@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: "सगाई कम गोद भराई उर्फ रिंग सेरेमनी"

सोमवार, 17 नवंबर 2008

"सगाई कम गोद भराई उर्फ रिंग सेरेमनी"

सुबह खटपट से नींद खुली। देखा तो हॉल के बाहर बरतन खड़क रहे थे, मैं उठ बैठा। रजाई से बाहर निकलते ही सर्दी का अहसास हुआ। सोचा हमें आवंटित कमरा खुला हो तो कुछ गरम पहनने को ले लिया जाए। बाहर निकले तो लंगर वाला गैस सुलगा कर दूध गरम कर रहा था। यानी मेरी कॉफी का इन्तजाम हो चुका था, दूध उबलते ही एक कप में चीनी और कॉफी ही तो मिलानी थी। मैं वहीं काउंटर पर खड़ा हो गया। सामने दूसरे तल पर जा रही सीढ़ियों पर छोटी वाली साली और बींदणी बैठी थी,  शायद चाय के इन्तजार में।  मोबाइल में समय देखा तो सवा चार हो रहे थे।  बींदणी कार्तिक में मुहँ-अंधेरे ही स्नान कर रही थी। मैं ने कहा -सात-आठ किलोमीटर दूर चन्द्रभागा में स्नान करा लाते हैं, आज विष्णु जी ससुराल से लौट रहे हैं, बड़ा पुण्य होगा, हम भी बहते जल में हाथ धो लेंगे। तो बोली -कल अखबार में पढ़ा था कि वहाँ पानी साफ नहीं है। यहाँ बाथरूम में ट्यूबवेल का साफ ताजा पानी आ रहा है, यहीं स्नान करेंगे। उन्हों ने चाय पी और कमरे वालों के लिए साथ ले ली।

कॉफी पी कर हम अपने कमरे में आए। बींदणी स्नान करने घुस गईथी। सालियाँ वहीं किसी कमरे में चली गईं जहाँ सुबह की संध्याएँ गाई जा रही थी। विनायक स्थापना होने के बाद से यह परंपरा है कि सुबह होने के पहले ही घर और पड़ोस की स्त्रियाँ मिल कर देवताओं के गीत और कुछ विवाह गीत गाती हैं। यूँ कहिए गीत से ही विवाह  वाले घर में दिन शुरू होता है। जब तक कमरे वाले सब स्नान न कर लें तब तक हमारा नंबर आने वाला न था। कमरे में बिस्तर खाली थे। रात केवल तीन घंटे ही सो सका था, मैं वापस रजाई के हवाले हो लिया। 

मैं स्नान कर के नीचे उतरा तब तक नौ बज चुके थे। नाश्ते की तैयारी थी। उस के बाद सगाई होनी थी। वैसे सगाई तो शादी होने के बहुत पहले ही हो जाया करती थी, जो रिश्ते के पक्के होने का प्रमाण होती थी। लेकिन सगाई अब दिखावे की होती है, और बहुत सारे लोग उसे न देखें तो उस का कोई अर्थ नहीं। इस लिए आम तौर पर लग्न झिलाने के दिन या  फिर शादी के दिन उस की रस्म पूरी की जाती है। देखने वाले यह देखते हैं कि सगाई में क्या क्या दिया गया? सगाई के पहले या बाद दुल्हन की गोद भरने की रस्म होती थी, उस का अस्तित्व अब खतरे में है। उस के साथ-साथ अंगूठी पहनाने की रस्म होने लगी है उसे नया नाम "रिंग सेरेमनी"  दे दिया गया है। यह काम भी सगाई के उपरांत निपटा लिया जाता है। कुल मिला कर समारोह  "सगाई कम गोद भराई उर्फ रिंग सेरेमनी" हो चुका है।

उधर शेड वाले हॉल  में जहाँ रात को भोजन हुआ था। वहाँ सगाई की तैयारी थी। आधे हॉल में गद्दे और उस पर सफेद चांदनी बिछी थी। एक तरफ बीचों बीच दूल्हे की चौकी थी, पंडित जी बैठे तैयारी कर रहे थे। बाकी आधे हॉल में दूल्हे की चौकी की तरफ मुहँ किये पचास कुर्सियाँ करीने से लगी थीं। हॉल के बाहर के मैदान में मेजें सजी थीं जिन पर नाश्ता लगाया जा रहा था। कुछ ही देर में नाश्ता शुरू हो गया। कोटा की जैसी कचौड़ियां, दही- चटनी, खम्मन ढोकला, कलाकंद और सेव-नमकीन। सब कुछ स्वादिष्ट था। जी चाहता था सब कुछ डट कर खाएँ, पर पेट और दिन में बनने वाले कच्चे भोजन का खयाल कर केवल चखा और कॉफी पी ली। अब तक बहुत मेहमान आ चुके थे। मेरे ससुर जी के अलावा ससुराल पूरी ही आ चुकी थी, साले, उन की पत्नियाँ (सालाहेलियाँ), उन के बच्चे, ब्याहता लड़कियाँ और उन के पति, बच्चे। नजदीक और दूर के लगभग सभी रिश्तेदार, सब आपस में बतियाने लगे। नए नए समाचार मिल रहे थे। किस किस का तबादला हुआ? किसे नौकरी मिली? कौन पास हुआ,  कौन फेल? किस का रिश्ता किस से होने जा रहा है?  आने वाले दो महिनों में किस किस की शादियाँ होने वाली हैं। कौन कौन पिता, दादा, मामा, नाना, चाचा, ताऊ, बुआ, मौसी आदि बन गए हैं।

नाश्ता चल रहा था कि उधर सगाई में चल कर बैठने का हुकुम हो गया। दुल्हन के पिता गैर हाजिर थे। उन्हों ने रात को ही मुझे बता दिया था कि वे अकलेरा जाएँगे जहाँ उन का पदस्थापन है क्यों कि उस दिन निर्वाचन की महत्वपूर्ण बैठक है और उस से मुक्ति नहीं मिल सकी है। मुझे कह गए थे सगाई के वक्त उन की कमी मैं पूरी करूँ। मै वहाँ पहुँचा तो, लेकिन वहाँ दुल्हन के मामा मौजूद थे। मैं वह जिम्मेदारी उन्हें पूरी करने को कह कर आजाद तो हो गया लेकिन इस जिम्मेदारी से बरी नहीं कि सब कुछ ठीक से संपन्न हो जाए। मैं अपने फूफाजी के पास आ बैठा और बतियाने लगा। वे अपने बड़े बेटे के साथ कोटा से आए थे जो यहीं पड़ोस के मेडीकल कॉलेज अस्पताल में सीनियर स्पेशलिस्ट रेडियोलॉजी है। उसे सप्ताह में दो दिन इमर्जेंसी सेवा के लिए झालावाड़ रहना पड़ता है, एक दिन अवकाश का मिल जाता है, सप्ताह में दो-तीन दिन अदालतों में गवाहियों के लिए जाना पड़ता है। बचा एक दिन उस दिन वह कोटा से आ कर डूयूटी कर वापस चला जाता है। बाकी दिन अस्पताल जूनियर स्पेशलिस्ट से काम चलाता है। हर सरकारी नौकरी में ये अतिरिक्त काम न केवल मूल काम में बाधक हो जाते हैं अपितु काम पर से केन्द्रीयता को हटा देते हैं। पूफाजी से ही पता लगा उन का एक बेटा अब भोपाल से रायपुर स्थानांतरित हो गया है और भिलाई रहता है। वहाँ तो हमारे संपर्क के एक ब्लागर भी हैं। तो हमने दोनों से फोन पर बात की और दोनों को मिलवा दिया। दोनों बहुत प्रसन्न हुए।

उधर सगाई का काम चलता रहा। दूल्हे और उस के परिजनों को सुंदर कपड़ों और उपहार दिए गए। सगाई संपन्न होते ही दूल्हे की दायीं ओर एक चौकी और लगाई गई वहाँ  दुल्हन को बैठाया गया। वहाँ दोनों ने एक दूसरे को अंगूठियाँ पहनाई गईं और दुल्हन की गोद भरी गई। यह समारोह भी संपन्न हुआ। मैं ने फूफाजी को कहा -शादी के पहले तक दूल्हा लेफ्टिस्ट होता है और शादी के बाद दुल्हन (पत्नी)। वे कहने लगे बात सही है। (जारी)

13 टिप्‍पणियां:

कुन्नू सिंह ने कहा…

वाह पढ के बहुत मजा आया। एक दम विस्तार से लीखे हैं।
रजाई के नाम से तो और अच्छा लगता है। मन करता है सोया रहूं रजाई से निकलू ही नही।

"एक बेटा अब भोपाल से रायपुर स्थानांतरित हो गया है और भिलाई रहता है"
भिलाई भी बहुत बढीया जगह है।

"दही, चटनी..." अब तो बहुत तेज भूख लग गया।

बहुत बहुत बधाई। एस साथ बहुत सारा बधाई!

Abhishek Ojha ने कहा…

बहुत विस्तार से लिख रहे हैं आप. देर-सवेर हम भी पढ़ ही रहे हैं.

Kavita Vachaknavee ने कहा…

आनन्दं आनन्दं।

Smart Indian ने कहा…

देवनागरी बाएँ से दायें की ओर पढी जाती है. इसीलिये पत्नी पति के बाईं और रहती है ताकि वह पति से आगे रहे यथा - सीता-राम, राधे-श्याम, गौरी-शंकर आदि. यही भारतीय परम्परा है और यही धर्मानुकूल उचित स्थान है.

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत कसावट के साथ चल रहा है आपका सीरियल तो ! लगता है टी.आर.पी. में बालिका वधु को खतरा पैदा कर देगा ! :) बहुत बढिया , चलने दीजिये इसी फ्लो में ! शुभकामनाएं !

बेनामी ने कहा…

बढिया विवरण चल रहा है।

एक "सगाई कम गोद भराई कम रिंग सेरेमनी" का प्रत्यक्ष अनुभव अभी हाल ही में हमें भी हुआ :)

रंजू भाटिया ने कहा…

बढ़िया चल रही है यह श्रृंखला ...अच्छा लगा रहा है पढ़ना खाने के जिक्र भूख बढ़ा देते हैं बस यही कष्ट है इसको पढने से :)

सागर नाहर ने कहा…

सुबह सुबह गाए जाने वाले गीतों को हमारे यहाँ मेवाड़ (मगरा) में "सपना" कहते हैं। हमारी माताजी अक्सर सुबह सुबह सपने गाने के लिए जाती रहती है इसलिए पता है।
और हाँ सालाहेलियों को भी हिन्दी में "सलहज" कहा जाता है।
बकिया टनाटन पोस्ट .. पढ़े जा रहे हैं।
:)

डॉ .अनुराग ने कहा…

jaari rakhiye!

विष्णु बैरागी ने कहा…

शोभाजी को मेरी ओर से विशेष रूप से साधुवाद और अभिनन्‍दन अर्पित कीजिएगा । वे धर्म को रूढ अर्थ में नहीं ले रही हैं । तीर्थ क्षेत्र के गन्‍दे पानी में स्‍नान करने के बजाय, होटल में, नल के पानी से ही स्‍नान करने का उनका निर्णय 'धर्म के प्रति वैज्ञानिक दृष्टि' को रेखांकित करता है । हमारे रूढीवादी समाज में मैं इसे 'क्रान्तिकारी कदम' से कम नहीं मानता ।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

रिंग सेरेमनी - बड़ा बढ़िया शब्द है। भारतीय जीवन में कहीं तो अंग्रेजी ठिली!:)

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी मजा आ रहा है. ्लगता है हम भी शादी वाले घर मै आप के साथ बेठे हे.
धन्यवाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

बहुत बढिया रहा ये विवरण भी
-- लावण्या