी वाले को पूछा कि दो सप्ताह पहले जब बैटरी चैक कराई थी तब क्या हुआ था। कहने लगा हमने तब केवल घनत्व जाँचा था। मैं ने उसे कहा कि मैं जब कह रहा था कि स्टार्ट होने में समस्या है तो आप को सेल भी जाँचना चाहिए था। उस के स्थान पर आप ने सेल्फ यूनिट की सर्विस कराने को कहा। उस दिन सेल जाँच लिया जाता तो यह समस्या नहीं होती। उस ने अपने कर्मी की गलती स्वीकार की और कहा कि आगे से हर उपभोक्ता के मामले में इस बात का ध्यान रखूंगा। मैं कार-वर्कशॉप आया, वर्कशॉप मैनेजर को धन्यवाद किया, इस उलाहने के साथ कि जब मैं ने सेल्फ यूनिट के ठीक काम न करने की शिकायत दर्ज कराई थी तो कार सर्विस के दौरान सेल्फ दुरुस्त पाए जाने पर बैटरी को जाँचना चाहिए था और उसी दिन बैटरी बदलने की सलाह दे देनी चाहिए थी। उस ने अपनी गलती स्वीकार की।
मैं ने कष्ट इसलिए पाया कि बैटरी वाले ने और वर्कशॉप ने अपनी सेवाएँ ठीक से नहीं की थीं और यह सेवा दोष एक उपभोक्ता मामला बन चुका था। मैं चाहता तो दोनों को परेशानी और मानसिक संताप के लिए हर्जाना देने को कह सकता था। मना करने पर उपभोक्ता अदालत में जा सकता था। लेकिन दोनों ने गलती स्वीकार की थी। और भविष्य में सेवाएँ सुधारने का वायदा किया था। मैं यह भी जानता था कि उपभोक्ता अदालत में मुकदमों की भरमार है वहाँ भी साल-दो साल फैसला होने में लग जाएंगे। मुकदमे से परेशानी होगी वह अलग है। लेकिन यह जरूर है कि इन दोनों में से किसी ने भी सेवा में कोताही की तो मैं उपभोक्ता अदालत को शिकायत अवश्य करूंगा। हमारे यहाँ सेवादोष हर जगह मिलता है। उस का मुख्य कारण है कि उपभोक्ता सेवा प्रदाता या विक्रेता की शिकायत नहीं करता। उधर उपभोक्ता अदालतों की हालत यह है कि वहाँ मुकदमे जल्दी निपटाए ही नहीं जाते। अधिकतर जज सेवानिवृत्त हैं और केवल समय बिता रहे हैं। फिर कभी कोरम पूरा नहीं होता, कभी सदस्यों की नियुक्ति नहीं होती तो कभी जज नहीं है। जब अदालतें मुकदमों के निपटारे में समय लगाने लगती हैं तो उपभोक्ता अदालत में मामला ले जाने से कतराने लगता है। यदि उपभोक्ता अदालतों में मामलों के निर्णय छह माह से एक वर्ष के भीतर होने लगें तो विक्रेता और सेवाप्रदाताओं को उपभोक्ताओं को अच्छी सेवा देने पर मजबूर होना पड़े। पर लगता है सरकारें समस्या के वास्तविक समाधान पर कम और दिखावे की औपचारिकता पर अधिक ध्यान देती हैं।
12 टिप्पणियां:
अन्तिम पंक्ति बिल्कुल खरी हैं>.
अपकी बात एकदम सही है। न सेवाकर्ता को अपना कर्तव्य पूरा करने का अहसास है और न ही सामान्य उपभोक्ता के पास इतना समय है कि वह मामले पर पूरी कार्रवाई करे। जिन्हें समझ है उनसे यह लोग हाथ जोडकर माफी मान लेते हैं और मामला रफा दफा हो जाता है।
बढ़िया आलेख!
व्याहारिक समस्यायों को बखूबी लिखा है!
आभार!
सप्ताह भर पहले सुबह-सुबह कार ने स्टार्ट होने से मना कर दिया। बेचारी क्या करती।'
अब तो बैट्री और बैट्रीवाला दोनों ही बदल दीजिए :)
"दिखावे की औपचारिकता"....
मुझे लगता है कि हर स्थान पर एक विद्यालय खोल दिया है, जब तक अपने बराबर ज्ञान दे नहीं देते हैं तब तक कढ़ील कर सिखाते रहते हैं। अब कार के बारे में और क्या जानना शेष रह गया आप के लिये?
समस्या यह है कि सरकारे दिखावा तो उपभोक्ता फ़्रेंडली होने का करती हैं क्योंकि उनका वोट बहुसंख्यक होता है. और चुनाव के बाद तरी छानने के लिये सर्विस प्रदाता यानि कार्पोरेटस से मलाई मिलती है तो व्यवस्था ऐसी बना रखी है कि यह फ़ैसले ही विलंबित होते रहे जिससे वोट बैंक भी बना रहे और तरी भी बनी रहे.
रामराम.
जब आप अदालतों में जाने के पहले सोच रहे हैं तो एक आम आदमी क्या करता होगा ये भी सोचने की बात है.
आम व्यक्ति के लिए सोचनीय गंभीर बात है.
अपनी कार में यही समस्या आई थी हमने पहली बार मे ही बैट्री बदल दी लेकिन आपके इस अनुभव से हमे कुछ सीख तो मिली ।
छह महीने से एक साल! मुझे तो बहुत अधिक समय लग रहा है।
चंदन जी,
आप ने सही कहा। लेकिन यह भी हो जाए तो समझो न्याय व्यवस्था ने गति प्राप्त कर ली।
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