अनवरत
क्या बतलाएँ दुनिया वालो! क्या-क्या देखा है हमने ...!
पेज
(यहां ले जाएं ...)
Home
▼
शनिवार, 20 दिसंबर 2025
‘निकाह मंजिल’
›
लघुकथा दिनेशराय द्विवेदी ‘निकाह मंजिल’ पुराने शहर के बीचों बीच खड़ी एक सदियों पुरानी इमारत थी, इसके सब ओर रास्ते गुजरते थे. पुरानी होने के ...
"बेटियाँ"
›
'लघुकथा' दिनेशराय द्विवेदी गाँव का चौधरी अपनी बेटी को मार कर खेत के किनारे नाले में फेंक आया था. लोगों ने कहा, “ठीक किया, बेटी बेज...
शुक्रवार, 19 दिसंबर 2025
स्त्रियाँ देवियाँ नहीं
›
लघुकथा दिनेशराय द्विवेदी आशा अचानक अपने दो साल के बेटे को लेकर मायके पहुँची. उसे आए देख वहाँ सभी चौंके. जब उसने बताया कि कैसे क्या हुआ था तो...
4 टिप्पणियां:
सेवाद का सफ़र
›
लघुकथा दिनेशराय द्विवेदी रात गहराई हुई थी. तानाशाही की दीवारें ऊँची और ऊँची होती जाती थीं, पहरेदारों की आँखें चौकस थीं, अब तो बहुत से तकनीक...
गुरुवार, 18 दिसंबर 2025
कोहरे और धुंध की क़ैद
›
लघुकथा दिनेशराय द्विवेदी देश की राजधानी कहे जाने वाले इस शहर की सुबह अब उजाले से नहीं, धुएँ और धूल से शुरू होती है. हवा में घुला ज़हर हर साँ...
बुधवार, 17 दिसंबर 2025
अब नहीं लौटना
›
लघुकथा दिनेशराय द्विवेदी महानगर की ऊँची गगनचुम्बी इमारतों के बीच यदि झुग्गियों का दरिया न बह रह रहा हो तो शायद महानगर की अबाध गति यकायक थम ...
2 टिप्पणियां:
मंगलवार, 16 दिसंबर 2025
पेंशन का सौदा
›
लघुकथा दिनेशराय द्विवेदी रामकिशोर नगर परिषद का एक साधारण कर्मचारी था. मेहनती, ईमानदार, और अपने काम से संतुष्ट. उसे प्रमोशन मिला, लेकिन वेत...
›
मुख्यपृष्ठ
वेब वर्शन देखें