संसद सर्वोच्च है। पर कौन सी संसद? जिसे जनता को चुन कर भेजे। मौजूदा संसद को क्या जनता ने चुना है? क्या जनता के पास अपनी पसंद का सांसद चुनने का अधिकार था? अब सांसद चुने जाने के लिए कम से कम दस करोड़ रूपया चाहिए। ये दस करोड़ कहाँ से आता है? दस करोड़ की रस्सी का एक सिरा सांसद के गले में बंधा है ओर दूसरा दस करोड़ के स्रोत पर। चुने जाने के पहले सांसद की प्रतिबद्धता निश्चित हो जाती है। जिस संसद के सांसदों की प्रतिबद्धताएँ दस करोड़ की रस्सी से बंधी हों वह सर्वोच्च कैसे हो सकती है? सर्वोच्च तो वे हैं जिन के हाथों में ये रस्सियाँ बंधी हैं। चुने जाने के बाद कोई इस रस्सी को तुड़ाना चाहे तो करोड़ों वाली एक-दो रस्सियाँ और बांध दी जाती हैं। संसद का चुनाव होता है, तो लगता है जैसे 'पेट मंकी शो' हो रहा हो। बंदरों की सजावट और करतब देख कर चुनना हो कि किस के बंदर को चुनना है? अब बंदर संसद में बैठ कर तो यही बोलेगा कि संसद सर्वोच्च है। जोकर के लिए सर्कस सर्वोच्च है। वही उस का जीवन है। सर्वोच्च संसद का तर्क बहुत जोरों से दिया जा रहा है। कुछ लोगों को वह प्रभावित भी करता है। बंदरों को सिखाया-पढ़ाया याद रहता है। संसद का अस्तित्व संविधान से है। बंदरों ने संविधान की पहली पंक्ति को या तो कभी पढ़ा ही नहीं, पढ़ा होगा तो वे भूल गए कि वहाँ लिखा है "हम भारत के लोग ....... आत्मार्पित करते हैं।"
खैर, आने वाले दिन तय करेंगे कि संसद सर्वोच्च है या संविधान के निर्माता। अन्ना के अनशन को तीन दिन हो चुके हैं। दिल्ली के बीच हो कर गुजर रही यमुना में कितना ही पानी बह कर जा चुका है। 16 अगस्त को कोटा की कलेक्ट्रेट पर धरना था। बहुत वकील भी वहाँ पहुँचे थे। उन्हों ने जोर शोर से नारे लगाए। उन्हें देख मुझे हँसी छूट रही थी। उन में अधिकांश ऐसे थे जिन्हें अपना काम कराने के लिए अदालतों के बाबुओँ और चपरासियों को धन देते देखा था। उन में से एक मुखर वकील से मैंने एक तरफ बुला कर कहा -आज संकल्प यहाँ आए वकीलों को संकल्प लेना चाहिए कि वे किसी को रिश्वत नहीं देंगे। उस का कहना था कि ये संभव नहीं है। हम तो काम ही न कर पाएंगे। मैं ने कहा -फिर तुम्हारा यहाँ आना बेकार है। कल कलेक्ट्री पर कोई धरना नहीं था। हाँ प्रदर्शन दिन भर होते रहे। वकीलों के बीच प्रस्ताव आया था कि जन लोकपाल के बिल व अन्ना के समर्थन में हड़ताल रखी जानी चाहिए। लेकिन कार्यकारिणी ने उसे ठुकरा दिया। तीन दिन का अवकाश आरंभ होने के एक दिन पहले किसी कारण से काम बंद रहा था। 16 अगस्त को उच्च न्यायालय की भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश के देहांत के कारण काम बन्द रहा था। पाँच दिनों से अदालतों में काम नहीं हो सका था। बहुत से आवश्यक काम रुके पड़े थे। कम से कम एक दिन में आवश्यक काम तो निपटा लिए जाएँ। लेकिन दोपहर भोजनावकाश के समय अचानक ढोल बजा, वकीलों को जलूस के लिए एकत्र किया जाने लगा। मुझे भी बुलाया गया। मैंने जाने से इन्कार कर दिया। आप लोग संकल्प लेने को तैयार हों तो ही साथ चल सकता हूँ।
अन्ना -आंदोलन के समर्थन में कोटा के वकीलों की रैली |
आधे घंटे में जलूस निपट लिया। मैं ने एकत्र वकीलों के बीच कहा कि कम से कम पाँच वकील तो संकल्प में मेरा साथ दे सकते हैं? कम से कम वे तो साथ दे ही सकते हैं जिन्हों ने कभी रिश्वत नहीं दी। मुझे पता था कि कोटा में कभी रिश्वत न देने वाले लोगों की संख्या इस से अधिक ही है। मैं ने उन्हें कोटा के ही श्रम न्यायालय का उदाहरण दे कर प्रश्न किया कि जब हम उस अदालत को 32 वर्षों तक रिश्वत विहीन बनाए रख सकते हैं तो बाकी अदालतों को क्यों नहीं ऐसा बना सकते? अभिभाषक परिषद कोटा के अध्यक्ष राजेश शर्मा और बार कौंसिल के सदस्य महेश गुप्ता ने मेरा साथ दिया। कम से कम हम तीन वहाँ थे जिन का अनुभव था कि बिना किसी तरह की रिश्वत दिए भी सफलता पूर्वक आजीवन वकालत का पेशा किया जा सकता है। आखिर तय हुआ कि कल काम बंद भी रखेंगे और संकल्प भी लेंगे। आज अदालत के चौक में सभा हुई और उपस्थित वकीलों, वकीलों के लिपिकों और टंकणकर्ताओं ने शपथ ली कि वे जीवन में कभी रिश्वत न देंगे, न किसी को रिश्वत देने के लिए प्रोत्साहित करेंग और अन्य लोगों को प्रोत्साहित करेंगे कि वे भी रिश्वत न दें।
हो सकता है संकल्प लेने वाले लोगों में से बहुत से इस संकल्प का पालन न करें। लेकिन कम से कम इतना तो हुआ कि लोग उन से पूछेंगे कि आप ने सार्वजनिक रूप से संकल्प लिया था, उस का क्या हुआ? मुझे तो बहुत दिनों से पक्का यक़ीन है कि हम तीन व्यक्ति भी मुखर हो जाएँ तो लोग हमारा अनुसरण करेंगे। कम से कम कोटा की अदालतों को भ्रष्टाचार मुक्त बना सकते हैं। बस इस आरंभ का अवसर नहीं मिल रहा था। धन्यवाद! अन्ना आप ने यह अवसर प्रदान किया।