@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: शेर और भैंस

रविवार, 10 अक्टूबर 2010

शेर और भैंस

शिवराम की एक कविता .................


शेर और भैंस

  • शिवराम

जिस जंगल में शेर होता है
वहाँ भैंसे झुण्ड में रहती हैं
जब विश्राम करती हैं तो 
गोल घेरा बना कर बैठती हैं
चौकस और चौकन्नी रहती हैं
मुहँ बाहर की ओर

भैंसे शेर से नहीं डरतीं
शेर भैंसों को सुरक्षा व्यूह से 
डरता है
दुस्साहस करता है
तो अक्सर मारा जाता है

हम भैंस का दूध पीते हैं
और गली के कुत्तों से डरते हैं।

8 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

हम भैंस का दूध पीते हैं
और गली के कुत्तों से डरते हैं।
बहुत सुंदर ढंग से शिवराम जी ने इस कविता मे समाज की कमजोरी को बताया,
धन्यवाद इस सुंदर कविता के लिये

शरद कोकास ने कहा…

यह मनुष्य को उसकी स्थिति का अहसास दिलाती हुई कविता है ..वह शेर है ना कोई इनकी सोई हुई दुम हिलादे । शिवराम जी के जनगीत और नाटकों के अंश भी दीजियेगा ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

सुंदर. मन:स्थिति का सही दर्पण है यह कविता.

विष्णु बैरागी ने कहा…

जन सामान्‍य की मानसिकता का कितनी गहन अनुभूति शिवरामजी को थी, यही बताती है यह छोटी सी कविता।

Arvind Mishra ने कहा…

सभी भैंस का दूध कहाँ पीते हैं ..कुछ गाय का कुछ बकरी का पीते हैं ..कुछ मुझ जैसे दूध पीते ही नहीं ....बछ्ड़ें फिर क्या पीएगें
कुछ छठी का दूध पीते हैं जो भैंस के दूध से ज्यादा जरुरी है ......

Abhishek Ojha ने कहा…

शिवराम की इस रचना का उदहारण यू ट्यूब के एक विडिओ में अभी देखा था.

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सुन्दर और सारगर्भित कविता।

उम्मतें ने कहा…

झकझोर देने वाली कविता !