यूँ तो गंडक कुत्ते को कहते हैं।
लेकिन शिवराम इस खबरी कविता में क्या बता रहे हैं?
जानिए ....
गंडक
- शिवराम
करौली जिले के
करणपुर गाँव में
लोग शेर को
गंडक कहते हैं
घने जंगल में बसे
इस गाँव में
इस गाँव में
शेर आ जाते हैं
लोग लाठी तान कर
फटकारते हैं
और गंडक भाग जाता है
वैसे ही जैसे आम गाँवों में
कुत्ते भाग जाते हैं।
गंदक तो एक नदी का नाम भी है। पूर्वी उत्तरप्रदेश और पश्चिमी चम्पारण (बिहार) के लिए बहुत नुकसानदेह हुआ करती है। बूढ़ी गंडक को नारायणी नदी भी कहा जाता है जो क्षेत्र के लिए एक अभिशाप सरीखी है। एक छॊटी गंडक भी है जिस में बालू खनन का धंधा बहुत जोरों पर होता है।
जवाब देंहटाएंशिवराम जी की कविता बहुत अच्छी है।
नये प्रतीक हैं इस कविता में।
जवाब देंहटाएंबहुत कुछ कह दिया इस कविता मे शिवराम जी ने , बहुत सुंदर कविता, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंगंडक हमारे उमठवाड़ में भी कुत्ते को कहते हैं। बल्कि कल्पनाशील लोगों द्वारा तो हक़ीर सी लगती कोई भी संज्ञा कई बार गंडक के दायरे में ला दी जाती है।
जवाब देंहटाएंबेहद विचारशील कविता। शिवरामजी हमेशा याद आएंगे और उनकी याद आते ही हम यहां आएंगे।
ऐसी विसंगत समानताऍं खूब मिलती हैं। मालवी/राजस्थानी का 'नवरा' (फुरसती), गुजराती में दूल्हा/पति हो जाता है।
जवाब देंहटाएंबहरहाल, शिवरामजी की कविता तो सदैव की तरह लाजवाब ही है।
शिवराम जी की रचनायें कुछ शब्दों मे ही बहुत गहरी बात कह देती हैं। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंप्रवीण पाण्डेय से सहमत !
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