@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: जुलाई 2013

बुधवार, 3 जुलाई 2013

धरती पिराती है

'कविता'


धरती के अंतर में
धधक रही ज्वाला के
धकियाने से निकले 

गूमड़ हैं,     पहाड़

मदहोश इंसानो! 

जरा हौले से 
चढ़ा करो इन पर
धरती पिराती है,

जब भी पक जाते हैं, गूमड़

तो फूट  पड़ते हैं।
  • दिनेशराय द्विवेदी