@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: "मकौले का भूत"

शनिवार, 6 दिसंबर 2025

"मकौले का भूत"

लघुकथा
दो दोस्त अर्जुन और सलीम यूनिवर्सिटी गार्डन में बरगद के नीचे बैठे चर्चा में लीन थे. दोनों इतिहास के विद्यार्थी, दोनों ही अपने-अपने तर्कों के हथियार से लैस.

बात लॉर्ड मकौले की शिक्षा योजना पर हो रही थी.

अर्जुन कह रहा था, "सलीम, अगर मैकाले की शिक्षा न होती, तो हम आज भी संस्कृत के श्लोकों और अरबी की आयतों में उलझे रहते. रेल, उद्योग, संविधान—सब अंग्रेज़ी शिक्षा से ही आए."

सलीम उसके कथन पर हँस पड़ा, "वाह! तो तुम कहना चाहते हो कि हमारी सारी भाषाएँ सिर्फ़ पूजा-पाठ और ग़ज़ल सुनाने के काम की थीं? संस्कृत में गणित नहीं था? फारसी में साहित्य नहीं था? अरबी में चिकित्सा नहीं थी? यह तो वही मकौले का तर्क है, ‘तीस फ़ीट के राजा और मक्खन का समुद्र’. ... न जाने कब भारत पर से मकौले का भूत विदा लेगा."

अर्जुन मुस्कराया और बोला, "अगर अंग्रेज़ी न होती, तो संसद में आज भी चार भाषाओं में बहस होती. एक मंत्री संस्कृत में बोलता, दूसरा अरबी में, तीसरा फारसी में, चौथा हिन्दुस्तानी में. जनता ताली बजाती—‘वाह, क्या विविधता है!’ लेकिन निर्णय लेने में सालों लग जाते."



"और आज क्या है?” सलीम ने पलटकर व्यंग्य किया. “मंत्री अंग्रेज़ी में बोलते हैं, जनता समझती नहीं, फिर भी ताली बजाती है. ‘वाह, क्या आधुनिकता है!’ फर्क सिर्फ़ इतना है कि पहले हम अपनी भाषा में बेखबर रहते, अब पराई भाषा में. यही तो गुलामी है."

बोलते बोलते सलीम गंभीर हो चला था, "हमारी भाषाओं में संस्कृति का अध्ययन था. वेदांत, सूफ़ी साहित्य, ग़ज़लें, दोहे; ये सब हमारी आत्मा थे. अंग्रेज़ी ने हमें उनसे काट दिया. आज बच्चे शेक्सपियर तो पढ़ते हैं, पर कबीर को नहीं. यही तो समस्या है."

सलीम को गंभीर होते देख अर्जुन शान्त स्वर में बोला, "संस्कृति बेहद ज़रूरी चीज है, किन्तु आधुनिकता भी उतनी ही जरूरी चीज है. अंग्रेज़ी ने हमें दुनिया से जोड़ा. इसी भाषा में हमने स्वतंत्रता और जनतंत्र के अर्थ सीखे और अपनी भाषाओं में अपनी संस्कृति के साथ चलते हुए आजादी के संघर्ष को आगे बढ़ाया. हमने इसी संगम को साथ लेकर आजादी हासिल की. हमने अंग्रेजी में हमने संविधान क्यों लिखा? क्योंकि अंग्रेजी में इंटरप्रिटेशन के नियम स्थिर थे, हम किसी भी अन्य भाषा में इसे लिखते तो उसकी अनेक व्याख्याएं होतीं. संविधान और कानून को प्रभावी बना पाना दुष्कर हो जाता. आज अंग्रेजी के कारण ही ह, वैश्विक मंच पर अपनी बात को मजबूती के साथ रख पाते हैं. हमारी भाषा और बोली पूरी दुनिया में कहीं भी अजनबी नहीं रहती है. और फिर संस्कृति कोई तालाब का ठहरा हुआ पानी नहीं. वह बहती हुई गंगा है जिसका रूप गंगोत्री में अलग है तो हरिद्वार में अलग, काशी में अलग तो प्रयाग में और अलग, गया में उसका रूप फिर बदलता है तो गंगासागर में बिलकुल अलग हो जाता है. संस्कृति में से बहुत कुछ हम सहेजते हुए चलते हैं, लेकिन पुराने पिछड़े मूल्यों को छोड़ते जाते हैं और उनमें नए आधुनिक और प्रगतीशील मूल्यों को जोड़ते जाते हैं. हम इतिहास के विद्यार्थी हैं, हम क्या नहीं जानते कि भारत की संस्कृति एक सी नहीं रही. वह हर युग में बदली है और बदलती रहेगी. ”

अर्जुन कुछ रुकता है तभी सलीम अपनी हाथ घड़ी में समय देख कर कहता है, “अब मैं चलूंगा, अम्मी को डाक्टर के यहाँ ले जाना है.” दोनों चल देते हैं.

उधर टीवी चैनलों पर बहस चल रही है, “हमें मैकाले की शिक्षा और अंग्रेज़ी को छोड़ना चाहिए." यह बहस अंग्रेज़ी में प्रसारित हो रही है.

आईटी दफ़्तरों में कर्मचारी कहते हैं, "हमें अपनी भाषा पर गर्व है." उसके तुरंत बाद ईमेल अंग्रेज़ी में लिखते हैं और कोडिंग तो बिना अंग्रेजी के संभव ही नहीं.

संसद में नेता कहते हैं, "हमें भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना चाहिए" इसके बाद प्रेस कांन्फ्रेंस अंग्रेजी में कह रहै हैं.

विश्वविद्यालय में छात्र नारा लगाते हैं, "हिन्दी हमारी शान है." लेकिन अपना रिज़्यूमे अंग्रेज़ी में बनाते हैं.

दो दिन बाद दोनों मित्र फिर उसी उद्यान में फिर बैठे हैं. सलीम कह रहा है, "प्रधान मंत्री तक कहते हैं कि हमें उस गुलामी को समाप्त करना है, जिसकी नींव अंग्रेजों ने रखी है. अंग्रेज़ी ने हमें मानसिक रूप से बाँध दिया है."
जवाब में अर्जुन ने व्यंग्य किया, "हाँ, और वही प्रधान मंत्री विदेश जाते हैं तो अंग्रेज़ी में भाषण देते हैं. यही विडंबना है, गुलामी को कोसते हैं, पर उसी भाषा से दुनिया को प्रभावित करते हैं."

अर्जुन की कुछ देर चुप बैठा रहा. सलीम कुछ नहीं बोला रहा था. अर्जुन ने चुप्पी तोड़ी, “अम्मी कैसी हैं? डाक्टर ने क्या कहा.”

नहीं अर्जुन भाई, अम्मी ठीक हैं, बस डाक्टर ने महीने भर बाद एक बार दिखाने को कहा था इसलिए जाना पड़ा. अब तो दवाओं में बस एक गोली रह गयी है, बाकी सब बन्द कर दी हैं.”

“चलो अम्मां की ओर से कुछ तो निश्चिन्तता हुई. तुम भी अपने अध्ययन पर पूरा ध्यान दो सकोगे” अर्जुन ने कहा. फिर अपना वक्तव्य जारी रखा.

"सलीम, ये मकौले वाला मामला बहुत आसान है, प्रधानमंत्री उसे जान बूझ कर हवा दे रहे हैं. लोग धर्मों के आधार पर लोगों को बाँट कर अपनी राजनीति चलाने की उनकी भाषा को समझने लगे हैं. इसी कारण से वे लोगों को बाँटे रखने के लिए नए नए मुद्दए लेकर आते रहते हैं. जबकि समस्या भाषा नहीं, मानसिकता है. अगर हम अंग्रेज़ी को साधन मानें और अपनी भाषा को आत्मा, तो दोनों का मेल ही हमें आगे ले जाएगा."

सलीम ने सिर हिला कर बोला, "शायद तुम सही हो. हमें अंग्रेज़ी से आधुनिकता लेनी है, पर अपनी भाषाओं से संस्कृति और आत्मगौरव." यह कह कर सलीम हँस पड़ा, अर्जुन ने भी उसके जवाब में जोर का ठहाका लगाया.
फिर अर्जुन बोला, "तो तय रहा, “अंग्रेज़ी हमारी रेल है, और अपनी भाषा हमारी आत्मा. रेल बिना आत्मा बेकार, आत्मा बिना रेल ठहरी हुई."

सलीम ने जोड़ा, "और अगर हम फिर भी बहस करते रहे, तो जनता ताली बजाएगी- ‘वाह, क्या विविधता है!’

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