@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: बिलाग जगत कै ताईँ बड़ी सँकराँत को राम राम! आज पढ़ो दाभाई दुर्गादान सींग जी को हाड़ौती को गीत

गुरुवार, 14 जनवरी 2010

बिलाग जगत कै ताईँ बड़ी सँकराँत को राम राम! आज पढ़ो दाभाई दुर्गादान सींग जी को हाड़ौती को गीत

सब कै ताईँ बड़ी सँकराँत को घणो घणो राम राम !

ब्लागीरी की सुरूआत सूँ ई, एक नियम आपूँ आप बणग्यो। कै म्हूँ ईं दन अनवरत की पोस्ट म्हारी बोली हाड़ौती मैं ही मांडूँ छूँ। या बड़ी सँकरात अश्याँ छे के ईं दन सूँ सूरजनाराण उत्तरायण प्रवेश मानाँ छाँ अर सर्दी कम होबो सुरू हो जावे छे। हाड़ौती म्हाइने सँकरात कश्याँ मनाई जावे छे या जाणबा कारणे आप सब अनवरत की 14.01.2008 अर 14.01.2009 की पोस्टाँ पढ़ो तो घणी आछी। आप थोड़ी भौत हाड़ौती नै भी समझ ज्यागा। बस य्हाँ तारीखाँ पै चटको लगाबा की देर छै, आप आपूँ आप  पोस्ट पै फूग ज्यागा।

ज म्हूँ य्हाँ आप कै ताईं हाड़ौती का वरिष्ट कवि दुर्गादान सिंह जी सूँ मलाबो छाऊँ छूँ। वै हाड़ौती का ई न्हँ, सारा राजस्थान अर देस भर का लाड़ला कवि छै। व्ह जब मंच सूँ कविता को पाठ करै छे तो अश्याँ लागे छे जश्याँ साक्षता सुरसती जुबान पै आ बैठी। व्हाँ को फोटू तो म्हारै ताँई न्ह मल सक्यो। पण व्हाँका हाड़ौती का गीत म्हारे पास छे। व्हाँ में सूँ ई एक गीत य्हाँ आपका पढ़बा कै कारणे म्हेल रियो छूँ। 

म्हाँ व्हाँसूँ उमर में छोटा व्हाँके ताँईं दाभाई दुर्गादान जी ख्हाँ छाँ। व्हाँ का हाडौती गीताँ म्हँ हाडौती की श्रमजीवी लुगायाँ को रूप, श्रम अर विपदा को बरणन छै, उश्यो औठे ख्हाँ भी देखबा में न मलै।  एक गीत य्हाँ आप के सामने प्रस्तुत छै। उश्याँ तो सब की समझ में आ जावेगो। पण न्हँ आवे तो शिकायत जरूर कर ज्यो। जीसूँ उँ को हिन्दी अनुवाद फेर खदी आप के सामने रखबा की कोसिस करूँगो। तो व्हाँको मंच पै सब सूँ ज्यादा पसंद करबा हाळा गीताँ म्हँ सूँ एक गीत आप कै सामने छे। ईं में एक बाप अपणी बेटी सूँ क्हे रियो छे कै ........

....... आप खुद ही काने बाँच ल्यो .....

 बेटी
(हाड़ौती गीत) 

  • दुर्गादान सिंह गौड़
अरी !
जद मांडी तहरीर ब्याव की
मंडग्या थारा कुळ अर खाँप
भाई मंड्यो दलाल्या ऊपर
अर कूँळे मंडग्या माँ अर बाप

थोड़ा लेख लिख्या बिधना नें
थोड़ा मंडग्या आपूँ आप
थँईं बूँतबा लेखे कोयल !
बणग्या नाळा नाळा नाप

जा ऐ सासरे जा बेटी!
लूँण-तेल नें गा बेटी
सब  ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।


वे क्हवे छे, तू बोले छे,
छानी नँ रह जाणे कै
क्यूँ धधके छे, कझळी कझळी,
बानी न्ह हो जाणे कै



मत उफणे तेजाब सरीखी,
पाणी न्ह हो जाणे कै

क्यूँ बागे मोड़ी-मारकणी,
श्याणी न्हँ हो जाणे कै
उल्टी आज हवा बेटी
छाती बांध तवा बेटी
सब  ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।

घणी हरख सूँ थारो सगपण
ठाँम ठिकाणे जोड़ दियो,
पण दहेज का लोभ्याँ ने
पल भर में सगपण तोड़ दियो


कुँण सूँ बूझूँ, कोई न्ह बोले 
सब ने कोहरो ओढ़ लियो
ईं दन लेखे म्हँने म्हारो
सरो खून निचोड़ दियो


वे सब सदा सवा बेटी
थारा च्यार कवा बेटी
सब  ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।

काँच कटोरा अर नैणजल,
मोती छे अर मन बेटी
दोन्यूँ कुलाँ को भार उठायाँ 
शेष नाग को फण बेटी


तुलसी, डाब, दियो अर सात्यो,
पूजा अर, हवन बेटी
कतनों भी खरचूँ तो भी म्हूँ, 
थँ सूँ नँ होऊँ उरण बेटी 


रोज आग में न्हा बेटी
रखजै राम गवा बेटी
सब  ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।

यूँ मत बैठे, थोड़ी पग ले,
झुकी झुकी गरदन ईं ताण
ज्याँ में मिनखपणों ई कोने
व्हाँ को क्यूँ अर कश्यो सम्मान

आज आदमी छोटो पड़ ग्यो,
पीड़ा हो गी माथे सुआण 
बेट्याँ को कतने भख लेगो,
यो सतियाँ को हिन्दुस्तान

जे दे थँने दुआ बेटी
व्हाँने शीश नवा बेटी
सब  ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।

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15 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

हम तो बस इतना कहे दे रहे हैं कि


लोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की आप को हार्दिक शुभकामनाये.


और संक्रांत पर दबाकर खिचड़ी चोखा खाने की तैयारी है पापड़ चटनी के साथ...फिर गुड तिल पट्टी...पतंग तो यहाँ उड़ न पायेंगे.

बवाल ने कहा…

तुलसी, डाब, दियो अर साथ्य़ो,
पूजा अर, हवन बेटी
कतनों भी खरचूँ तो भी म्हूँ,
थँ सूँ नँ होऊँ उरण बेटी

अहा सर जी,
संक्रांत पर्व क्या ही सुन्दर दिल को छू लेने वाला गीत सुनाया आपने।
क्या हाड़ौती ज़ुबान इतनी मीठी है।
दुर्गादान जी प्रणाम।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

मकर सन्क्रान्ति की शुभकामनाये . इस गीत के अनुवाद क इन्तज़ार है

विष्णु बैरागी ने कहा…

दिनेशजी, टिप्‍पणी करना मुश्किल हो रहा है। पहले ऑंसू पोंछूँ यश टिप्‍पणी करूँ। हाडौती बराबर समझ नहीं पडती किन्‍तु यह कविता तो सीधी मन में उतरती चली गई और ऑंखें बहने लगीं।
क्‍ या कहूँ - आपने सुबह-सुबह ही मन भीगो दिया। इस तरह रोना बडा अच्‍छा लग रहा है।

डॉ. मनोज मिश्र ने कहा…

सच कहूँ ,समझ न पाया.मकर संक्रांति की आप को हार्दिक शुभकामनाये.

शरद कोकास ने कहा…

हाड़ौती का सौन्दर्य इस गीत में देखने को मिलता है ।

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

दुर्गादान जी इस बेहतरीन गीत की प्रस्तुति ने संक्रांति पर्व को अनोखा बना दिया...

राज भाटिय़ा ने कहा…

हम भौत हाड़ौती नै भी समझ ज्यागा।
लेकिन जब आप बोलेगे तो शायद समझ जाये गे.
लोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाये.

उम्मतें ने कहा…

हाडौती के मामले में हम तो अंगूठा छाप हैं बस इतना ही समझे की हमने मुबारक बाद पहुँचाने में देर कर दी ! अब देर से ही सही हमारी गुड तिल भरी शुभकामनायें कबूल फरमाइये !

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

जा ऐ सासरे जा बेटी!
लूँण-तेल नें गा बेटी
सब ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।।


बेहद मार्मिक गीत है, इसका हिंदी अनुवाद आप अपनी सुविधानुसार इसी पोस्ट मे edit करके लगादें तो सभी इसके भावों को समझ पायेंगे. बेहद सार्थक और लाजवाब रचना है. आभार.

आपको मकर सक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं.

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

जे दे थँने दुआ बेटी
व्हाँने शीश नवा बेटी
सब ने रख जे ताती रोटी
अर तू गाळ्याँ खा बेटी।

बेटी को दरद बेटी रो बाप ही जाणे छे,
बस आज तो आंख्याँ म्ह पाणी आग्यो।

समय चक्र ने कहा…

बहुत सुन्दर . थोड़ी थोड़ी भाषा समझ में आई . मकर संक्रांति की शुभकामनाये और बधाई

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत. आपको भी मकर संक्रान्ति की शुभकामनायें.

Ashok Kumar pandey ने कहा…

बहुते कोशिश कईलीं त तनि तनि बुझाईल
जेतना बुझाईल बहुत नीक लागल

राऊर आभार!!!

निर्मला कपिला ने कहा…

maiM bhee samajh naheeM paaI magar makara saMkraaMMti kee aapako bahut bahut badhaaI