@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: ट्रेन मिल गयी

रविवार, 14 दिसंबर 2025

ट्रेन मिल गयी

लघुकथा :


दिनेशराय द्विवेदी
ह सात दिनों से मुम्बई में था. आज यहाँ उसका आख़िरी दिन था. रात नौ बजे की ट्रेन मुंबई सेंट्रल से थी. सुबह उसने मेज़बान से पूछा,

“आज का पूरा दिन खाली है, क्या किया जाए?”

मेज़बान ने मुस्कराकर कहा,

“एलिफेंटा केव्ज चले जाइए. समुद्र के बीच हैं, गेटवे ऑफ इंडिया से नाव मिल जाएगी.”

वह लोकल पकड़कर विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन पहुँचा और पैदल गेटवे ऑफ इण्डिया तक चला गया. टिकट लिया और थोड़ी देर बाद नाव में बैठ गया. नाव तट से दूर हुई तो समुद्र की लहरें और तेज़ हवाएँ उसे रोमांचित करने लगीं. बाल हवा में उड़ रहे थे. नाव में दस-पंद्रह किशोर भी थे, जो पिकनिक के लिए एलिफेंटा जा रहे थे. नाव में ही उन से परिचय हुआ. नाव एलीफेंटा पहुँचती तब तक किशोरों से उसकी दोस्ती भी हो चुकी थी.

वह सीमित समय में पूरा द्वीप घूमना चाहता था. पर उसकी जेब गाइड के लिए पैसे खर्च करने को तैयार नहीं थी. किशोरों ने कहा,



“आप हमारे साथ घूमिए, हम सब दिखा देंगे हमसे बेहतर गाइड कौन होगा.

दिन भर वह किशोरों के साथ ही सब साथ घूमते रहे. गुफाओं की भव्यता, द्वीप की सुंदरता और किशोरों की चहल-पहल ने उसे आनंदित कर दिया.

शाम ढलने लगी. पाँच बजने को थे. जब वे तट पर लौटे तो टिकट खिड़की पर लंबी कतार देखकर उसका चेहरा उतर गया. मन में हिसाब लगाया,

“कम से कम एक घंटा लाइन में लगेगा, सात बजे तक नाव मिलेगी. आधे घंटे में गेटवे पहुँचा भी तो अंधेरी पहुँचते-पहुँचते साढ़े आठ बजेंगे. सामान लेकर ट्रेन छूटने के पहले सेंट्रल पहुँचना असंभव था. ट्रेन छूटना तय था.”

उसके चेहरे पर उदासी देख एक किशोर ने पूछा,

“अंकल, आप इतने परेशान क्यों हैं?”

उसने धीमी आवाज़ में कहा,

“रात नौ बजे ट्रेन है. अगर टिकट लेने में देर हो गई तो ट्रेन छूट जाएगी.”

किशोर ने तुरंत साथियों को बताया. उनमें से एक बोला,

“घबराइए मत अंकल, आपको अगली नाव में बिठा देंगे.”

एक किशोर उससे पैसे लेकर टिकट खिड़की तक गया. वहाँ लगी कतार में खिड़की से चौथी जगह पर टिकट लेने को खड़ी महिला से उसने विनती की,

“आंटी, मदद कर दीजिए. ये अंकल राजस्थान से आए हैं. रात नौ बजे ट्रेन है. लाइन में लगेंगे तो ट्रेन छूट जाएगी. आप इनके लिए टिकट ले लीजिए.”

महिला ने बिना झिझक टिकट लिया और किशोर को थमा दिया. उसकी चिंता मिट गई. अगली नाव में बैठकर वह गेटवे पहुँचा. वहाँ से दौड़ते हुए लोकल पकड़ी, फिर बस. अंधेरी पहुँचा तो मेज़बान ने कहा,

“खाना तैयार है, खा लो.”

उसने घबराकर कहा,

“ट्रेन छूट जाएगी.”

मेज़बान हँसकर बोले,

“नहीं छूटेगी. ट्रेन बोरीवली भी रुकती है. वहाँ से साढ़े दस बजे चलेगी. हम साथ खाना खाएँगे, फिर मैं कार से आपको बोरीवली छोड़ दूँगा.”

उसकी साँस में साँस आई. खाना खाकर वे निकले. मेज़बान ने उसे बोरीवली स्टेशन ट्रेन आने के पंद्रह मिनट पहले पहुँचा दिया. उसे ट्रेन मिल गई.

1 टिप्पणी:

Sweta sinha ने कहा…

आखिरकार ट्रेन मिल ही गयी ,रोचक कथा।
सादर।
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नमस्ते,
आपकी लिखी रचना रविवार १५ दिसम्बर २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।