@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: गंडक

मंगलवार, 12 अक्टूबर 2010

गंडक

यूँ तो गंडक कुत्ते को कहते हैं।
लेकिन शिवराम इस खबरी कविता में क्या बता रहे हैं?
जानिए ....


गंडक
  • शिवराम

करौली जिले के 
करणपुर गाँव में
लोग शेर को
गंडक कहते हैं

घने जंगल में बसे 
इस गाँव में 
शेर आ जाते हैं
लोग लाठी तान कर 
फटकारते हैं
और गंडक भाग जाता है

वैसे ही जैसे आम गाँवों में 
कुत्ते भाग जाते हैं।

7 टिप्‍पणियां:

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

गंदक तो एक नदी का नाम भी है। पूर्वी उत्तरप्रदेश और पश्चिमी चम्पारण (बिहार) के लिए बहुत नुकसानदेह हुआ करती है। बूढ़ी गंडक को नारायणी नदी भी कहा जाता है जो क्षेत्र के लिए एक अभिशाप सरीखी है। एक छॊटी गंडक भी है जिस में बालू खनन का धंधा बहुत जोरों पर होता है।

शिवराम जी की कविता बहुत अच्छी है।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नये प्रतीक हैं इस कविता में।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत कुछ कह दिया इस कविता मे शिवराम जी ने , बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद

अजित वडनेरकर ने कहा…

गंडक हमारे उमठवाड़ में भी कुत्ते को कहते हैं। बल्कि कल्पनाशील लोगों द्वारा तो हक़ीर सी लगती कोई भी संज्ञा कई बार गंडक के दायरे में ला दी जाती है।

बेहद विचारशील कविता। शिवरामजी हमेशा याद आएंगे और उनकी याद आते ही हम यहां आएंगे।

विष्णु बैरागी ने कहा…

ऐसी विसंगत समानताऍं खूब मिलती हैं। मालवी/राजस्‍थानी का 'नवरा' (फुरसती), गुजराती में दूल्‍हा/पति हो जाता है।
बहरहाल, शिवरामजी की कविता तो सदैव की तरह लाजवाब ही है।

निर्मला कपिला ने कहा…

शिवराम जी की रचनायें कुछ शब्दों मे ही बहुत गहरी बात कह देती हैं। धन्यवाद।

उम्मतें ने कहा…

प्रवीण पाण्डेय से सहमत !