@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शिवराम की कविताएँ "बड़ा आदमी"

शनिवार, 4 अक्टूबर 2008

शिवराम की कविताएँ "बड़ा आदमी"

शिवराम एक सामाजिक रुप से सजग और सक्रिय इंसान हैं। मुझे उन की निकट मित्रता पर गर्व है। वे नाटककार, नाट्यनिर्देशक, साहित्यकार, कवि, सधे हुए आलोचक, संपादक और अच्छे संगठक हैं। सुप्रसिद्ध नुक्कड़ नाटक "जनता पागल हो गई है" के इस लेखक से 1975 में आपातकाल के ठीक पहले मेरे जन्म नगर बाराँ में परिचय हुआ। उन के निर्देशन में नाटक में काम किया। पूरे आपातकाल में वे मुझ से खिंचे रहे और मैं उन की ओर खिंचता रहा। आपातकाल के बाद की गतिविधियों से निकटता बढ़ी और हम मित्र हो गए। उन का स्थानांतरण कोटा हुआ और मैं भी कुछ माह बाद ही कोटा आ गया वकालत करने। तब से यह मित्रता सतत चली आ रही है। दो दिन पहले उन के यहाँ जाना हुआ बहुत दिनों बाद उन के साथ तीन घंटे बैठा। बहुत बातें हुई। आप के साथ बांटने के लिए उन की कुछ कविताएँ ले आया हूँ। शिवराम आज से एक सप्ताह के लिए मुंबई में हैं। पेश हैं उन की कुछ कविताएँ "बड़ा आदमी" शीर्षक से ...
बड़ा आदमी 
(1)
बड़े आदमी का 
सब कुछ बड़ा होता है
बड़ी होती हैं आँखें
बड़े होते हैं दाँत
बड़े होते हैं नाखून
बड़ी होती हैं जीभ
बड़े होते हैं जूते
बड़ी होती हैं महत्वाकांक्षाएँ

बड़े आदमी का 
सब कुछ बड़ा होता है
बस दिल छोटा होता है
और शायद दिमाग भी

(2)

वह बड़ा आदमी है
क्यों कि उस की लम्बाई बड़ी है
वह बड़ा आदमी है 
क्यों कि उस की उम्र बड़ी है
वह बड़ा आदमी है
क्यों कि उस की जाति बड़ी है

वह बड़ा आदमी है 
क्यों कि उस का पद बड़ा है

और सब से बड़ी बात यह कि 
वह मर्द है 
औरत या किन्नर नहीं है

(3)

बड़े आदमी से डरो
वह तुम्हें थप्पड़ मार सकता है
भरी सभा में

बड़े आदमी डरो 
वह तुम्हें धुन सकता है
बीच सड़क पर

बड़े आदमी से डरो 
वह तुम्हारी जीभ निकाल कर 
रख सकता है 
तुम्हारे ही हाथों में

तुम्हारी नाक चबा सकता है
तुम्हारी नौकरी खा सकता है

वह कुछ भी कर सकता है
डरो ! बड़े आदमी से डरो !
डरो ! अपने आस पास से
वहाँ भी हो सकता है 
कोई बड़ा आदमी

(4)
एक बड़े आदमी ने 
अपना 'बड़ा' मिटा दिया 
वह आदमी हो गया

एक आदमी 
'बड़े' होने की कोशिश में जुट गया
वह 'बड़ा हो गया
आदमी नहीं रहा
****************************************************************************

20 टिप्‍पणियां:

विजय गौड़ ने कहा…

अच्छी कविताऎं है। बहुत बहुत बधाई शिवराम जी को और आपका आभार इन्हें पढवाने के लिये।

Arvind Mishra ने कहा…

बड़ा दहशतनाक है बड़े आदमी का का यह परिचय !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

"बड़ा आदमी " बखूबी बता रहे हैं शिवराम भाई....

रंजू भाटिया ने कहा…

वह बड़ा आदमी है
क्यों कि उस का पद बड़ा है

और सब से बड़ी बात यह कि
वह मर्द है
औरत या किन्नर नहीं है

बहुत जबरदस्त लिखा हुआ है ..यहाँ इसको पढ़वाने के लिए शुक्रिया दिनेश जी

बेनामी ने कहा…

एक बड़े आदमी ने
अपना 'बड़ा' मिटा दिया
वह आदमी हो गया


एक आदमी
'बड़े' होने की कोशिश में जुट गया
वह 'बड़ा हो गया
आदमी नहीं रहा

excellent thanks for sharing this on the blog

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

अच्छी कवितायें। धन्यवाद शिवराम जी से परिचय कराने को।
आपने नाटक विधा भी आजमा रखी है - यह जान आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई।

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बड़े आदमी का
सब कुछ बड़ा होता है
बस दिल छोटा होता है
और शायद दिमाग भी

शिवराम जी से परिचय और उनकी कविता पढ़वाने ke लिए आपको बहुत धन्यवाद !

डॉ .अनुराग ने कहा…

बड़ा होना आसान है आदमी बने रहना मुश्किल

अजित वडनेरकर ने कहा…

शुक्रिया शिवरामजी की कविताएं पढ़वाने के लिए ...
नभाटा के दफ्तर में और भीमसिंह अस्पताल के सामने इनके दफ्तर में
कुछ मुलाकातें स्मृतियों में हैं। कामरेड ढांडा के घर पर भी एक मुलाकात हुई थी। शिवरामजी नें राजस्थान में रंगजगत के लिए बहुत समय़ दिया है। कवि तो बढ़िया हैं ही। उन्हें नमस्कार कहें....

Unknown ने कहा…

अच्छी कविता है. आज कल ऐसे बड़े आदमियों की संख्या बढ़ती जा रही है. मजे की बात यह है कि बड़े आदमियों में भी वर्ग बन गए हैं - वीआइपी, वीवीआइपी.

महेन्द्र मिश्र ने कहा…

शिवराम जी की बढ़िया कविता
प्रस्तुत करने के लिए आभार
साथी ही शिवराम जी को भी बधाई .

बेनामी ने कहा…

शिवराम जी की अच्छी कवितायें पढ़ाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया दिनेशजी ।

Satish Saxena ने कहा…

आपके मित्र की कविता पढ़वाने के लिए शुक्रिया ! सच्चाई व्यक्त की गयी है !

Udan Tashtari ने कहा…

बड़ा आदमी बड़ा होता है
क्योंकि लोग उसे बड़ा मानते हैं.


--सारी रचनाऐं बेहतरीन हैं. आभार शिवराम जी इस प्रस्तुति का!!

Atul CHATURVEDI ने कहा…

shivram ji kee rachnadharmita bebak aur belag hai ,sadhuvad !

PD ने कहा…

मेरे मुताबिक जो इस तरह खुद के बड़े होने का परिचय देता है वो कभी बड़ा नहीं है.. सबसे छोटा है.. बड़ा दिल वाले से बड़ा और कोई नहीं हो सकता है.. वैसे पसंद आई यह कविता..

विष्णु बैरागी ने कहा…

अच्‍छी कविताएं । जिन्‍दगी के तजुर्बे इनमें सामने आते हैं । चौथी कविता तो आदमी को आदमी होने की सलाह बडी शिद्दत से देती है ।

BrijmohanShrivastava ने कहा…

न अच्छा लगा न बुरा /न प्रफुल्लता मिली न क्रोध आया /न नया मिला न कुछ पुराना मिला / न कुछ महसूस किया /कुछ आपका लिखा पढ़ते तो टिपियाते

प्रशांत मलिक ने कहा…

एक बड़े आदमी ने
अपना 'बड़ा' मिटा दिया
वह आदमी हो गया


एक आदमी
'बड़े' होने की कोशिश में जुट गया
वह 'बड़ा हो गया
आदमी नहीं रहा


ye ashshi lagi

Girish Kumar Billore ने कहा…

ati uttam dada
saadar naman
बड़े आदमी का
सब कुछ बड़ा होता है
बस दिल छोटा होता है
और शायद दिमाग भी