अब
ये सवाल उठाया जा रहा है कि क्या जन-लोकपाल विधेयक के ज्यों का त्यों
पारित हो कर कानून बन जाने से भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा? यह सवाल सामान्य
लोग भी उठा रहे हैं और राजनैतिक लोग भी। जो लोग वोट की राजनीति को नजदीक
से देखते हैं, उस से प्रभावित हैं और हमारी सरकारों तथा उन के काम करने के
तरीकों से भी नजदीकी से परिचित हैं उन के द्वारा यह प्रश्न उठाया जाना
स्वाभाविक है। लेकिन आज यही प्रश्न कोटा में राजस्थान के गृहमंत्री शान्ति
धारीवाल ने कुछ पत्रकारों द्वारा किए गए सवालों के जवाब में उठाया। मुझे इस
बात का अत्यन्त क्षोभ है कि एक जिम्मेदार मंत्री इस तरह की बात कर सकता
है। जनता ने जिसे चुन कर विधान सभा में जिस कर्तव्य के लिए भेजा है और जिस
ने सरकार में महत्वपूर्ण मंत्री पद की शपथ ले कर कर्तव्यों का निर्वहन करने
की शपथ ली है वही यह कहने लगे कि इस कर्तव्य का निर्वहन असंभव है तो उस से
किस तरह की आशा की जा सकती है। यह इस देश का दुर्भाग्य है कि आज देश की
बागडोर ऐसे ही लोगों के हाथों में है। मौजूदा जनतांत्रिक राजनैतिक व्यवस्था
में यह जनता की विवशता है कि उस के पास अन्य किसी को चुन कर भेजे जाने का
विकल्प तक नहीं है। ऐसी अवस्था में जब रामलीला मैदान पर यह प्रश्न पूछे
जाने पर कि आप पार्टी क्यों नहीं बनाते, खुद सरकार में क्यों नहीं आते
अरविंद केजरीवाल पूरी दृढ़ता के साथ कहते हैं कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे तो
उन की बात तार्किक लगती है।
स्थिति
यह है कि विधान सभाओं और संसद के लिए नुमाइंदे चुने जाने की जो मौजूदा
व्यवस्था है वह जनता के सही नुमाइंदे भेजने में पूरी तरह अक्षम सिद्ध हो
चुकी है। उसे बदलने की आवश्यकता है। जब तक वह व्यवस्था बदली नहीं जाती तब
तक चुनावों के माध्यम से जनता के सच्चे नुमाइंदे विधायिका और कार्यपालिका
में भेजा जाना संभव ही नहीं है। वहाँ वे ही लोग पहुँच सकते हैं जिन्हें इस
देश के बीस प्रतिशत संपन्न लोगों का वरदहस्त और मदद प्राप्त है। वे इस
चुनावी व्यवस्था के माध्यम से चुने जा कर जनप्रतिनिधि कहलाते हैं। लेकिन वे
वास्तव में उन्हीं 10-20 प्रतिशत लोगों के प्रतिनिधि हैं जो इस देश को
दोनों हाथों से लूट रहे हैं। देश में फैला भ्रष्टाचार उन की जीवनी शक्ति
है। इसी के माध्यम से वे इन कथित जनप्रतिनिधियों को अपने इशारों पर नचाते
हैं और जन प्रतिनिधि नाचते हैं।
भ्रष्टाचार
के विरुद्ध जो आंदोलन इस देश में अब खड़ा हो रहा है वह अभी नगरीय जनता में
सिमटा है बावजूद इस के कि कल हुए प्रदर्शनों में लाखों लोगों ने हिस्सा
लिया। ये लोग जो घरों, दफ्तरों व काम की जगहों से निकल कर सड़क पर तिरंगा
लिए आ गए हैं और वंदे मातरम्, भारत माता की जय तथा इंकलाब जिन्दाबाद के
नारों से वातावरण को गुंजा रहे हैं। भारतीय जनता के बहुत थोड़ा हिस्सा हैं।
लेकिन यह ज्वाला जो जली है उस की आँच निश्चय ही देश के कोने कोने तक पहुँच
रही है। पूरे देश में विस्तार पा रही इस अग्नि को रोक पाने की शक्ति किसी
में नहीं है। यह आग ही वह विश्वास पैदा कर रही है जो दिलासा देती है कि
भ्रष्टाचार से मुक्ति पाई जा सकती है। लेकिन जन-लोकपाल विधेयक के कानून बन
जाने मात्र से यह सब हो सकना मुमकिन नहीं है। यह बात तो इस आंदोलन का
नेतृत्व करने रहे स्वयं अन्ना हजारे भी स्वीकार करते हैं कि जन-लोकपाल
कानून 65 प्रतिशत तक भ्रष्टाचार को कम कर सकता है, अर्थात एक तिहाई से अधिक
भ्रष्टाचार तो बना ही रहेगी उसे कैसे समाप्त किया जा सकेगा?
लेकिन
मेरा पूरा विश्वास है कि जो जनता इस आंदोलन का हिस्सा बन रही है जो इस
में तपने जा रही है उस में शामिल लोग अभी से यह तय करना शुरू कर दें कि वे
भ्रष्टाचार का हिस्सा नहीं बनेंगे तो भ्रष्टाचार को इस देश से लगभग समाप्त
किया जा सकता है। भ्रष्टाचारी सदैव जिस चीज से डरता है वह है उस का
सार्वजनिक रूप से भ्रष्ट होने का उद्घोष। जहाँ भी हमें भ्रष्टाचार दिखे
वहीं हम उस का मुकाबला करें, उसे तुरंत सार्वजनिक करें। एक बार भ्रष्ट होने
का मूल्य समाज में सब से बड़ी बुराई के रूप में स्थापित होने लगेगा तो
भ्रष्टाचार दुम दबा कर भागने लगेगा। अभी उस के लिए अच्छा वातावरण है, लोगों
में उत्साह है। यदि इसी वातावरण में यह काम आरंभ हो जाए तो अच्छे परिणाम आ
सकते हैं। जो लोग चाहते हैं कि वास्तव में भ्रष्टाचार समाप्त हो तो उन्हें
एक लंबे और सतत संघर्ष के लिए तैयार हो जाना चाहिए।