@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: बड़ी संकरात को राम राम!

बुधवार, 14 जनवरी 2009

बड़ी संकरात को राम राम!

आज मकर संक्रांति है। पिछले वर्ष मैं ने मकर संक्रान्ति पर हिन्दी की बोलियों में से एक हाड़ौती बोली में आलेख लिखा था। उसे अधिक लोग नहीं पढ़ पाए थे। कुल तीन टिप्पणियाँ प्राप्त हुई थीं। लेकिन यह बोली व्यापक रूप से राजस्थान के चार जिलों कोटा, बाराँ, बून्दी और झालावाड़ में बोली जाती है। आप का इस से परिचय हो इस लिए आज फिर से इस बोली में अपना आलेख लिखा है। हो सकता है आप को यह बोझिल लगे। लेकिन पढ़िए अवश्य ही। इस से हिन्दी की एक बोली से आप का परिचय तो होगा ही। वैसे थोड़ा प्रयास करेंगे तो समझ भी सभी आएगा। विषय भी आप को रोचक लगेगा। आप पिछले वर्ष का आलेख पढना चाहें तो यहाँ चटका लगा कर पढ़ सकते हैं। उस में हाड़ौती में संक्रान्ति के पर्व से संबंधित परंपराओं का उल्लेख है। साथ वाले मानचित्र में देश और राजस्थान में हाड़ौती की स्थिति दिखाई गई है। 



राम राम! सभी जणाँ के ताईं बड़ी सँकरात को राम राम!!
बहणाँ बरो न मानँ, के जणाँ के ताईं तो राम राम करी। पण जण्याँ के ताईं न करी। पण जणाँन मँ जण्याँ भी तो सामिल छे।

आज बड़ी संकरात छे। बड़ी अश्याँ, के सँकराताँ तो बारा होवे छे, जद जद भी भगवान सूरजनाराण एक रासी सूँ दूसरी मँ परबेस करे, तो उँ सूँ सँकरात खेवे। आसमान मँ बण्या याँ बारा घराँ का सात मालिक बताया। एक घर तो खुद भगवान सूरजनाराण को, एक घर चन्दरमाँ को, अर बाकी मंगळ जी, बुध म्हाराज, बरहस्पति जी, शुक्कर जी अर् शनि म्हाराज का दो-दो घर। 

भगवान सूरजनाराण बरस का बारा म्हींना में हर घर मँ एक म्हीनों रेह छ।  अब शनि म्हाराज व्हाँका ही बेटा छ, ज्याँ का दोन्यूँ घर लाराँ लाराँ ही पड़ छ। जी सूँ दो म्हीनाँ ताईं भगवान सूरजनाराण क ताईं बेटा क य्हाँ रेहणी पड़ छ। अब आज व्ह शनि म्हाराज का घर मँ उळगा तो दो म्हीना पाछे मार्च का म्हीनाँ में ही खड़ेगा। सूरजनाराण एक म्हींना सूँ तो गुरू म्हाराज बरहस्पति का घर म्हँ छा, अब दो म्हींना बेटा शनी का घर म्हँ रहेगा, फेर म्हींनों भर बरहस्पति का घर मं रहेगा। फेर एक म्हीनों मंगळ म्हाराज क य्हाँ, फेर एक म्हीनो शुक्कर जी क य्हाँ, फेर एक म्हीनों बुध जी क य्हाँ। ऊँ क बाद एक म्हीनों चन्दरमा जी का घर रेह र आपणा घरणे फूगगा ज्हाँ फेर एक म्हीनों रेहगा। ऊंक पाछे फेर पाछा ई बुध जी, शुक्कर जी, मंगळ जी, बरहस्पति जी ती घराँ में एक एक म्हींना म्हींना भर रेता हुया जद पाछा बेटा का घरणे पधारेगा तो अगला बरस की बड़ी संकरात आवेगी। 

उश्याँ बरस को आरंभ मंगळ सूँ होणी छावे नँ, जीसूं तेरा अपरेल नँ जद भगवान सूरजनाराण मंगळ म्हाराज का घर मँ परबेस करे तो ऊँ दन बैसाखी मनावे छे। अर ऊं दन ही सूरजनाराण का बरस को आरंभ होवे छे। ऊँ क आस पास ही आपणी गुड़ी पड़वा भी आवे छे। 

दो म्हीनाँ ताईं जद भगवान सूरजनाराण को मुकाम गुरू म्हाराज बरहस्पति जी क य्हाँ रह छ। तो कोई भी आडो ऊँळो काम करबा की मनाही छ। अब आपण परथीबासियाँ का तो सारा काम ही आडा ऊँळा होवे। जीसूँ ही आपण याँ दो म्हीनां क ताईं मळ का म्हीना ख्हाँ छाँ। अर य्हाँ में भगवद् भजन, कथा भागवत अर दान पुण्य का कामाँ क अलावा दूसरा काम न्हँ कराँ। आज ऊ एक म्हींनो पूरो होयो। आज सूँ फेर सारा काम सुरू होता। हर बरस सुरू हो ही जावे छे। पण ईं बरस आज क दन ही बरहस्पति जी खुद भी घरणे फ्हली सूँ ई बिराज रिया छे। अब दोन्यूँ को मिलण अर साथ 10 फरवरी ताँईं रहगो जीसूँ व्हाँ ताईं आडा ऊँळा काम, जासूँ आपण मंगळ काम ख्हाँ छाँ न होवेगा, जश्याँ सादी-ब्याऊ, मुंडन आदी। 

बड़ी संकरात पे अतनो ही खेबो छ!
बड़ी संकरात की फेरूँ घणी घणी राम राम!! 
 
आप को परेमी,
ऊई, दिनेसराई दुबेदी

21 टिप्‍पणियां:

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

मारा भी राम राम !!

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बड़ी संकरात की आपनै भी घणी घणी राम राम!

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

मकर संक्रान्ति मंगलमय हो जी! आपकी यह सांस्कृतिक पोस्ट बहुत भली लगी।

PD ने कहा…

कुछ भी समझ में नहीं आया.. :(

Himanshu Pandey ने कहा…

समझ में सच में नहीं आया.

राज भाटिय़ा ने कहा…

दिनेश जी आप ने तो मुझे हरियाण्वी याद दिला दी, आप की यह भाषा हरियाण्वी से बहुत मिलती है, मैने ध्यान से पढी तो सब समझ मै आ गई, बहुत अच्छी लगी.नीचे की लाइने आप की नकल की है.
बड़ी संकरात पे अतनो ही खेबो छ!
बड़ी संकरात की फेरूँ घणी घणी राम राम!!

आप को परेमी,
ऊई, राज भाटिया

Arvind Mishra ने कहा…

ई त आप बहुत अच्छी जाकारी देहेन हं लोकल बोलीमें !

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@राज भाटिया
भाटिया जी, थाँ की सँकरात की राम राम सूँ धन्न होग्यो!

भाटिया जी, मैं चाहता तो इसे हिन्दी में लिख सकता था। हिन्दी अनुवाद भी कर सकता था। लेकिन यह मेरी अपनी मातृ बोली है। इसे बोलने में कुछ स्वरों पर विशेष जोर दिया जाता है तो समझ में आ जाती है। मेरे दादा जी तो संस्कृत में कथा पढ़ते थे और सीधे लोगों को हाड़ौती में टीका कर सुनाते थे। वह मैं भी कर सकता हूँ।
लेकिन मैं ने मकर संक्रांति के दिन अनवरत की एक पोस्ट हाड़ौती में लिखने का संकल्प लिया। किसी तरह मैं अपनी मातृ बोली को स्मरण कर सकूँ। यहाँ भी अक्सर मैं इसी बोली में बोलना पसंद करता हूँ अगर सामने वाला उसे समझ सके। अपनी मातृ बोली को बोलने का आनंद ही कुछ ऐसा है। हाँ हरियाणवी हम आसानी से समझ लेते हैं तो हरियाणवी को हाड़ौती समझने में कहाँ परेशानी होनी चाहिए?

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

@ अरविंद जी,
बहुत अच्छा लगा। आपने अपनी बोली मे अपनी बात कही।
फिर से संक्रांति का राम राम!

Udan Tashtari ने कहा…

संक्राति की राम राम और शुभकामनाऐं, प्रभु.

Abhishek Ojha ने कहा…

सभी जणाँ के ताईं बड़ी सँकरात को राम राम!!

(दिनेसराई दुबेदी: भाषा में उच्चारण बदलना अक्सर मधुर ही होता है.)

समय चक्र ने कहा…

संक्रांति की ढेरो बधाई और शुभकामना . राम राम

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी ने कहा…

खिंचड़ी खाके सो गये थे। शाम को पढ़ने की फुर्सत मिली। मन प्रसन्न हो गया। ८५ प्रतिशत समझ में आ गया।

हमारी ओर से जै-जै राम..।

ghughutibasuti ने कहा…

म्हारी भी राम राम !
घुघूती बासूती

Girish Kumar Billore ने कहा…

दादा हमाई सबकी
जबलईपुर बारे सबरे ब्लागरन महेंद,गिरीश,पंकज.विजय तिअवारी और समीर भैया के सन्गै-संग माधव सिंह यादव तरपी साईं सुई "बड़ी सकरात की राम राम "

डा० अमर कुमार ने कहा…



आज तो यहाँ राम नाम की लूट मची है, पंडिज्जी !
पर, मैंने बहुतेरे सर्च मारे.. हाड़ौत का ज़िओग्रैफ़िकल डाटा न मिला !
क्या अगली किसी पोस्ट में प्रकाश डालेंगे ?
मातृभाषा हो गयी, अब मातृभूमि को तो न बिसारिये !
सादर !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

मकर सँक्राति पर आपको सपरिवार शुभकामनाएँ और ऐसे ही हाडौती बोली को जीवँत रखिये
खुश रहीये ~ जै राम जी की !

Dev ने कहा…

आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

Smart Indian ने कहा…

द्विवेदी जी, मुझे ऐसा लगता है कि पहले तो भारत में सर्वेयर जनरल ऑफ़ इंडिया के नक्शे से भिन्न नक्शा दिखाना अपराध हुआ करता था. विदेशों में रह रहे भारतीयों ने समय समय पर विरोध दर्ज कराकर कई बार नक्शों में कश्मीर और अरुणाचल की स्थिति को भारत के अंतर्गत करवाया है. मगर आजकल हिन्दी ब्लॉग पर देख रहा हूँ कि हर जगह लाइन ऑफ़ कंट्रोल को ही भारतीय सीमाओं की तरह दिखाया जा रहा है. बाकी लोगों की बात नहीं जानता मगर आपके ब्लॉग पर यह नक्शा देखकर काफी आश्चर्य हुआ. किसी भी व्यक्ति ने अपनी टिप्पणी में भी इसका ज़िक्र नहीं किया इसलिए पूछे बिना नहीं रहा गया. क्या अब यह नक्शा भारत में कानूनी और नैतिक रूप से मान्य हो गया है?

Smart Indian ने कहा…

नक्शा बदलने का धन्यवाद!

Kavita Vachaknavee ने कहा…

विलम्ब से यहाँ पहुँची हूँ। और आप की आरम्भिक पंक्तियों में कहे अनुसार इस अभेद को विभेद नहीं मानती हुई स्वयं को भी उस शुभकामना में सम्मिलित पाती हूँ।

हाड़ौती में सन्देश लिख कर आपने हाड़ा नरेशों और हाड़ा रानी की याद दिला दी।

भारत की सभी बोलियाँ भले ही वे हिन्दीतर भी क्यों न हों, परस्पर उत्स से ही एक हैं,जरा-सी संस्कृत या तत्समता की पृष्ठभूमि हो तो अर्थगम्य हैं सभी। फिर हाड़ौती तो हिन्दी की एक बोली है, हिन्दीतर नहीं है। कितनी लहक व मचक है इसमें। समझने में कहीं कठिनाई नहीं हुई।

आप यह क्रम बनाए रखें; भले ही यदा-कदा लिखें, पर भविष्य में लिखें अवश्य।

बल्कि आप से मेरी गुजारिश है कि आप अपना एक नया ब्लॊग बनाएँ, जिसमें हाड़ौती के अधिकतम लोकगीतों को लिपिबद्ध किया जाए। वह एक अपनी तरह का अनूठा व स्थायी महत्व का कार्य होगा। आशा करती हूँ कि आप मेरे इस स्वप्न को न नहीं कहेंगे। बोलियाँ हमारी भाषा की मूल शक्ति हैं, ऊर्जा का स्रोत हैं। पर दुर्भाग्य, कि नई पीढ़ियाँ इनकी इस शक्ति को नहीं पहचानतीं; और दूसरी बात यह भी कि हिन्दी साहित्य की मुख्यधारा में हिन्दी बेल्ट की पूरबी बोलियों का वर्चस्व रहा है, अपेक्षाकृत पश्चिमी य उत्तरी बेल्ट के।