वक्त ठहरता नहीं। अब देखिए न, अभी शाम सात बज कर अठारह मिनट पर पोस्ट प्रकाशित की थी....
चलो आज कुछ फुटबोलियायें। सात बज कर तीस मिनट पर ब्राजील और हॉलेण्ड का मैच आरंभ हुआ। नौ बज कर बीस मिनट होते उस के पहले ही खत्म हो गया। हालाँकि हम ने कोई भविष्यवाणी नहीं की थी। पर गोरे-काले के हिसाब से हम ब्राजील की तरफ थे। ब्राजील हार गया। लेकिन हम कतई उदास नहीं हुए। होना भी नहीं चाहिए। खेल को खेल की भावना से खेलना और देखना चाहिए। यूँ हम ने जो गोरे-काले का भेद किया इस लिए कोई भी हमें नस्लवादी कह सकता है। पर हम नस्लवादी हैं नहीं। बस अपने जैसे लोगों के साथ जरूर हैं। अब उदास होने का कोई कारण भी तो नहीं था। ब्राजील वैसे ही पाँच बार फुटबॉल का विश्व चैंपियन रह चुका है। आखिर दूसरों को भी अवसर तो मिलना चाहिए न? वैसे ये मौका देने की थियरी ने काम किया तो अगला मैच जो घाना और उरुग्वे के बीच होने वाला है। उस में हमारी टीम लाभ में जा सकती है।
हम ने कहा था कि हम ने मैच देखने का पूरा इंतजाम किया है कि बीच में कोई न आए। पर जो सोचते हैं वह होता कहाँ है? एक मुवक्किल को छह बजे आना था, वे आए सात बजे। खैर! उन को तो हमने पन्द्रह मिनट में विदा कर दिया और पिछली पोस्ट प्रकाशित कर दी। पर तभी सुप्रीमकोर्ट हमारा सर पर आ खड़ा हुआ और हम रंगे हाथों पकड़े गए। हुआ यूँ कि हमने पिछली पोस्ट के लिए कुछ चित्र छाँटे थे, उन में माराडोना भी के भी थे और
लारिसा रिक्वेल के भी। जब सुप्रीमकोर्ट यानी हमारी श्रीमती जी हमारे सर के पीछे थीं, तो डेस्कटॉप पर लारिसा भी थीं और वहाँ वह चित्र खुला था जो पिछले दिनों बहुचर्चित रहा है। उसे देखते ही सुप्रीमकोर्ट ने डाँट लगाई ये क्या गंदे-गंदे चित्र देखते रहते हो? जरा आटा (गेहूँ नहीं) पिसवा लाओ और देखो ये पोर्च की लाइट फ्यूज हो गई है एक नई सीएफएल लेते आना। हमारी जान जो फुटबॉल में अटकी पड़ी थी तुरंत फ्री हो गई। आखिर सुप्रीमकोर्ट के इस आदेश का कोई तोड़ हमारे पास नहीं था। कोई क्यूरेटिव पिटिशन तक का उपबंध इस कोर्ट के पास नहीं था। फिर आदेश डाँट से शुरू हुआ था। हमें तुरंत जाना पड़ा। गेहूँ का पीपा चक्की पर उतारा, सीएफएल ली और घर लौटे तो सुप्रीमकोर्ट सीरियल में अटका था। हम ने उन की जान सीरियल से छुड़ाई मैच देखने लगे तो ब्राजील एक गोल कर चुका था, हम प्रसन्न भए। ब्राजील के खिलाड़ी ऐसे खेल रहे थे जैसे फुटबॉल पर अपना नाम लिखा कर लाए हों। बेचारे हालेंडी उन के पैर तक बॉल पहुँचती भी थी तो मुश्किल से। खैर जल्दी ही आधा खेल खत्म हो गया। खाना तैयार हो चुका था। हम नहाने स्नानघर में घुस गए।
निकले तो उत्तरार्ध आरंभ हो चुका था। पर नजारा बदल चुका था। ऐसा लगता था जैसे हॉलेण्डी पैरों में बिजली भर के लाए हों और ब्राजीलियों की बिजली गायब हो चुकी हो। उस के स्थान पर उन के पैरों में चक्कियाँ बांध दी गई हों। जल्दी ही एक गोल हॉलेण्डियों ने कर दिया। हमारे दिल की धड़कन बढ़ गई। सोचते थे, एक गोल बराबर कर दिया तो क्या? अभी उतार दिया जाएगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ हालेंडियों ने एक गोल और ठोक दिया। अन्त में ब्राजील सेमीफाइनल के बाहर हुई। हमने खिलाड़ियों के चेहरे देखना शुरु किया तो वैसे ही दिखे जैसे क्रिकेट मैच हारने के बाद भारतीय खिलाड़ियों के होते हैं। इस समानता को देख कर हम प्रसन्न हुए। आखिर हमने यूँ ही ब्राजील की टीम का पक्ष नहीं लिया था। हम ने उदासी को पास फटकने भी नहीं दिया।
अब बारह बजने का इंतजार है। जब अगला मैच होना है। हम जानते हैं कि घाना के चाँसेज बहुत अच्छे नहीं हैं। पर कुछ नहीं कह सकते। हो सकता है, पराग्वे उरुग्वे के खिलाड़ी अपनी हेकड़ी में रह जाएँ और घाना के खिलाड़ी गोल कर जाएँ। वैसे घाना जीता तो इतिहास रचेगा। पराग्वे उरुग्वे जीता तो कोई बात नहीं और हार गया तो भी कोई बात नहीं। आखिर वह दो बार फीफा विश्व चैम्पियन रह चुका है और दो बार ओलम्पिक चैम्पियन भी।
चलते-चलते, अभी-अभी
उधर बज्ज़ पर प्रेतभंजक जी हमें रंगभेदी की ट्रॉफी से नवाज चुके हैं।
पुनश्चः
उरुग्वे और घाना के मैच के अर्धविराम के बीच से....
इधर हम रात बारह बजे वाला मैच देखने पहुँचे और हमारे फुटबॉल ज्ञान का भुरकस निकल पड़ा। हम सोचे थे मैच पराग्वे और घाना के बीच है पर निकला उरुग्वे और घाना के बीच। ये नाम भी एक जैसे क्यों होते हैं? बहुत ही कनफ्यूजियाते हैं। संतोष इस बात का है कि अर्धविराम के ठीक पहले गोल ठोक कर घाना एक गोल से आगे हो लिया है। लगता है इतिहास रचने के करीब है।