बस घंटा भर और शेष है फिर फुटबॉल विश्वकप 2010 का पहला सेमी फाइनल मैच आरंभ हो जाएगा। वैसे एक पाठक ने यह आपत्ति की है कि इसे फुटबॉल कहना गलत है। यह सॉसर है, ना कि फुटबॉल। क्यों कि फुटबॉल तो गोल न हो कर कुछ लंबी हुआ करती थी। खैर हम तो इसे फुटबॉल ही कहेंगे। क्यों कि फीफा इसे फुटबॉल ही कहता है।
सब लोग मान कर चल रहे हैं कि पहले सेमीफाइनल में तो नीदरलैंड की जीत पक्की है। पर यह पक्का भी नहीं है। जहाँ नीदरलैंड को फीफा विश्वकप का फाइनल खेले 32 वर्ष हो चुके हैं वहीं उरुग्वे साठ वर्ष पहले फाइनल खेलने के बाद फिर से फाइनल प्रवेश की तैयारी में है। अब यह तो मैच ही तय करेगा कि कौन सा शेर कितना भूखा है? और कौन किस का शिकार करता है?
जहाँ नीदरलैंड के विंगर डिर्क कुट का कहना है कि हम खुशी से सराबोर हैं कि हम फाइनल के कितने नजदीक हैं। यह वो चीज है जिस के लिए हम पूरे जीवन सपना देखते रहे हैं। लेकिन हमें सावधान भी रहना होगा, क्यों कि सेमीफाइनल विश्वकप में हमारा सब से मुश्किल मैच होगा।
उधर उरुग्वे के सितारा खिलाड़ी डियेगो फोरलेन का कह रहे हैं कि उरुग्वे के लोग हमें सेमीफाइनल में देख कर कितने खुश हैं इस का अनुमान हम नहीं कर सकते। वर्षों से उन्होंने अपनी टीम को इतना आगे तक आते नहीं देखा। लेकिन हम चाहते हैं कि हम उन्हें और अधिक खुशी दे सकें।
मैं जानता हूँ कि उरुग्वे के लिए नीदरलैंड को हरा पाना मुश्किल ही नहीं असंभव जैसा है, लेकिन असंभव नहीं। वे फीफा विश्वकप के पहले विजेता हैं, और अब फिर से कप के इतने नजदीक पहुँच कर अपने विरोधियों पर टूट पड़ सकते हैं। निश्चय ही नीदरलैंड के लिए यह मुकाबला आसान नहीं होगा। आज के इस खेल में हम दक्षिण अमरीकी फुटबॉल का कलात्मक खेल और यूरोप की ताकत और तेजी को देखेंगे।
मैं खुद चाहता हूँ कि उरुग्वे की सेमी फाइनल में पहुँची अकेली दक्षिण अमरीकी टीम जीते और फाईनल खेले। जिस से फाईनल में हमें दो भिन्न महाद्वीपों की टीमों के बीच टक्कर दिखाई दे।