@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: लिव-इन-रिलेशनशिप क्या पसंद का मामला नहीं है?

मंगलवार, 21 अक्टूबर 2008

लिव-इन-रिलेशनशिप क्या पसंद का मामला नहीं है?

मैं ने लिव-इन के बारे में कानूनी पहलू रखे। लेकिन इस संबंध के लिए एक गंभीर और महत्वपूर्ण सोच की तलाश में था। मैं पढ़ता रहा और पढ़ता रहा। मुझे जो पहला आलेख इस विषय पर गंभीरता के साथ विमर्श करता हुआ लगा, वह भोपाल के एक पत्रकार ब्लॉगर अजय का था। अजय ने यह आलेख अपने मित्रों और सहकर्मियों के साथ लम्बी बहस और इस विषय पर बहुत कुछ पढ़ने के बाद लिखा है। मैं उन के इस आलेख से बहुत प्रभावित हुआ और उन के तर्कों से सहमत भी।
मैं अजय से परिचित नहीं हूँ, लेकिन उन के अंग्रेजी ब्लॉग कैफे चॉट (cafechat) पर जो कुछ उन्हों ने इस संबंध में लिखा है वह बहुत महत्वपूर्ण है।
वे प्रश्न करते हैं कि क्या हम ने वास्तव में इस लिव-इन संबंध को समझते हैं? इस के बाद करीब पन्द्रह प्रश्नों को सामने रखते हुए अंत में कहते हैं कि क्या इस संबंध अर्थ यह है कि यह आवश्यक रूप से शारीरिक संबंधों के साथ आरंभ होता है? और यही वह बात है जो इस शोरगुल के पीछे खड़ी है या कथित विचारकों के जेहन में है। वे कहते हैं कि इस तरह आप विवाहपूर्व और विवाहेतर संबंधों को कानूनी शक्ल दे देंगे। पर क्या इस तरह के संबंध कानूनी शक्ल   दिए बिना भी कानून के अस्तित्व में नहीं है? और क्या इसे कानून की शक्ल दे देने के बाद भी बने नहीं रहेंगे? यदि हम भारत में किए गए सर्वेक्षणों को देखें तो आप के जबड़े घुटनों पर आ जाएंगे।
उन्होंने तथ्य प्रस्तुत करते हुए अनेक प्रश्न सामने रखे हैं।
जैसे ....
क्या गारंटी है कि पुरुष विवाह होने के बाद अपनी संगिनी को धोखा नहीं देगा?
क्या विवाह दो ऐसे व्यक्तियों को जो एक दूसरे के पसीने की गंध से वाकिफ नहीं उन्हें साथ सोने को कह देता है। क्या इसे पसंद का मामला नहीं होना चाहिए।
इस तरह के अनेक प्रश्नों पर वे विचार करते हैं। यदि आप को इस विषय में रुचि है और अंग्रेजी पढ़ने में आप को कोई परेशानी नहीं है तो आप को यह आलेख अवश्य ही पढ़ना चाहिए।  
आप चाहें तो यहाँ Is It Not A Matter Of Choice? पर जा कर उसे स्वयं पढ़ सकते हैं। हालांकि वे जो लिख रहे हैं यह उस का पहला भाग है। मैं समझता हूँ सभी भाग रोचक, महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक होंगे।

11 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

सचमुच यह विषय गंभीर चिंतन मनन की मांग करता है !

डॉ .अनुराग ने कहा…

आपसे यही उम्मीद थी.......शुक्रिया ...

Unknown ने कहा…

लिव-इन या कोई और भी सम्बन्ध पसंद का मामला ही होता है. मेरे विचार में लिव-इन अपने कर्तव्यों को नकारने और केवल अधिकारों की बात करने की सोच का मूर्त रूप है.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बेहद उपयोगी और सामयिक जानकारी ! धन्यवाद !

स्वप्नदर्शी ने कहा…

I feel that in traditional society also there are many instances of live-in relationships. In many casts typically the vidow is allowed to live-in with the yonger son of the family, sometimes married and sometimes unmarried. these arrangements are traditionally excepted. A;lso sometimes bigamy is a accepted phenomenon among indians, if first wife is childless.
just to cite what is happening beyond the boundary of the middle class

बवाल ने कहा…

बिल्कुल ठीक है जी. मगर हमें अब प्रश्न उपस्थित न करके विडंबनाओं और वर्जनाओं से निजात पाने के बारे में तेजी से सोचना शुरू कर देना चाहिए. है कि नहीं ?

PD ने कहा…

पढ़ा उसे.. अच्छा लगा और नई जानकारी भी मिली..

Sanjeev ने कहा…

आपकी पसंद नापसंद यदि सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने लगे तभी सरकार या समाज को कुछ कदम उठाने होते हैं। कुछ ऐसा ही महाराष्ट्र में हुआ है।

विष्णु बैरागी ने कहा…

आप हम सबकी अपेक्षा से अध्रिक जानकारियां दे रहे हैं लेकिन मुझे लगता है कि हम लोग देह से आगे नहीं जा पा रहे हैं ।

Ajay K. Garg ने कहा…

Respected Dwivedi ji,
Thank you for your comments and encouragement. I will surely write more about what I have gathered after discussions, and will inform you accordingly. I have another blog in Hindi. please do visit http://bemaqsad.blogspot.com

seema gupta ने कहा…

दीप मल्लिका दीपावली - आपके परिवारजनों, मित्रों, स्नेहीजनों व शुभ चिंतकों के लिये सुख, समृद्धि, शांति व धन-वैभव दायक हो॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ इसी कामना के साथ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰ दीपावली एवं नव वर्ष की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं