@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: फुटबॉल
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बुधवार, 14 जुलाई 2010

फुटबॉल हैंगोवर और खुश कर देने वाली खबरें।

ल फुटबॉल का नशा करने को नहीं मिला। आज तो हेंगोवर का दिन था। रात को जल्दी सो जाना चाहिए था, लेकिन देर तक नींद नहीं आई। मैं आज के अदालत के काम को ले कर परेशान था। कुल छह मुकदमे बहस में लगे थे। मैं सोच रहा था कैसे यह सब होगा। मैं किसी भी मुकदमे में तारीख नहीं चाहता था। जल्दी अदालत पहुँचना चाहता था कि घर से निकलते निकलते कुछ मुवक्किल आ गए। उन की समस्या का तुरंत कुछ हल निकालना था। उन से बात करते करते देरी हो गई और साढ़े ग्यारह पर अदालत पहुँचा। एक में बहस नहीं हो सकी क्यों कि नियोजक संगठन में कोई फेरबदल हुआ है। वकील का उस के मुवक्किल से संपर्क नहीं हो पा रहा है। वास्तव में अदालत के पास भी समय नहीं था। अदालत जिन मुकदमों में बहस सुन चुकी थी, उन में उसे निर्णय लिखाने थे। अब यह तो हो नहीं सकता कि आप दस मुकदमों में बहस सुन कर डाल दें और फिर समय की कमी से फैसला न कर पाएँ। दूसरे मुकदमे में अदालत के आदेश के बाद भी यह प्रकट किया कि आदेशित दस्तावेज उन के कब्जे में नहीं है। आखिर मुकदमे को गवाही के लिए बदल दिया गया। एक अन्य मुकदमे में तीन में से एक वकील का स्वास्थ्य खराब हो गया और बहस टल गई। 
क अदालत में एक साथ बहुत मुकदमे स्थानांतरित हो कर आने के कारण समय के अभाव में पेशी बदल गई। एक में प्रार्थी के वकील ने खुद की हार को देखते हुए बहस के दौरान यह आवेदन प्रस्तुत किया कि वे एक एक्सपर्ट डाक्टर की गवाही कराना चाहते हैं। हमने विरोध किया तो अदालत ने हमें विरोध जवाब के रूप में लिख कर देने के लिए तारीख बदल दी। कुछ मुकदमें अदालत में पिछले छह माह से जज के प्रसूती अवकाश पर होने के कारण ताऱीख बदल गई। यह अदालत पिछले छह माह से सभी मुकदमों में यही कर रही है। एक और मुकदमे पेशी अदालत में जज नियुक्त नहीं होने से बदल गई। कुल मिला कर कागजी प्रभाव का काम तो हुआ, लेकिन वास्तविक प्रभाव का नहीं। वास्तविक प्रभाव का काम ये हुआ कि तीन बार भिन्न भिन्न मित्रों के साथ बैठ कर कॉफी पी गई। 
मैं दोपहर का वाकया बताना तो भूल ही रहा हूँ। अचानक लोकल चैनल वाले कैमरा लिए घूम रहे थे, मुझे पकड़ लियाष पूछने लगे कि भिक्षावृत्ति को समाप्त करने के लिए कोई कानून है क्या। मैं ने कहा कि कानून हो भी तो क्या। भिक्षावृत्ति तो बढ़ रही है और स्वाईन फ्लू की तरह नए नए रूप भी ग्रहण कर रही है। अदालत में जज नियुक्त नहीं है। रीडर को तारीख बदलनी है। लोग सुबह से अदालत में आए बैठे हैं, लेकिन रीडर साहब किसी सरकारी काम से जिला अदालत गए हैं और कैंटीन में बैठ कर किसी वकील के साथ चाय पी रहे हैं। चपरासी न्यायार्थी से कहता है कि रीडर साहब मुकदमों में तारीख बदली कर गए हैं। लिस्ट अंदर रख गए हैं, लेकिन वह बता सकता है। यह कहते हुए उस की आँखें चमक रही थीं। उस ने न्यायार्थी तो तारीख बता दी लेकिन ईनाम की फरमाईश कर दी। न्यायार्थी के सौ रुपए के नोट से कम के जितने नोट थे सब बख्शीश हो गए। शाम तक आई बख्शीश को रीडर व चपरासी ने पूरी ईमानदारी के साथ बांट लिया। बख्शीश न दो तो मांगने वाला इतनी गालियाँ और बद्दुआएँ देता है कि कोष छोटे पड़ने लगते हैं। इस भिक्षावृत्ति को रोकने का कोई कानून नहीं है ......... इतना कहते कहते तो कैमरामैन ने कैमरा बंद कर दिया। मुझे पक्का यकीन है कि वह इस क्लिप को शायद ही कभी दिखाए। 
र पर पत्नी जी से वायदा किया था कि आम ले कर आउंगा। पर भूल गया। घऱ में घुस जाने पर याद आया। एक जूनियर को फोन कर के कहा कि वह आम लेता आए। पत्नी ने चावल बनाए और आम का अमरस। यह डिश आज के दिन बनना जरूरी था। आज रथयात्रा और मेरे दिवंगत पिता जी का जन्मदिन जो था। हमने इस अमरस और बासमती चावलों के साथ आलू के पराठों का आनंद लिया। इस के साथ टीवी देखा। खबर सुन कर तबीयत खुश हो गई कि फ्रांस अब अपने देश में बुर्का पहनने पर पाबंदी लगाने के करीब है। वहाँ की संसद के निचले सदन में एक के मुकाबले 336 मतों से यह बिल पारित हो गया। दुनिया में ऐसे देश बहुत हैं जहाँ न चाहते हुए भी और उन की संस्कृति का हिस्सा न होते हुए भी औरतों को बुरका पहनना होता है। अब कम से कम एक देश तो इस पृथ्वी के नक्शे पर होगा जहाँ स्त्रियों के बुरका पहनने पर पाबंदी होगी। शायद ही कोई आजाद औरत हो जो किन्हीं भी हालात में बुरका पहनना चाहे। वास्तव में इसी तरह महिलाओं को इस की कैद से आजादी मिल सकती है। वरना वे संस्कृति की कैद में घुटती रहती हैं। इस कैद से निकलने का अर्थ है परिवार और समाज में बहुत कुछ भुगतना।
दूसरी खबर ने तो तबीयत पूरी तरह खुश कर दी। विश्वकप फुटबॉल के हीरो कप्तान गोलकीपर आईकर कैसीलस ने उन का इंटरव्यू लेने आई उन की महिला मित्र सारा कार्बोनेरो को यह सवाल पूछने पर कि पहले मैच में तुम इतना बुरा कैसे खेले? लाइव दिखाए जा रहे इंटरव्यू के बीच चूम लिया। निश्चित ही ताने दे कर भी उन में जीतने का उत्साह पैदा करने वाली अपनी मित्र के लिए इस से बड़ा तोहफा इस जीत पर नहीं हो सकता था। एक चैनल ने पूरा गाना ही सुना ही सुना कर खुश कर दिया ........... मंहगाई डायन काहे खाए जात है.........
स कल फिर इतने ही मुकदमे हैं, कुछ तैयारी कर ली गई है कुछ सुबह की जाएगी। पर कल आज जैसा नहीं हो सकता। कल कुछ न कुछ हासिल करना ही होगा।

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

ऑक्टोपस पॉल की भविष्यवाणियाँ जर्मन टीम पर भारी पड़ीं, स्पेन एक गोल से जीत कर विश्वकप फुटबॉल 2010 के फाईनल में

मैच का एक मात्र गोल लगाते कार्लेस पुयोल
ही हुआ, जो होना चाहिए था। विश्वकप फुटबॉल 2010 के दौरान जर्मन धीरे-धीरे ऑक्टोपस पॉल का विश्वास करने लगे, टीम के खिलाड़ी भी। उस की भविष्यवाणी जो सच निकलने लगी थी। उस से प्रभावित भी होने लगे। जब सेमीफाइनल के लिए पॉल ने स्पेन के जीतने की भविष्यवाणी की तो शायद जर्मन खिलाड़ियों के दिल बैठ गए। आज उन के खेल में न तेजी दिखाई दी और न ही जीतने की तमन्ना खेल के उत्तरार्ध में कॉर्नर किक पर कार्लेस पुयोल के हेडर से मैच का एक मात्र गोल हुआ और जर्मनी का फाइनल पहुँचने के सफर का अंत हो गया। अब जर्मनी को तीसरे स्थान के लिए उरुग्वे से खेलना होगा। फाईनल स्पेन और नीदरलैंड के बीच खेला जाएगा।
मैच के बाद स्पेन की ओर से एक मात्र विजयी गोल लगाने वाले कार्लोस पुयोल जर्मन खिलाड़ी श्विनस्टिजर से हाथ मिलाते हुए

बुधवार, 7 जुलाई 2010

जर्मनी और स्पेन के बीच फुटबाल विश्वकप फाईनल देखें आज रात 12.00 बजे ईएसपीएन पर

सुबह दस बजे अदालत के लिए घर से चला था। अभी रात साढ़े आठ बजे वापस लौटा हूँ। आने के बाद एक कॉफी ली, कुछ दफ्तर में काम किया फिर स्नान कर भोजन और फिर कल के मुकदमों की फाइलें निपटाई हैं। पिछली पोस्ट  "शानदार, साफ सुथरी फुटबॉल देखने को मिली विश्वकप 2010 के पहले सेमीफाइनल में" पर  भाई सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी  की टिप्पणी देखी तो पता लगा वे विश्वकप फुटबॉल 2010 के दूसरे सेमीफाइनल जिस में आज रात जर्मनी और स्पेन की भिड़न्त होने वाली का समय और चैनल पूछ रहे हैं। मैं सब की सुविधा के लिए बता देता हूँ कि यह मैच भारतीय समय के अनुसार रात 12.00 बजे आरंभ होगा। आप दस मिनट पहले अपने टेलीविजन पर ईएसपीएन चैनल पर इसे देख सकते हैं।  
जर्मन टीम
फुटबॉल मैच को देखने का एक आनंद और भी है कि यह लगातार 45 से 50 मिनट तक चलता है और फिर 15 मिनट के विश्राम के बाद फिर इतना ही चलता है। यदि दोनों टीमें बराबर रहें तो अतिरिक्त समय और फिर भी बराबर रहें तो पैनल्टी शूट आउट तक चलता है। विश्राम के समय के अतिरिक्त मैच के दौरान कोई विज्ञापन दिखाया नहीं जाता। अर्थात मैच में कोई कमर्शियल ब्रेक नहीं होता। यदि आप को मैच न भी देखना हो तो भी लगातार 45-50 मिनट तक लगातार बिना किसी कमर्शियल ब्रेक के आप टीवी देखने का आनंद तो ले ही सकते हैं।
स्पेनी टीम
ज का मैच तो वैसे भी धुआँधार होने वाला है। कल जितना साफ सुथरा तो नहीं होगा (हालांकि राज भाटिया जी कल के मैच को भी बिलकुल साफ सुथरा नहीं मानते, लेकिन फिर भी अन्य मैचों से तो अधिक साफ था ही)
अपितु आज धक्कामार आदि सब कुछ हो सकती है। एक-दो खिलाड़ी स्ट्रेचर पर लेट कर मैदान से बाहर आ सकते हैं। इस कारण से मैच का आनंद दुगना रहेगा। यूँ तो लगभग सभी का अनुमान है कि जर्मनी का पलड़ा भारी है और पूरे टूर्नामेंट में उस के खेल को देखते हुए उसे ही जीतना चाहिए। लेकिन स्पेन ने जिस तरह टूर्नामेंट के दौरान अपने खेल में सुधार किया है उन की चुनौती भी भारी है, और वह जर्मनी को शिकस्त दे सकती है। दोनों ही टीमों में स्टार खिलाड़ियों की भरमार है। जर्मनों की सब से बड़ी परेशानी तो उन के एक चिड़ियाघर में मौजूद ऑक्टोपस बाबा हैं जो अब तक के सभी मैचों की भविष्यवाणी कर चुके हैं और उन की आज तक की सारी भविष्यवाणियाँ सही निकली हैं। ऑक्टोपस बाबा ने इस मैच की भविष्यवाणी करते हुए कहा है कि स्पेन जीतेगा। अब जर्मनों को अपने ऑक्टोपस बाबा को गलत भी तो सिद्ध करना है।
तो हो जाइए तैयार अब डेढ़ घंटे से भी कम समय शेष रहा है मैच आरंभ होने में।  

शानदार, साफ सुथरी फुटबॉल देखने को मिली विश्वकप 2010 के पहले सेमीफाइनल में

हुत दिनों बाद ऐसी सुंदर फुटबॉल देखने को मिली। कहीं किसी तरह का फालतू टकराव नहीं। नतीजा ये हुआ कि फ्री-किक बहुत कम देखने को मिली। आखिर नीदरलेंड ने विजय पायी। पहला गोल नीदरलेंड ने शानदार फील्ड किक से किया तो पहले हाफ के उत्तरार्ध में यही कारनामा उरुग्वे के फोरलेन ने कर दिखाया। दूसरे हाफ के आरंभ में खेल 1-1 की बराबरी पर था।
दूसरे हाफ में जो दो चमत्कारी गोल नीदरलेंड की ओर से हुए उन्हों ने नीदरलेंड को 1974 और 1978 के बाद तीसरी बार फाइनल की राह दिखा दी। लेकिन उरुग्वे ने आखिर तक अपना खेल खेला और अंतिम क्षणों में एक गोल दाग कर नीदरलेंड की जीत के अंतर को 3-2 तक सीमित कर दिया। अब उरुग्वे को तीसरे स्थान के लिए आज दूसरे सेमीफाइनल में हारने वाली टीम से खेलना होगा।
नीदरलैंड के लिए कप्तान जियोवानी वान ब्रोर्कोस्ट ( 18वें मिनट ), वेस्ले श्नाइडर ( 70वें ) और अर्जेन रोबेन ( 73वें मिनट ) ने गोल किए।
उरुग्वे ने अपनी ओर से कोशिश कम नहीं की लेकिन उसकी ओर से कप्तान डियगो फोरलैन (40वें मिनट)और मैक्सिमिलियानो परेरा (90 मिनट, इंजुरी टाइम) केवल दो ही गोल कर पाए। 
दोनों ही टीमों ने शानदार और साफ सुथरी फुटबॉल खेली। मैच की सांख्यिकी इस बात की गवाह है ....

नीदरलैंड की ओर से दूसरा गोल करने वाला माथा दिखाते खिलाड़ी
  • गोल की तरफ उरुग्वे ने 12 निशाने लगाए तो नीदरलेंड उस से एक कम केवल 11
  • लक्ष्य से बाहर उरुग्वे ने 6 निशाने लगाए तो नीदरलेंड ने उस से दो कम केवल 4
  • लक्ष्य पर उरुग्वे ने 6 निशाने साधे तो नीदरलेंड ने उस से एक अधिक 7 निशाने
  • उरुग्वे ने 15 फाउल खेले तो नीदरलेंड ने उस से एक अधिक  कुल 16
  • उरुग्वे ने 47 % समय गेंद को अपने कब्जे में रखा तो 53% समय में नीदरलेंड ने
  • उरुग्वे के खिलाड़ी 4 बार ऑफसाइड हुए तो नीदरलेंड के खिलाड़ी 5 बार
  • उरुग्वे को कॉर्नर मिले 4 तो नीदरलेंड को कॉर्नर मिले 5
  • पीले कार्ड उरग्वे को 2 बार दिखाए गए तो नीदरलेंड को तीन बार
  • लाल कार्ड दिखाने की नौबत नहीं आई
गोल की ओर हैडर मारते नीदरलैंड का खिलाड़ी
कुल मिला कर खेलने के मामले में उरुग्वे ने भी निराश नहीं किया। लेकिन इस के साथ ही अंतिम दक्षिण अमरीकी टीम फाइनल की दौड़ से बाहर हो गई। फुटबॉल विश्वकप 2010 यूरोप में जाना तय हो गया। 
ज रात भारतीय समय के अनुसार फिर एक शानदार मुकाबला देखने को मिलेगा, जर्मनी और स्पेन के बीच। लेकिन जैसी संभावना है वह इतना साफ सुथरा शायद ही रहे जितना कल का मुकाबला था। हाँ खेल में आज की अपेक्षा अधिक तेजी देखने को मिलेगी। 


मंगलवार, 6 जुलाई 2010

देखते हैं, कौन सा शेर कितना भूखा है ......

स घंटा भर और शेष है फिर फुटबॉल विश्वकप 2010 का पहला सेमी फाइनल मैच आरंभ हो जाएगा। वैसे  एक पाठक ने यह आपत्ति की है कि इसे फुटबॉल कहना गलत है। यह सॉसर है, ना कि फुटबॉल। क्यों कि फुटबॉल तो गोल न हो कर कुछ लंबी हुआ करती थी। खैर हम तो इसे फुटबॉल ही कहेंगे। क्यों कि फीफा इसे फुटबॉल ही कहता है।

ब लोग मान कर चल रहे हैं कि पहले सेमीफाइनल में तो नीदरलैंड की जीत पक्की है। पर यह पक्का भी नहीं है। जहाँ नीदरलैंड को फीफा विश्वकप का फाइनल खेले 32 वर्ष हो चुके हैं वहीं उरुग्वे साठ वर्ष पहले फाइनल खेलने के बाद फिर से फाइनल  प्रवेश की तैयारी में है। अब यह तो मैच ही तय करेगा कि कौन सा शेर कितना भूखा है? और कौन किस का शिकार करता है? 
हाँ नीदरलैंड के विंगर डिर्क कुट का कहना है कि हम खुशी से सराबोर हैं कि हम फाइनल के कितने नजदीक हैं। यह वो चीज है जिस के लिए हम पूरे जीवन सपना देखते रहे हैं। लेकिन हमें सावधान भी रहना होगा, क्यों कि सेमीफाइनल विश्वकप में हमारा सब से मुश्किल मैच होगा।

धर उरुग्वे के सितारा खिलाड़ी डियेगो फोरलेन का कह रहे हैं कि उरुग्वे के लोग हमें सेमीफाइनल में देख कर कितने खुश हैं इस का अनुमान हम नहीं कर सकते। वर्षों से उन्होंने अपनी टीम को इतना आगे तक आते नहीं देखा। लेकिन हम चाहते हैं कि हम उन्हें और अधिक खुशी दे सकें। 
मैं जानता हूँ कि उरुग्वे के लिए नीदरलैंड को हरा पाना मुश्किल ही नहीं असंभव जैसा है, लेकिन असंभव नहीं। वे फीफा विश्वकप के पहले विजेता हैं, और अब फिर से कप के इतने नजदीक पहुँच कर अपने विरोधियों पर टूट पड़ सकते हैं। निश्चय ही नीदरलैंड के लिए यह मुकाबला आसान नहीं होगा। आज के इस खेल में हम दक्षिण अमरीकी फुटबॉल का कलात्मक खेल और यूरोप की ताकत और तेजी को देखेंगे।

मैं खुद चाहता हूँ कि उरुग्वे की सेमी फाइनल में पहुँची अकेली  दक्षिण अमरीकी टीम जीते और फाईनल खेले। जिस से फाईनल में हमें दो भिन्न महाद्वीपों की टीमों के बीच टक्कर दिखाई दे।

रविवार, 4 जुलाई 2010

जर्मनी की असली परीक्षा होगी स्पेन के साथ भिड़ंत में

फुटबॉल विश्वकप 2010 का आखिरी मुकाबला पराग्वे का स्पेन से था। स्पेन को पराग्वे के मुकाबले एक काफी मजबूत टीम माना जा रहा था और लोगों की आकांक्षाएँ ऐसी थीं कि स्पेन पराग्वे की अच्छी धुलाई करेगा। लेकिन हुआ ये कि पराग्वे पूरे मैच में स्पेन को गोल के लिए तरसाता रहा। जिस तरह से मैच का आरंभ हुआ था ऐसा लग रहा था कि कहीं पहला गोल करने में पराग्वे सफल न हो जाए। आरंभ में पराग्वे ने स्पेनी गोल पर अच्छे हमले किए। लेकिन स्पेन की मजबूत टीम जो शायद पराग्वे को आसान समझ कर पूरी ताकत और योजना के साथ नहीं खेल रही थी जल्दी ही होश में आ गई। स्पेनी खिलाड़ियों ने जब तालमेल के साथ खेलना आरंभ किया तो पराग्वे के लिए गोल पर हमले करना मुश्किल हो गया। पराग्वे के खिलाड़ी पूरी तरह रक्षात्मक हो गए। लेकिन जब वे रक्षा पर उतरे तो स्पेनी खिलाड़ियों को गोल तक गेंद पहुँचाना असंभव लगने लगा। पराग्वे के खिलाड़ियों ने स्पेन को पूरे मैच में छकाया और मौका पड़ने पर गोल पर हमले भी बोले जो स्पेनी खिलाड़ियों को आतंकित करते रहे। 
गोल के बाद जश्न मनाते स्पेनी खिलाड़ी
प इसी बात से पराग्वे की चुनौती का अनुमान कर सकते हैं कि विश्वकप की प्रबल दावेदार टीम को पराग्वे के खिलाड़ियों ने मैच का समय पूरा होने के आठ मिनट पहले तक गोल बनाने से वंचित रखा। स्पेनी इस मैच का पहला और अंतिम गोल मैच के बयासीवें मिनट में कर पाए। पराग्वे के खिलाड़ी पहले से जानते थे कि वे स्पेन को हरा नहीं सकेंगे। लेकिन जब स्पेन अपना पहला गोल करने में असफल रही तो उन का जोश बढ़ता गया और इसी ने स्पेनियों को बहुत परेशान किया। गोल हो जाने के बाद के आठ मिनटों में भी उन्हों ने स्पेनी खिलाड़ियों को चैन नहीं लेने दिया। ऐसा लग रहा था कि शायद मैच का निर्णय अतिरिक्त समय या पैनल्टी शूट से ही हो पाएगा। पराग्वे की हार के साथ ही लारिसा रिक्वेल का सपना भी टूटा। पर वे अपना करतब दिखाने के लिए और अवसर तलाश लेंगी।
हरहाल क्वार्टर फाइनल मुकाबले हो चुके हैं और सेमी फाइनल की टीमें निश्चित हो चुकी हैं। अब नीदरलेंड (हॉलेंड) का मुकाबला विश्वकप मैदान में बची रही एक मात्र गैर यूरोपीय दक्षिणी अमेरीकी उरुग्वे से है। ऐसा लग रहा है कि हॉलेंड को उरुग्वे से निपटने में अधिक मुश्किल नहीं होगी। लेकिन खुद हॉलेंड यही समझ बैठा तो उस के लिए मुश्किल हो सकती है और यह भी कि वह फाइनल खेलने से वंचित हो जाए। दूसरा मुकाबला निश्चित रूप से शानदार होने वाला है। जर्मन टीम विश्वकप के लिए जितना दावा जता रही है, स्पेन के दावे को उस से कम कर के नहीं आँका जा सकता। जर्मन  टीम का असली परीक्षण इसी सेमीफाइनल में होने वाला है। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि जर्मनी और अर्जेंटीना के बीच हुए मुकाबले में कुछ गड़बड़ जरूर हुई है। अर्जेंटीना के खिलाड़ियों तक जर्मनी की एप्रोच की बातें भी चल रही हैं। लेकिन यह तो हमेशा होने वाली बातें हैं। यदि इन में सचाई हुई तो ये बातें निकल कर जल्दी ही निकल कर चौपाल पर आ जाएँगी। हम जुटते हैं दो दिन बाद सेमीफाइनल देखने की तैयारी में।

शनिवार, 3 जुलाई 2010

घाना नहीं रच सका इतिहास, आज के मैच होंगे रोचक

रुग्वे और घाना के बीच फुटबॉल क्वार्टर फाइनल मुकाबला सुबह होने तक चलता रहा। हम सोचते थे इस बार घाना सेमीफाइनल में प्रवेश कर यहाँ तक पहुँचने वाली पहली अफ्रीकी टीम बन जाएगी। लेकिन इतिहास रचते रचते रह गया। खेल का उत्तरार्ध आरंभ हुआ ही था कि उरुग्वे एक गोल बना कर बराबरी पर आ गई। यह बराबरी समय समाप्त होने तक बनी रही। अतिरिक्त समय के अंतिम क्षणों में घाना को एक पैनल्टी शूट मिला लेकिन बॉल गोल-पोल से टकरा कर ऊपर निकल गई। उरुग्वे का गोली बाद में बहुत देर तक गोल-पोल को चूमता रहा जैसे वह उन की टीम का बारहवाँ खिलाड़ी हो। क्यों न चूमता? आखिर उस की भूमिका कम न थी। फिर हुआ पैनल्टी शूट आउट। उरुग्वे के एक शूटर ने गलती की और बॉल गोल सीमा के बहुत ऊपर से निकली। लेकिन उन के गोली ने दो गोल बचा लिए और उरुग्वे घाना की चुनौती समाप्त करते हुए सेमीफाइनल प्रवेश पा  गया।
ब हम फुटबॉल तो क्या किसी ऐरे-गैरे खेल के भी विशेषज्ञ नहीं हैं जो इस मैच की समीक्षा करें। हम ने स्कूल में फुटबॉल खेलने की कोशिश जरूर की थी। रोजाना प्रेक्टिस पर भी जाते थे। पर टीम में स्थान न बना पाए। शायद टीम वालों को हमारे आकार का भय सताता रहा हो कि कहीं ऐसा न हो कि विपक्षी टीम के खिलाड़ी हमें ही फुटबॉल न समझ बैठें। फिर एक दिन इस फुटबॉल प्रेम का अंत हो गया। हुआ यूँ कि हम हैडर मारना चाहते थे, लेकिन फुटबॉल ने हमें अपनी साथी समझ लिया। माथे पर ऐसी चिपकी कि चक्कर आ गए। घायल हो कर घर लौटे तो दादा जी ने हिदायत दे डाली कि हम फुटबॉल न खेलेंगे।  उन के आदेश की कोई अपील भी तो न थी। अब फुटबॉल से ये जो दर्शकीय प्रेम बचा है उस का मुजाहिरा कैसे तो करें?
ब हम क्या कहें? कल हम चाहते थे कि ब्राजील जीत जाए लेकिन वह हार गया। फिर घाना पर विश्वास जमाया तो वह भी पैनल्टी शूट-आउट में पिट गया। घाना के खिलाड़ियों में जीत का माद्दा था और इच्छा भी। लेकिन अनुभव और प्रशिक्षण की कमी उन्हें ले डूबी। जैसे घाना के हालात हैं, उन में प्रशिक्षण सुविधाएँ मेरे विचार में उन्हें कम ही मिली होंगी। यदि इसी टीम को ये सब मिल जाए तो यह आने वाले मुकाबलों में बहुत सी टीमों के लिए चुनौती बन कर खड़ी हो सकती है। घाना हार भले ही गई हो, लेकिन खिलाड़ियों के खेल ने मेरे दर्शक का दिल जरूर जीत लिया। रात जाग कर मैच देखना नहीं अखरा।

ज अब आधा घंटा भी शेष नहीं रहा है। विश्वकप का सब से दिलचस्प मुकाबला आरंभ होने में।  जर्मनी और अर्जेंटीना दोनों ही टीमें कप की प्रबल दावेदार हैं। माराडोना तो अर्जेंटीना को कप मिलने पर निर्वस्त्र हो कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने पर उतारू हैं। कल तो अपनी पसंदीदा टीमों के हार जाने पर कतई निराशा नहीं हुई थी। लेकिन आज दुख अवश्य होगा। हम चाहते थे कि ये दोनों टीमें कम से कम सेमीफाइनल तक अवश्य पहुँचें। पर उन में से एक को आज दौड़ से बाहर होना होगा। दूसरा मैच पराग्वे और स्पेन के बीच है। यह मुकाबला भी दिलचस्प होने वाला है। आप भी जरूर देखिएगा। केवल टीमों और खिलाड़ियों के कारण ही नहीं, मैदान में उन के लारिसा रिक्वेल जैसे जोशीले समर्थकों के कारण भी।

शुक्रवार, 2 जुलाई 2010

ब्राजील हार कर बाहर हुआ, हम उदास नहीं हैं। पर ब्राजील के चक्कर में रंगभेदी कहाए गए हैं

क्त ठहरता नहीं। अब देखिए न, अभी शाम सात बज कर अठारह मिनट पर पोस्ट प्रकाशित की थी....चलो आज कुछ फुटबोलियायें। सात बज कर तीस मिनट पर ब्राजील और हॉलेण्ड का मैच आरंभ हुआ। नौ बज कर बीस मिनट होते उस के पहले ही खत्म हो गया। हालाँकि हम ने कोई भविष्यवाणी नहीं की थी। पर गोरे-काले के हिसाब से हम ब्राजील की तरफ थे। ब्राजील हार गया। लेकिन हम कतई उदास नहीं हुए। होना भी नहीं चाहिए। खेल को खेल की भावना से खेलना और देखना चाहिए। यूँ हम ने जो गोरे-काले का भेद किया इस लिए कोई भी हमें नस्लवादी कह सकता है। पर हम नस्लवादी हैं नहीं। बस अपने जैसे लोगों के साथ जरूर हैं। अब उदास होने का कोई कारण भी तो नहीं था। ब्राजील वैसे ही पाँच बार फुटबॉल का विश्व चैंपियन रह चुका है। आखिर दूसरों को भी अवसर तो मिलना चाहिए न? वैसे ये मौका देने की थियरी ने काम किया तो अगला मैच जो घाना और उरुग्वे के बीच होने वाला है। उस में हमारी टीम लाभ में जा सकती है।

म ने कहा था कि हम ने मैच देखने का पूरा इंतजाम किया है कि बीच में कोई न आए। पर जो सोचते हैं वह होता कहाँ है? एक मुवक्किल को छह बजे आना था, वे आए सात बजे। खैर! उन को तो हमने पन्द्रह मिनट में विदा कर दिया और पिछली पोस्ट प्रकाशित कर दी। पर तभी सुप्रीमकोर्ट  हमारा सर पर आ खड़ा हुआ और हम रंगे हाथों पकड़े गए। हुआ यूँ कि हमने पिछली पोस्ट के लिए कुछ चित्र छाँटे थे, उन में माराडोना भी के भी थे और लारिसा रिक्वेल के भी। जब सुप्रीमकोर्ट यानी हमारी श्रीमती जी हमारे सर के पीछे थीं, तो डेस्कटॉप पर लारिसा भी थीं और वहाँ वह चित्र खुला था जो पिछले दिनों बहुचर्चित रहा है। उसे देखते ही सुप्रीमकोर्ट ने डाँट लगाई ये क्या गंदे-गंदे चित्र देखते रहते हो? जरा आटा (गेहूँ नहीं) पिसवा लाओ और देखो ये पोर्च की लाइट फ्यूज हो गई है एक नई सीएफएल लेते आना। हमारी जान जो फुटबॉल में अटकी पड़ी थी तुरंत फ्री हो गई। आखिर सुप्रीमकोर्ट के इस आदेश का कोई तोड़ हमारे पास नहीं था। कोई क्यूरेटिव पिटिशन तक का उपबंध इस कोर्ट के पास नहीं था। फिर आदेश डाँट से शुरू हुआ था। हमें तुरंत जाना पड़ा। गेहूँ का पीपा चक्की पर उतारा, सीएफएल ली और घर लौटे तो सुप्रीमकोर्ट सीरियल में अटका था। हम ने उन की जान सीरियल से छुड़ाई मैच देखने लगे तो ब्राजील एक गोल कर चुका था, हम प्रसन्न भए। ब्राजील के खिलाड़ी ऐसे खेल रहे थे जैसे फुटबॉल पर अपना नाम लिखा कर लाए हों। बेचारे हालेंडी उन के पैर तक बॉल पहुँचती भी थी तो मुश्किल से। खैर जल्दी ही आधा खेल खत्म हो गया। खाना तैयार हो चुका था। हम नहाने स्नानघर में घुस गए। 
निकले तो उत्तरार्ध आरंभ हो चुका था। पर नजारा बदल चुका था। ऐसा लगता था जैसे हॉलेण्डी पैरों में बिजली भर के लाए हों और ब्राजीलियों की बिजली गायब हो चुकी हो। उस के स्थान पर उन के पैरों में चक्कियाँ बांध दी गई हों। जल्दी ही एक गोल हॉलेण्डियों ने कर दिया। हमारे दिल की धड़कन बढ़ गई। सोचते थे, एक गोल बराबर कर दिया तो क्या? अभी उतार दिया जाएगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ हालेंडियों ने एक गोल और ठोक दिया। अन्त में ब्राजील सेमीफाइनल के बाहर हुई। हमने खिलाड़ियों के चेहरे देखना शुरु किया तो वैसे ही दिखे जैसे क्रिकेट मैच हारने के बाद भारतीय खिलाड़ियों के होते हैं। इस समानता को देख कर हम प्रसन्न हुए। आखिर हमने यूँ ही ब्राजील की टीम का पक्ष नहीं लिया था। हम ने उदासी को पास फटकने भी नहीं दिया।
ब बारह बजने का इंतजार है। जब अगला मैच होना है। हम जानते हैं कि घाना के चाँसेज बहुत अच्छे नहीं हैं। पर कुछ नहीं कह सकते। हो सकता है, पराग्वे उरुग्वे के खिलाड़ी अपनी हेकड़ी में रह जाएँ और घाना के खिलाड़ी गोल कर जाएँ। वैसे घाना जीता तो इतिहास रचेगा। पराग्वे उरुग्वे जीता तो कोई बात नहीं और हार गया तो भी कोई बात नहीं। आखिर वह दो बार फीफा विश्व चैम्पियन रह चुका है और दो बार ओलम्पिक चैम्पियन भी।
चलते-चलते, अभी-अभी  
उधर बज्ज़ पर प्रेतभंजक जी हमें रंगभेदी की ट्रॉफी से नवाज चुके हैं।

पुनश्चः
उरुग्वे और घाना के मैच के अर्धविराम के बीच से....
धर हम  रात बारह बजे वाला मैच देखने पहुँचे और हमारे फुटबॉल ज्ञान का भुरकस निकल पड़ा। हम सोचे थे मैच पराग्वे और घाना के बीच है पर निकला उरुग्वे और घाना के बीच। ये नाम भी एक जैसे क्यों होते हैं? बहुत ही कनफ्यूजियाते हैं। संतोष इस बात का है कि अर्धविराम के ठीक पहले गोल ठोक कर घाना एक गोल से आगे हो लिया है। लगता है इतिहास रचने के करीब है।

चलो आज कुछ फुटबोलियायें

फुटबाल विश्वकप अब मजेदार दौर में है। केवल आठ दावेदार रह गए हैं मैदान में। सब के सामने तीन मैच हैं। जिस ने ये तीन मैच जीत लिए वही सिरमौर होगा। पिछले दिनों शाम साढ़े सात बजे और रात बारह बजे मैच देखते देखते ऐसी आदत पड़ गई कि पड़त के दो दिन बहुत बुरे गुजरे। आज दिन में अदालत में एक वकील साहब कह रहे थे......स्साले केबल वाले ने ईएसपीएन ही गायब कर दिया तलाशे-तलाशे ही नहीं मिल रहा है। मैं ने कहा .... ईएसपीएन तो है बस उस की जगह बदल दी गई है। ठीक से तलाशा ही न होगा। कहने लगे ......मैं ने तो सारा टीवी स्केन कर डाला दो दिन से कहीं फुटबॉल मैच दिखाई ही नहीं दिया। ....... दिखाई कैसे देता? दो दिन से मैच थे ही नहीं। अब आज से क्वार्टर फाइनल शुरू हो रहे हैं। आज जरूर दिखेगा। और वहीं दिखेगा जहाँ पहले देख रहे थे। 
ज हमने दोनों मैच देखने की पूरी तैयारी कर ली है। सब मुवक्किलों से कह दिया है कि जिसे भी काम हो साढ़े सात के पहले आ जाए। वरना मुवक्किल न लग कर पूरे दुश्मन लगोगे। सही सलामत मुवक्किलों ने तो बात मान ली है। पर कोई अचानक ही आ टपके तो उस का क्या किया जाएगा। यह ऐन वक्त ही सोचा जाएगा। पहले से बनाई गई नीति अक्सर फुटबॉल मैच में जा कर फेल हो जाती है। वहाँ तुरतबुद्धि ही काम आती है। होता यह है कि पूरी योजना बना कर पूरी टीम के खिलाड़ी विपक्षी के  गोल तक फुटबॉल ले जाते हैं और ऐन मौके पर रक्षक गोल बचा ही नहीं लेता साथ ही अपनी टीम के खिलाड़ी को पास दे देता है और विपक्षी फुटबॉल को ऐसा पकड़ते हैं कि मिनट पूरा होने के पहले ही गोल कर डालते हैं। रणनीति धरी रह जाती है। मैं सोचता हूँ कम से कम मेरे साथ ऐसा न हो। मैच के दौरान कोई मुवक्किल आ जाए और जाए तब तक मैच ही पूरा हो ले। हाँ दूसरे मैच में इस तरह का कोई खतरा नहीं है। पर इस बात का पूरा खतरा है कि नींद आ जाए। उस की पैड़ बांधने को हम ने दिन में पन्द्रह मिनट की झपकी ले ली है। 
ज दो मैच हैं, पहला ब्राजील और हॉलेंड के बीच। यूँ हॉलेंड की टीम अच्छी है, ब्राजील को रोक सकती है। लेकिन हमारा मत ब्राजील के पक्ष में है। इसलिए नहीं कि वह टीम अच्छी नहीं है। टीम तो वह अच्छी है ही। पर उस के पक्ष में एक सब से मजबूत कारण ये है कि उस में काले खिलाड़ी अधिक संख्या में हैं। जब भी काले और गोरों के बीच मैच हो तो हम हमेशा कालों के साथ खड़े होते हैं। यह हम ने हमारे गुरूजी वकील सज्जनदास जी मोहता से सीखा। जब भी भारत का मैच वेस्टइंडीज और श्रीलंका के साथ होता था तो वे हमेशा वेस्टइंडीज या श्री लंका के साथ होते थे। यदि श्रीलंका और वेस्टइंडीज के बीच होता तो वे वेस्टइंडीज के साथ होते थे। कारण कि वेस्टइंडीजी श्रीलंकाइयों से अधिक काले हैं। पर उन का फारमूला हम पूरा न अपना पाए। जब भी भारत का मैच होता है तो अपुन का दिल फिसल जाता है। ये काले वाली थियरी गोल हो जाती है। तो पहले मैच में हम ब्राजील की तरफ होंगे।
दूसरा मैच घाना और पराग्वे के बीच है। एक तो पराग्वे के खिलाड़ी घाना वालों का मुकाबला कालेपन में नहीं कर सकते। दूसरा ये कि घाना अफ्रीका महाद्वीप की अकेली टीम मुकाबले में रह गई है। अफ्रीका सारी दुनिया के इंसानों की पैदाइश की जगह है। उस महाद्वीप की इकलौती बची टीम क्वार्टर फाइनल में बाहर हो जाए ये कतई अच्छा न लगेगा। हाँ, ये जरूर है कि बाहर हो भी जाए तो हम फुटबॉल देखना छोड़ न देंगे। वैसे भी  इस मैच को दुनिया के ज्यादातर मर्द देखने वाले हैं। आखिर पराग्वे की खूबसूरत मॉडल लारिसा रिक्वेल के जलवे पराग्वे के हर मैच के दौरान देखने को जो मिलते हैं। वे कम साहसी नहीं हैं। जहाँ फुटबॉल के नामी सितारे और अर्जेंटीना टीम के मौजूदा कोच माराडोना ने जब ये घोषणा की कि उन की टीम इस विश्वकप को हासिल कर सकी तो वे मादरजात सड़क पर दौड़ेंगे,  तो उस मुकाबले को केवल इसी हसीना ने झेला और जवाबी हमला किया कि पराग्वे विश्व चैंपियन बना तो वे भी मादरजात केवल शरीर को पराग्वे खिलाड़ियों की यूनिफॉर्म के रंग पुतवाकर स्ट्रीट में दौड़ लगाएँगी। अब हम नहीं चाहते कि इस हसीना को ऐसा करना पड़े। इस लिए हमारा वोट घाना के हक में रहेगा। काशः घाना आज के दूसरे मैच में जीत कर सेमीफाइनल खेले और इतिहास रचे।