@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत

बुधवार, 14 जुलाई 2010

फुटबॉल हैंगोवर और खुश कर देने वाली खबरें।

ल फुटबॉल का नशा करने को नहीं मिला। आज तो हेंगोवर का दिन था। रात को जल्दी सो जाना चाहिए था, लेकिन देर तक नींद नहीं आई। मैं आज के अदालत के काम को ले कर परेशान था। कुल छह मुकदमे बहस में लगे थे। मैं सोच रहा था कैसे यह सब होगा। मैं किसी भी मुकदमे में तारीख नहीं चाहता था। जल्दी अदालत पहुँचना चाहता था कि घर से निकलते निकलते कुछ मुवक्किल आ गए। उन की समस्या का तुरंत कुछ हल निकालना था। उन से बात करते करते देरी हो गई और साढ़े ग्यारह पर अदालत पहुँचा। एक में बहस नहीं हो सकी क्यों कि नियोजक संगठन में कोई फेरबदल हुआ है। वकील का उस के मुवक्किल से संपर्क नहीं हो पा रहा है। वास्तव में अदालत के पास भी समय नहीं था। अदालत जिन मुकदमों में बहस सुन चुकी थी, उन में उसे निर्णय लिखाने थे। अब यह तो हो नहीं सकता कि आप दस मुकदमों में बहस सुन कर डाल दें और फिर समय की कमी से फैसला न कर पाएँ। दूसरे मुकदमे में अदालत के आदेश के बाद भी यह प्रकट किया कि आदेशित दस्तावेज उन के कब्जे में नहीं है। आखिर मुकदमे को गवाही के लिए बदल दिया गया। एक अन्य मुकदमे में तीन में से एक वकील का स्वास्थ्य खराब हो गया और बहस टल गई। 
क अदालत में एक साथ बहुत मुकदमे स्थानांतरित हो कर आने के कारण समय के अभाव में पेशी बदल गई। एक में प्रार्थी के वकील ने खुद की हार को देखते हुए बहस के दौरान यह आवेदन प्रस्तुत किया कि वे एक एक्सपर्ट डाक्टर की गवाही कराना चाहते हैं। हमने विरोध किया तो अदालत ने हमें विरोध जवाब के रूप में लिख कर देने के लिए तारीख बदल दी। कुछ मुकदमें अदालत में पिछले छह माह से जज के प्रसूती अवकाश पर होने के कारण ताऱीख बदल गई। यह अदालत पिछले छह माह से सभी मुकदमों में यही कर रही है। एक और मुकदमे पेशी अदालत में जज नियुक्त नहीं होने से बदल गई। कुल मिला कर कागजी प्रभाव का काम तो हुआ, लेकिन वास्तविक प्रभाव का नहीं। वास्तविक प्रभाव का काम ये हुआ कि तीन बार भिन्न भिन्न मित्रों के साथ बैठ कर कॉफी पी गई। 
मैं दोपहर का वाकया बताना तो भूल ही रहा हूँ। अचानक लोकल चैनल वाले कैमरा लिए घूम रहे थे, मुझे पकड़ लियाष पूछने लगे कि भिक्षावृत्ति को समाप्त करने के लिए कोई कानून है क्या। मैं ने कहा कि कानून हो भी तो क्या। भिक्षावृत्ति तो बढ़ रही है और स्वाईन फ्लू की तरह नए नए रूप भी ग्रहण कर रही है। अदालत में जज नियुक्त नहीं है। रीडर को तारीख बदलनी है। लोग सुबह से अदालत में आए बैठे हैं, लेकिन रीडर साहब किसी सरकारी काम से जिला अदालत गए हैं और कैंटीन में बैठ कर किसी वकील के साथ चाय पी रहे हैं। चपरासी न्यायार्थी से कहता है कि रीडर साहब मुकदमों में तारीख बदली कर गए हैं। लिस्ट अंदर रख गए हैं, लेकिन वह बता सकता है। यह कहते हुए उस की आँखें चमक रही थीं। उस ने न्यायार्थी तो तारीख बता दी लेकिन ईनाम की फरमाईश कर दी। न्यायार्थी के सौ रुपए के नोट से कम के जितने नोट थे सब बख्शीश हो गए। शाम तक आई बख्शीश को रीडर व चपरासी ने पूरी ईमानदारी के साथ बांट लिया। बख्शीश न दो तो मांगने वाला इतनी गालियाँ और बद्दुआएँ देता है कि कोष छोटे पड़ने लगते हैं। इस भिक्षावृत्ति को रोकने का कोई कानून नहीं है ......... इतना कहते कहते तो कैमरामैन ने कैमरा बंद कर दिया। मुझे पक्का यकीन है कि वह इस क्लिप को शायद ही कभी दिखाए। 
र पर पत्नी जी से वायदा किया था कि आम ले कर आउंगा। पर भूल गया। घऱ में घुस जाने पर याद आया। एक जूनियर को फोन कर के कहा कि वह आम लेता आए। पत्नी ने चावल बनाए और आम का अमरस। यह डिश आज के दिन बनना जरूरी था। आज रथयात्रा और मेरे दिवंगत पिता जी का जन्मदिन जो था। हमने इस अमरस और बासमती चावलों के साथ आलू के पराठों का आनंद लिया। इस के साथ टीवी देखा। खबर सुन कर तबीयत खुश हो गई कि फ्रांस अब अपने देश में बुर्का पहनने पर पाबंदी लगाने के करीब है। वहाँ की संसद के निचले सदन में एक के मुकाबले 336 मतों से यह बिल पारित हो गया। दुनिया में ऐसे देश बहुत हैं जहाँ न चाहते हुए भी और उन की संस्कृति का हिस्सा न होते हुए भी औरतों को बुरका पहनना होता है। अब कम से कम एक देश तो इस पृथ्वी के नक्शे पर होगा जहाँ स्त्रियों के बुरका पहनने पर पाबंदी होगी। शायद ही कोई आजाद औरत हो जो किन्हीं भी हालात में बुरका पहनना चाहे। वास्तव में इसी तरह महिलाओं को इस की कैद से आजादी मिल सकती है। वरना वे संस्कृति की कैद में घुटती रहती हैं। इस कैद से निकलने का अर्थ है परिवार और समाज में बहुत कुछ भुगतना।
दूसरी खबर ने तो तबीयत पूरी तरह खुश कर दी। विश्वकप फुटबॉल के हीरो कप्तान गोलकीपर आईकर कैसीलस ने उन का इंटरव्यू लेने आई उन की महिला मित्र सारा कार्बोनेरो को यह सवाल पूछने पर कि पहले मैच में तुम इतना बुरा कैसे खेले? लाइव दिखाए जा रहे इंटरव्यू के बीच चूम लिया। निश्चित ही ताने दे कर भी उन में जीतने का उत्साह पैदा करने वाली अपनी मित्र के लिए इस से बड़ा तोहफा इस जीत पर नहीं हो सकता था। एक चैनल ने पूरा गाना ही सुना ही सुना कर खुश कर दिया ........... मंहगाई डायन काहे खाए जात है.........
स कल फिर इतने ही मुकदमे हैं, कुछ तैयारी कर ली गई है कुछ सुबह की जाएगी। पर कल आज जैसा नहीं हो सकता। कल कुछ न कुछ हासिल करना ही होगा।

मंगलवार, 13 जुलाई 2010

चलो, उतरा बुखार फुटबॉल का ...........

हीने भर से बुखार था, आज जा कर उतरा। चलो, इस से भी फारिग हुए। पचपनवाँ बरस जी रहे हैं। शरीर में कुछ तो जवानी रोज कम हो ही रही है। हाँ रोज एक घंटे फुटबॉल खेली जाये तो शेष जवानी को कुछ बरस और रोका जा सकता है। अब खुद निक्कर-टी शर्ट पहन, जूतों में पैरों को कस कर मैदान में फुटबॉल तो खेल नहीं सकते, जिस, से शरीर में खूब खून का दौरा हो और जवानी कुछ बरस और मेहमान बनी रह सके। लेकिन अब ये तो किया ही जा सकता है कि टीवी पर फुटबॉल मैच देख कर जिस्म में खून के दौरे को बरकरार रखा जाए। महीने भर पहले यही कुछ करने का हमने मन बनाया। शाम का मैच तो दफ्तर और मुवक्किलों की भेंट चढ़ जाता था। हम केवर आधी रात को होने वाले मैंच देखते रहे। आखिर क्वार्टर फाईनल आ गए। अब बुखार में आनंद आने लगा था। 
धर देखा कि हिन्दी ब्लागीरी में कोई फुटबाल का नाम ही नहीं ले रहा है। ले रहा है तो ऐसे जैसे मुहल्ले में आए मंत्री को अनिच्छा से हाथ जोड़ सलाम  ठोक रहा हो। हमने सोचा हिन्दी ब्लागिंग की ऐसी किरकिरी तो न होने देंगे, कुछ तो भी लिखेंगे। अब हम खेल के पत्रकार तो थे नहीं, और कबड्डी के सिवा किसी दूसरे खेल के नियमित खिलाड़ी रहे हों ऐसा भी नहीं था। अब हम किस हैसियत से लिखते? हमें याद आया कि हम ये बुखार शुरू होते से ही दर्शक जरूर बने हुए हैं, और क्या एक दर्शक की कोई हैसियत नहीं होती। हमने विचारा तो पता लगा कि असल हैसियत तो वही बनाता है। वह हैसियत वाला हो या न हो पर सब की हैसियत बनाने वाला तो वही है। इधर रणजी के मैच देखे हैं हमने। उन में दर्शक नदारद होता है तो खिलाड़ियों की हैसियत भी उतनी ही नदारद होती है। हमने दर्शक की हैसियत से फुटबॉल पर लिखने का श्री गणेश कर डाला। देखा, और लिखा। जो पसंद आया वही लिखा। आप ने पढ़ ही लिया होगा कि क्या लिखा? न पढ़ा हो तो पढ़ लें वही हमारा इस बुखार का तापमान ग्राफ है।
ब कथा जब पूरी हो चुकी है तो पूर्णाहुति और आरती तो अवश्य ही होनी चाहिए ना? उस के बिना तो कोई यज्ञ, कोई समारोह सम्पन्न नहीं होता न? तो लीजिए आखिरी मैच का हाल ये रहा कि जिस टीम को अपने जीतने की क्षमता में विश्वास था उस ने पूरे मैच में धैर्य न खोया और आखिर जीत हासिल कर ली। मैं स्पेन की बात कर रहा हूँ। वे अपने आत्मविश्वास से जीते। जिस टीम के कप्तान को यह विश्वास हो कि वह गोल पर होने वाले हर प्रहार को रोकने की क्षमता रखता है। क्या उस की टीम के शेष 10 खिलाड़ी विपक्षी के गोल में गेंद नहीं डाल सकते? उन का गुरु (कोच) वह कितना शांत दिखाई देता था। उस के चेहरे पर हमेशा न खुशी न गम विराजमान रहते थे। लेकिन  जब मैच के अतिरिक्त समय के आखिरी क्षणों में जब उस के खिलाड़ियों ने गेंद जब विपक्षी गोल में डाल दी तो उस की आँखों में वही चमक थी जो कई वर्षों से चमकने के वक्त का इंतजार कर रही थी। कल के खेल में सब कुछ हुआ। शरीरों की बेहतरीन टक्करें हुईँ। शरीर घायल भी हुए। शरीरों ने अपनी पूरी ताकत तक लगा दी। लेकिन केवल ताकत की जीत नहीं हुई। जीत हुई उस ताकत को ठंड़े दिमाग से इस्तेमाल करने वालों की। टीम का कप्तान ऐसे फफक फफक कर रोने लगा जैसे उस के जीवन का इस से अधिक आनंद देने वाला क्षण जी रहा है जो फिर कभी उस के जीवन में नहीं आएगा। 
मैच से पहले गाने और नृत्य से खिलाड़ियों, आयोजकों और दर्शकों में उल्लास भर देने वाली शकीरा का जिक्र न किया जाए तो बात अधूरी रहेगी। प्रकृति किस तरह किसी एक को इतनी सारी दौलत से कैसे नवाजती है इस का शानदार उदाहरण हैं शकीरा। अद्वितीय सुंदरता से भरपूर शरीर और सौंदर्य। जैसे स्वर्ग से साक्षात मेनका या रंभा उतर आई हो। मधुर और जोशीली आवाज, उस पर थिरकता हुआ बदन। जिसे देखने के उपरांत  मनुष्य की सारी लालसाएँ और वासनाएँ तिरोहित हो जाएँ। हम ने तो उस की छायाएँ देखीं। जिन लोगों ने उसे साक्षात देखा होगा। सारा जीवन रोमाँच शायद ही विस्मृत कर पाएँ। 
टीम अपने देश पहुँची। अब वह देशाटन में लगी है। लाखों लोग खिलाड़ियों के स्वागत में उल्लसित हैं। जिधर निगाह दौड़ाओ उधर ही लाल-पीली जर्सी दिखाई पड़ती है। जैसे देश के फुटबॉल खिलाड़ियों का गणवेश संपूर्ण देश का गणवेश हो गया हो। हर कोई वही पहने दिखाई देता है। हर कोई महसूस कर रहा है कि उस का भी इस जीत में कुछ न कुछ योगदान है। बुजुर्गों की आँखें उन लड़कों को देख कर खुशी से छलक रही हैं। अधेड़ उन्हें गौरव से देख रहे हैं। जवानों के शरीरों में खून तेजी से दौड़ने लगा है। वे कुछ भी करने को तैयार हैं। लाल और पीले रंगों की ये बहार देख कर मेरे राजस्थान की रंगीनी फीकी पड़ने लगती है। मैं या आप यदि आज स्पेन में होते तो इस बात के प्रत्यक्षदर्शी होते कि जीवन की सब से बड़ी जीत कैसी दिखाई देती है? कैसी सुनाई देती है? उस का स्वाद कैसा होता है?
मेरा तो बुखार यहीं आरती के साथ उतर गया। साथ ही उस ऑक्टोपस पाल बाबा का भी। सुना है उन ने कुछ खा लिया है और वे अब इस खुशी को देखने के बाद अधिक दिनों इस धरती पर रहना नहीं चाहते। उन्हें सेवा निवृत्त कर दिया गया है। वे अब विश्राम पर चले गए हैं। बाबा ने जिस तरह सारे दुनिया के ज्योतिषियों की ज्योतिष को ठेंगा दिखाते हुए अपनी बैठक को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध किया उस का तो मैं भी कायल हो गया हूँ। वैसे मेरा जूनियर बता रहा था कि बाबा कुल 12 बार में नौ बार बाएं डब्बे पर बैठे। दाँए पर तो वे तीन बार गलती से जा बैठे थे। वैसे भी जिस के आठ हाथ हों उसका क्या दायाँ और क्या बायाँ? अब बाबा तो गए। उन के प्रशंसक कई दिनों तक लकीर पीटते रहेंगे। कई तो लाइब्रेरी में से उस की रिकॉर्डिंग निकाल निकाल कर पीटेंगे। मेरे ज्योतिषी दादा जी ने मुझे भी ज्योतिषी बनाने की कोशिश की थी। अच्छा हुआ डार्विन का जिस ने हमें ज्योतिषी न बनने दिया। नहीं तो अब ग्लानि होती कि इस से तो ऑक्टोपस बनना ज्यादा अच्छा था। 
च्छा तो अलविदा फुटबॉल बुखार! अलविदा! मैं सोच रहा हूँ कि मैं भी घर के किसी मर्तबान में एक ऑक्टोपस पाल ही लूँ। जब भी दुविधा होगी। तब बक्सों को ड़ाल कर उस से कहूँगा ...... किसी पर तो बैठ!








रविवार, 11 जुलाई 2010

जीत की क्षमता में विश्वास और जीतने की सामान्य इच्छा के ग्राफ को ऊपर बनाए रखने वाला बनेगा सरताज

स कुछ ही घंटे बाकी हैं, फिर विश्वकप फुटबॉल 2010 का खिताबी मुकाबला आरंभ होगा जो तय करेगा कि इस खिताब को पाने वाला आठवाँ देश कौन सा होगा। नीदरलैंड और स्पेन की टीमों के बीच होने वाला यह मुकाबला दिलचस्प होगा। दोनों ही देशों टीमें  कभी इस खिताब को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सकी हैं। इस बार भी दोनों में से एक को यह अवसर खोना पड़ेगा।

र्षों बाद दमखम और कला-कुशलता दिखाने वाली उरुग्वे को जर्मनी के मुकाबले चौथे स्थान पर रहना पड़ा। जर्मनी जो विश्वकप की मजबूत दावेदार दिखाई पड़ रही थी, उस ने यह मैच जीत कर अपने सम्मान को बचाया। इस जीत के लिए भी जर्मनी को अपनी पूरी ताकत और कुशलता झोंकनी पड़ी। कल के मैच को देख कर यह कहा जा सकता है कि चौथे स्थान पर रहने वाली उरुग्वे की टीम कहीं भी जर्मनी से उन्नीस नहीं थी। यदि उस में कहीं कमी दिखाई दे रही थी तो वह थी जीतने की सामान्य इच्छा और अपनी जीत  सकने की क्षमता में प्रबल विश्वास। यदि किसी टीम के सभी खिलाड़ियों के बीच जीत की सामान्य इच्छा की कमी हो  और अपनी जीत सकने की क्षमता के प्रति प्रबल विश्वास न हो तो वह कितनी ही श्रेष्ठ टीम क्यों न हो लेकिन सर्वश्रेष्ठ नहीं हो सकती। यदि उरुग्वे को उठ कर निकलना है तो उसे ये दोनों चीजें हासिल करनी होंगी। 

ज के फाइनल मैच में मुकाबले में उतरने वाली दोनों टीमें अपनी जीत सकने की क्षमता के प्रति आश्वस्त दिखाई पड़ती हैं। उन में इच्छा की कमी भी नहीं दिखाई देती। यही कारण है कि हम एक शानदार मुकाबले की आशा कर सकते हैं। लेकिन मैच आरंभ होने के पहले और मैच के दौरान हर पल इस विश्वास और इच्छा के ग्राफ में लगातार परिवर्तन होता रहता है। आज जो भी टीम इस ग्राफ में उच्चता बनाए रखेगी वही खिताब पर कब्जा कर सकेगी।
तो आज रात 12.00 बजे भारतीय समयानुसार ईएसपीएन पर विश्व फुटबाल का यह सरताज मुकाबला देखना न भूलें। यदि आप अपने टीवी को चालीस मिनट पहले चालू करेंगे तो शकीरा के गायन और नृत्य का प्रदर्शन भी फुटबॉल मैदान में देख सकेंगे।




शनिवार, 10 जुलाई 2010

बहुत कुछ सीखा जा सकता है स्पेनी फुटबॉल टीम की रणनीति से

स्पेन ने जिस तरह से शानदार फुटबॉल का प्रदर्शन कर जर्मनी को हराते हुए विश्वकप के फाइनल में प्रवेश किया है वह सारे विश्व को एक गरिमामय खेल सीखने को आमंत्रित करता है। खेल के पहले लगता था कि जर्मनी ही जीत का हकदार है और वह किसी भी तरह से स्पेन को परास्त कर देगा। लेकिन यह हो नहीं सका। जर्मनी के मंसूबों को स्पेन ने पानी पिला दिया। 
टीम स्पेन
स्पेन के खेल में शालीनता थी। उन्होंने पूरे मैच में गेंद पर अपना कब्जा बनाए रखा। जर्मन टीम को स्पेन के कब्जे से गेंद छीनने के अवसर कम ही मिले। यह अच्छी रणनीति साबित हुई। क्यों कि जितना आप का कब्जा गेंद पर रहेगा उतने ही गोल खाने के अवसर कम होंगे और गोल करने के अधिक। गेंद पर कब्जा बनाए रख कर जर्मनी द्वारा अपने गोल पर प्रहार करने के अवसरों को न्यूनतम कर देना स्पेन की पहली रणनीति थी। 
दूसरी नीति स्पेन की यह थी कि जब भी अवसर मिले गेंद को गोल पर मारा जाए। इस से गोल पर प्रहार के अवसर बढ़ेंगे। जर्मनी की रक्षा कितनी ही मजबूत क्यों नहीं रही हो। लेकिन जब स्पेन ने प्रहार पर प्रहार किए तो यह निश्चित ही था कि कभी तो रक्षा पंक्ति से कोई चूक होती और गोल हो जाता। यही हुआ भी स्पेन ने खुद को मिले कॉर्नर पर एक ऐसा अवसर खोज ही लिया तब जर्मनी की रक्षा पंक्ति कुछ भी नहीं कर सकी। इसी ने स्पेन को फाइनल की राह दिखाई। 
गोल करने के बाद जश्न मनाते नीदरलेंड खिलाड़ी
फाइनल में स्पेन की विपक्षी टीम भी गेंद पर कब्जा बनाए रखने में कमजोर नहीं है। लेकिन मेरी राय में स्पेन से उन्नीस ही है। नीदरलैंड के खिलाड़ियों ने स्पेन के खेल से सीखा ही होगा और उन के कोच ने स्थितियों को नियंत्रित रखने के गुर भी बताए होंगे। स्पेन ने भी नीदरलैंड की संभावित तैयारियों को ध्यान में रखते हुए अपनी तैयारी अवश्य ही की होगी। निश्चित ही यह मैच कमजोर न होगा। आप तैयार रहें भारतीय समयानुसार रविवार की रात 12 बजे बाद अर्थात सोमवार की सुबह 0.00 बजे से विश्व के सर्वाधिक ख्यात खेल के विश्वकप का अंतिम खिताबी मैच देखने के लिए।

शुक्रवार, 9 जुलाई 2010

खुद को साबित करने का अंतिम अवसर

उरुग्वे की मंत्रणा
हले दो बार विश्वकप  विजेता का खिताब प्राप्त कर चुकी उरुग्वे की टीम ने पिछले चालीस सालों का सबसे बेहतर प्रदर्शन कर सेमीफाइनल में प्रवेश पाया था। सेमीफाईनल में भी उन का प्रदर्शन कमजोर नहीं था। यदि नीदरलैंड के खिलाड़ी दो चमत्कारी गोल कर पाने में सफल न होते तो उरुग्वे फाइनल में होता और हो सकता था कि वह 2010 का विश्वकप विजेता होता। उरुग्वे के सितारा खिलाड़ी  डिएगो फॉरलान ने खुद कहा, 'हम वर्ल्ड कप के इतने करीब थे। हमने सुनहरा मौका गंवा दिया।' अब उसी टीमं को आज कुछ घंटों के बाद जर्मनी से मुकाबला कर एक बार अपने कौशल और ताकत का एक बार फिर से प्रदर्शन करते हुए अपने आप को साबित कर दिखाना है कि वे भी इस बार विश्वकप की मजबूत दावेदार थे।
जर्मन टीम
धर जर्मनी तो आरंभ से ही बहुत मजबूत नजर आ रही थी। अधिकांश पर्यवेक्षक और फुटबॉल के दीवानों का यही ख्याल था कि जर्मनी ही इस बार विश्वकप ले जाएगा। उस के खिलाड़ी सब से अधिक दमखम दिखा रहे थे। उन की गति और लय शानदार थी। ऐसा प्रतीत होता था कि लक्ष्य हासिल करने के पहले कोई उन्हें रोक नहीं सकता। लेकिन स्पेन के साथ खेलते हुए वे वैसे ही निस्तेज हुए जैसे सूरज उगते ही चंद्रमा की रोशनी और चमक फीकी पड़ जाती है।  निश्चय ही कभी भी फाइनल का चेहरा न देख पाने वाली जर्मन टीम के मंसूबों को सेमीफाइनल की हार कम न साली होगी। लेकिन आज का मैच उन्हें हार की इस  सालन से बाहर निकल कर खेलना होगा। वर्ना यह भी हो सकता है कि उरुग्वे उन्हें अपने कलात्मक प्रदर्शन से हरा दे और जर्मन खिलाड़ियों को शर्मिंदा होना पड़े।
स विश्वकप में अपने आप को साबित करने का यह अंतिम अवसर दोनों ही टीमें नहीं चूकना चाहेंगी। हम भी चाहते हैं कि तीसरे स्थान के लिए होने वाला यह मैच उतना ही आकर्षक हो जितना कि फाइनल संभावित हो सकता है। दर्शक इस मैच को अवश्य ही देखना चाहेंगे। वैसे भी इस विश्वकप में दक्षिण अमरीकी कलात्मकता इसी मैच में अंतिम बार देखने को मिलेगी। तो देखना न भूलें इस मैच को कल रात अर्थात 10 जुलाई को रात बारह बजे के उपरांत 11 जुलाई की सुबह 0.00 बजे से ईएसपीएन पर।

कोई जीते, कोई हारे, हमें निर्वस्त्र दौड़ने का सिर्फ बहाना चाहिए

 राग्वे की महशहूर मॉडल लारिसा रिक्वेल्म ने अपने देश की फुटबॉल टीम के विश्वकप में जीतने पर शरीर को रंग कर सड़क पर नग्न दौड़ने की घोषणा की थी। लेकिन उन के मंसूबे उस समय धक्का लगा जब पराग्वे की टीम को क्वार्टर फाईनल में ही पराजय का मुहँ देखना पड़ा। खेल के इस परिणाम से न केवल लारिसा के मंसूबे आहत हुए अपितु लारिसा को इस प्रदर्शन में देखने की इच्छा रखने वाले लोगों को भी बेहद निराशा हुई।
लेकिन जो कोई किसी काम को करना चाहता है उस पर किसी की जीत या हार का क्या असर हो सकता है? लारिसा फुटबॉल के इस विश्व प्रदर्शन में अपने शरीर को दिखाने का अवसर नहीं छोड़ना चाहतीं। वे बस समाचारों में बनी रहना चाहती हैं। उस के लिए वे अपनी घोषणा को संशोधित कर सकती हैं। उन्होंने ऐसा किया है। उन्हों ने घोषणा की है कि वे स्पेन के विश्वकप जीतने पर ऐसा करेंगी। (समाचार)
ब जिसे यह नग्न दौड़ लगानी ही है। वह स्पेन के हारने पर और नीदरलैंड के विश्व चैंपियन बनने पर भी ऐसा कर सकती है। आखिर उसे बहाना ही तो चाहिए।

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

ऑक्टोपस पॉल की भविष्यवाणियाँ जर्मन टीम पर भारी पड़ीं, स्पेन एक गोल से जीत कर विश्वकप फुटबॉल 2010 के फाईनल में

मैच का एक मात्र गोल लगाते कार्लेस पुयोल
ही हुआ, जो होना चाहिए था। विश्वकप फुटबॉल 2010 के दौरान जर्मन धीरे-धीरे ऑक्टोपस पॉल का विश्वास करने लगे, टीम के खिलाड़ी भी। उस की भविष्यवाणी जो सच निकलने लगी थी। उस से प्रभावित भी होने लगे। जब सेमीफाइनल के लिए पॉल ने स्पेन के जीतने की भविष्यवाणी की तो शायद जर्मन खिलाड़ियों के दिल बैठ गए। आज उन के खेल में न तेजी दिखाई दी और न ही जीतने की तमन्ना खेल के उत्तरार्ध में कॉर्नर किक पर कार्लेस पुयोल के हेडर से मैच का एक मात्र गोल हुआ और जर्मनी का फाइनल पहुँचने के सफर का अंत हो गया। अब जर्मनी को तीसरे स्थान के लिए उरुग्वे से खेलना होगा। फाईनल स्पेन और नीदरलैंड के बीच खेला जाएगा।
मैच के बाद स्पेन की ओर से एक मात्र विजयी गोल लगाने वाले कार्लोस पुयोल जर्मन खिलाड़ी श्विनस्टिजर से हाथ मिलाते हुए