@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: एकता

सोमवार, 29 दिसंबर 2025

एकता

लघुकथा

दिनेशराय द्विवेदी

मदुरा नगर निगम के एयरकंडीशंड बैठक कक्ष की शीतलता और बाहर की चिपचिपी गर्मी के बीच, पंखे की आवाज़ के सिवा कोई आवाज़ नहीं थी. आयुक्त श्रीवास्तव ने निविदा के कागजात पर नज़र दौड़ाई. "मिलाप तेवटिया, तुम्हारी दर राज्य की न्यूनतम मजदूरी दर से भी पाँच प्रतिशत कम है. यह कैसे?"

मिलाप तेवटिया, जिसकी आँखों में तीस साल के अनुभव की चालाकी थी, मुस्कुराया. "सर, मैनेजमेंट है. हम स्मार्ट तरीके से काम करेंगे."

मुख्य स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. चौधरी ने चश्मा सहलाते हुए कहा, "यह धार्मिक नगर है, तेवटिया. तीर्थयात्री देश-विदेश से आते हैं. सफाई पर कोई समझौता नहीं."

"डॉक्टर साहब," तेवटिया आगे झुका, "आप लोग बस अपना कमीशन समय पर पहुँचने की चिंता करें. बाकी मैं संभाल लूँगा. पर व्यापार में दिल नहीं, दिमाग चलता है, सर!"


आयुक्त और डॉक्टर की नज़रें मिलीं. साल भर के लिए नगर की सफाई का ठेका मिलाप तेवटिया को मिल गया.

अगले सोमवार सुबह, मधुवन रोड के कूड़ा संग्रहण केंद्र पर पचास मजदूर इकट्ठे थे. तेवटिया ने ऊँची आवाज़ में कहा, " वेतन मिलेगा, रोज दो सौ, जो काम बताया जाए उसे करना होगा, चाहे चार घंटे में करो या छह घंटे में या आठ घंटे में. जो माने ठीक, जो नहीं माने, आज ही जाए."

रामलाल, जिसकी बेटी बुखार से तप रही थी, आगे बढ़ा. "साहब, आधे दिन की मजदूरी में..."

"तुझे पता है बाहर कितने लोग बेरोजगार हैं?" तेवटिया ने उसे घूरकर देखा. रामलाल पीछे हट गया. दो सौ रुपये में दवाई तो मिल जाएगी.

दो महीने बाद, मदुरा की गलियों में यत्र-तत्र कूड़े के ढेर दिखने लगे. आराम घाट पर बदबू, मंदिर के सामने उड़ता प्लास्टिक. शिकायतें पार्षद शर्मा तक पहुँचीं.

"तेवटिया, मेरे वार्ड में शिकायतें हैं."

"चिंता मत कीजिए, साहब." तेवटिया ने लिफाफा आगे बढ़ाया. "यह इस महीने का. और आपके भतीजे की नौकरी लग गई है."

शर्मा ने लिफाफा ड्रॉयर में रख लिया. "पर सफाई का ध्यान रखना. चुनाव दूर नहीं."

रामलाल और साथियों की हालत खराब हो रही थी. एक दिन, जब तेवटिया ने डाँटा, तो रामलाल ने हिम्मत करके कहा, "साहब, पूरा काम करेंगे, पर पूरी मजदूरी चाहिए."

"कल से तेरी जरूरत नहीं." तेवटिया बोला.

उस शाम, बीस मजदूर नगर निगम के सामने धरने पर बैठ गए. मोहन ने रामलाल से कहा, "मेरे बाप का ऑपरेशन टल गया इस कम मजदूरी में."

"मेरी बेटी की दवाई..." रामलाल ने जवाब दिया.

स्थानीय अखबार ने खबर छापी: "पवित्र नगर में अशुद्ध व्यवहार."

मोहन ने सुझाव दिया, "चलो स्थायी कर्मचारियों की यूनियन से मिलते हैं."

नगर निगम कर्मचारी यूनियन के अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह ने उनकी बात सुनकर कहा, "तुम ठेकेदार के गुलाम बन गए हो. हमें एक साथ लड़ना होगा."

जब तेवटिया ने माँगें नहीं मानीं, तो सभी ने हड़ताल कर दी.

तीन दिन में मदुरा की स्थिति भयावह हो गई. जैसे पवित्र नगर ने अपनी पवित्रता उतार फेंकी हो.

नागरिक समूहों की आपात बैठक में समाजसेवी डॉ. मेहता, जो पहले भी श्रमिक हकों के लिए लड़ चुके थे, बोले, "यह मजदूरों के शोषण और नागरिकों से लगातार किए जा रहे छल की समस्या है. वे मजदूरों के शोषण के साथ साथ हम नागरिकों से जुटाए गए कोष का भी दुरुपयोग कर रहे हैं. हमें एकजुट होना होगा."

नगर निगम बोर्ड की आपात बैठक में, जब महापौर ने तेवटिया का ठेका रद्द करने का प्रस्ताव रखा, तो पार्षद शर्मा भड़क गए.

तभी सुरेंद्र सिंह ने कक्ष में प्रवेश किया, हाथ में दस्तावेज.

"महोदय, यह रजिस्टर है जिसमें कमीशन का हिसाब है: आयुक्त साहब को पचास हज़ार, डॉ. चौधरी को तीस हज़ार, पार्षदों को दस-दस हज़ार."

कमरा सन्नाटे में डूब गया.

अगले दिन, कलेक्ट्रेट के सामने पांच हज़ार नागरिक और सभी मजदूर इकट्ठे हुए. रामलाल ने माइक पकड़ा.

"हम मदुरा को स्वच्छ रखना चाहते हैं. पर हमें इंसान की तरह जीने का अधिकार चाहिए."

डॉ. मेहता बोले, "यह संघर्ष हर मदुरावासी का है."

समाचार राजधानी तक पहुँचा. मुख्यमंत्री कार्यालय से आदेश आया: नगर निगम बोर्ड भंग, तेवटिया का ठेका रद्द, आयुक्त और स्वास्थ्य अधिकारी निलंबित, नई निविदा प्रक्रिया शुरु होगी तब तक मजदूरों को सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन पर नगर निगम काम कराएगा.

मजदूरों ने विजय जलूस निकाला. जलूस के बाद सुरेंद्र सिंह ने मजदूरों से बात की, "साथियों, आज हमने एक लड़ाई जीती है. पर असली लड़ाई अब शुरू होगी. नया ठेकेदार आएगा, वह भी शोषण से नहीं चूकेगा."

रामलाल ने पूछा, "तो फिर हमने क्या जीता?"

"हमने एकता सीखी," सुरेंद्र ने कहा. "और याद रहे, जब मजदूर और नागरिक एक साथ खड़े हों, तो एकता से ज्यादा मजबूत कुछ नहीं होता. यह एकता... यही इस संघर्ष की असली कमाई है."

रामलाल ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। उसकी बेटी अब ठीक थी - न सिर्फ बुखार से, बल्कि उस डर से भी जो तेवटिया की आवाज़ में था. और आज, उसे लगा कि नगर की स्वच्छता का रास्ता न केवल गलियों की सफाई से, बल्कि इस एकता से भी गुज़रता है.

कोई टिप्पणी नहीं: