@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: जून 2013

शुक्रवार, 28 जून 2013

मुसीबत गलत पार्किंग की

कुछ दिनों से एक समस्या सामने आने लगी।  मेरे मकान के गेट के ठीक सामने सड़क के दूसरी ओर कोई अक्सर एक गाड़ी पार्क कर जाता है।  उस के बाद इतना स्थान शेष नहीं रहता कि मैं अपनी कार को अपने घर से बाहर निकाल सकूँ या बाहर रहे तो घर के पोर्च में ला कर खड़ी कर सकूँ।  घर के बाहर सड़क पर अपना वाहन पार्क करना बहुत बेहूदा लगता है।  सप्ताह भर पहले यह पहचान हुई की वह वाहन किस व्यक्ति के अधिकार में है। फिर एक दिन उस ने अपना वाहन वहाँ खड़ा किया ही था कि मेरी निगाह पड़ गई। मैं ने उसे समझाया कि मेरे गेट के सामने वाहन खड़ा करने में मुझे अपनी कार निकालने में समस्या आती है। कुछ आगे सरका कर खड़ी कर दी जाए तो सामने की सड़़क से इधर उधर मुड़ते समय सामने आने वाले से टक्कर की संभावना बनी रहती है। मैं ने उसे कहा कि वह मेरे मकान के गेट के सामने का स्थान छोड़ कर कुछ दूर उस की गाड़ी खड़ी कर दे तो किसी को कोई परेशानी नहीं होगी। अगले दिन से गाड़ी मेरे बताए स्थान पर या अन्यत्र कहीं खड़ी होने लगी। मुझे लगा कि मेरी परेशानी मिट गई।

ल सुबह जब मैं अदालत जाने के लिए कार निकालने लगा तो गेट के सामने गा़ड़ी फिर खड़ी थी। मैं परेशान कैसे अपनी कार निकालूँ।  मैं उस गाड़ी के के घर गया तो वहाँ सिर्फ बुजुर्ग महिलाएँ थीं।  वे कहने लगीं कि "भैया ने गलती से खड़ी कर दी होगी, कहीं इधर उधर चला गया होगा, आएगा तब हटवा देंगे। पर मैं तो "भैया" के आने तक रुक नहीं सकता था। मैं ने जैसे तैसे अपने गेट के बाहर के रेम्प पर से कार को कुदा कर निकाला। नतीजा ये हुआ कि रेम्प की दो टाइल्स टूट कर निकल गईँ।


दोपहर बाद सवा तीन बजे लौटा तब भी वह गाड़ी वहीँ खड़ी थी। मुझे बहुत गुस्सा आया। मैं ने भी अपनी कार उस के बराबर ला कर खड़ी की ही थी कि अचानक बंद हो गई। उसे किनारे लगाने के लिए स्टार्ट करना चाहा तो उस ने स्टार्ट होने से मना कर दिया। अब सड़क से मोटर बाइक तो निकल सकती थी पर और कोई वाहन नहीं। एक कार वाले सज्जन आए तो उन से कहा कि मेरी कार तो सेल्फ स्टार्ट नहीं हो रही है,  धक्का लगाना पड़ेगा वे दूसरी वाली गाड़ी हटवा लें। वे बेचारे अपनी कार को दूसरी ओर से निकाल कर ले गए। गलत पार्किंग वाले सज्जन के घर तलाश किया तो किसी ने दरवाजा ही न खोला। बाद में पता लगा कि गाड़ी के प्रभारी बाहर गए हैं कब आएंगे पता नहीं। 


खिर मैं ने पुलिस थाने को फोन किया तो वहाँ से जवाब मिला रिपोर्ट करने थाने आना पड़ेगा। जब कि इस में थाने जाने वाली कोई बात नहीं थी। सूचना मिलने पर सड़क से यातायात बाधा हटाने का काम पुलिस का है। उसे तुरन्त आना चाहिए था। खैर!


मैं ने पुलिस थानाधिकारी और पुलिस अधीक्षक  को अपनी शिकायत ई-मेल से भेज दी।  एक घंटे तक उस का कोई असर न होने पर उसी शिकायत को यह लिखते हुए पुलिस कंट्रोल रूम को फॉरवर्ड किया कि घंटा भर हो गया है, वाहन अभी हटा नहीं है।  मैं अपना वाहन रात को सड़क पर नहीं छोड़ सकता। घंटे भर बाद एक पुलिस जीप आई जिस में एक अधिकारी और चार सिपाही थे। उन्हों ने गाड़ी वाले का घर पता किया और उस के घऱ जा कर पूछा तो वह फिर नदारद था। अब गाड़ी कैसे हटाई जाए। अब तो गा़ड़ी हटाने वाली क्रेन के बगैर यह सब नहीं हो सकता था। मैं ने क्रेन मंगाने का सुझाव दिया। लेकिन सुझाव जल्दी ही गाड़ी वाले के परिजनों तक पहुँच गया। सन्देश आया कि चाबी घऱ पर है। तब एक सिपाही उस के घर से चाबी ले कर आया और गाड़ी को वहाँ से हटाया। मैं ने राहत की साँस ली और अपनी कार को ला कर पोर्च में खड़ा किया। 


मोहल्ले में गलत पार्किंग वाली गाड़ी पुलिस द्वारा आ कर हटाने से यह संदेश गया कि इस तरह की छोटी मोटी परेशानियों के लिए भी पुलिस को शिकायत की जा सकती है, और पुलिस ऐसी शिकायत पर नागरिकों की मदद भी करती है। दूसरे पुलिस के प्रति विश्वास में वृद्धि हुई। तीसरे इस तरह केवल अपनी सुविधा देखने और पड़ौसियों को कष्ट पहुँचाने वालों के कान खड़े हुए कि पुलिस हस्तक्षेप कर सकती है। गाड़ी हटाना तो ठीक है पर गाड़ी जब्त कर पुलिस कंट्रोल रूम पर भी ले जाई जा सकती थी जहाँ से वह बिना जुर्माने के नहीं छूटती।

सोमवार, 24 जून 2013

बहुत भद्द होती है जी देश की


                                       -शिवराम

कैसा चुगद लगता है वह
जब चरित्र की बातें करता है
देशभक्ति का उपदेश देते वक्त तो
एकदम हास्यास्पद हो जाता है
जब धर्म पर बोलता है
तो हँसने लगते हैं लोग

नेताओं को और कुछ आए न आए
अभिनय अवश्य आना चाहिए

पुराने नेता कितने अनुभवी होते थे
कुछ भी बोलते थे
ऐसा लगता था कि
बिलकुल सच बोल रहे हैं
एकदम सत्यमेव जयते

लेकिन आजकल
अनाड़ी और नौसिखिया लोग चले आ रहे हैं
तुरन्त पकड़े जाते हैं
मामला बोलने-चालने का हो
या लेन-देन का

मेरी इच्छा होती है कि
इन से नाटक कराऊँ
रिहर्सल में कुछ तो सीखेंगे

वैसे, सरकारों को चाहिए कि
गौशालाओं की तर्ज पर हर जिले में
रंगशालाएँ खोलें

प्रशिक्षण शिविर लगाएँ
राजनीति में प्रवेश के लिए
अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए
कम से कम थ्री इयर्स डिप्लोमा
इन ऐक्टिंग एण्ड गिविंग एण्ड टेकिंग


बहुत भद्द होती है जी देश की
संसद की और हमारी-आप की।