@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: क्या है, नकारात्मक ऊर्जा ?

शनिवार, 3 जनवरी 2009

क्या है, नकारात्मक ऊर्जा ?

रिवर्तन जगत का नियम है।  यदि परिवर्तन न हो, तो समय का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।  समय है, अर्थात परिवर्तन है।  परिवर्तन की अपनी दिशा भी होती है।  या तो वह पीछे की ओर होता है, या वह आगे की ओर।  परिवर्तन में शक्ति या ऊर्जा लगती है।  परिवर्तन जगत का नियम है लेकिन फिर भी हम जगत को वैसा ही बनाए रखना चाहते हैं, जैसा कि वह है तो परिवर्तन को रोकने के लिए भी ऊर्जा की आवश्यकता होगी।

जब भी हम कोई काम करते हैं तो उस से परिवर्तन होना निश्चित है।  वह वांछित या अवांछित हो सकता है, लेकिन होता है।  जब किसी वांछित परिवर्तन के लिए हम अपनी ऊर्जा का प्रयोग करते हैं तो ऊर्जा का उपयोग उस दिशा में होना चाहिए जिस दिशा में हम परिवर्तन  चाहते हैं।  लेकिन हमारी पद्धति के कारण हमारी इच्छा के विपरीत बहुत सारी ऊर्जा विपरीत दिशा में लग कर नष्ट हो जाती है।  यह ऊर्जा हमारी इच्छानुसार काम तो आती ही नहीं अपितु वह इच्छित परिणाम प्राप्ति में बाधा और बन जाती है।  इसी ऊर्जा को जो हमारी इच्छित परिणामों में बाधा बनती है और उसे ही मैं नकारात्मक ऊर्जा समझता हूँ।

हम अपनी ऊर्जा का सायास या अनचाहे, यह नकारात्मक उपयोग करते चलते हैं और जीवन में बहुत सी ऊर्जा नष्ट कर बैठते हैं।  इस से वांछित परिणाम तो मिलते नहीं, उन के मिलने में देरी होती है।  माध्यमिक कक्षाओं तक सभी ने विज्ञान पढ़ा है।  जब हम बल और गति पढ़ रहे थे।  तब एक बात पढ़ाई गई थी कि किसी भी वस्तु को धक्का देने में अधिक ऊर्जा लगती है बनिस्पत उस वस्तु को खींचने में।  यह नकारात्मक ऊर्जा का एक अच्छा उदाहरण है।

क्यों रथ में घोड़े आगे होते हैं? क्यों रेल का इंजन आगे की ओर होता है? दोनों भार को खींचते हैं।  जरा इस पर विचार करें तो पाएंगे कि यदि इंजन पीछे होता और डब्बों को धकिया रहा होता तो इच्छित परिणाम के लिए हमारा ऊर्जा व्यय दुगना होता, और घोड़े रथ के पीछे जोत दिए जाते तो वे कभी रथ को धकिया ही नहीं पाते।  होता यह है कि जब हम किसी वस्तु को धक्का देते हैं तो उस वस्तु पर लगाया गया बल दो भागों में बंट जाता है।  एक भाग उस वस्तु को जिस दिशा में हटाया जा रहा है उस दिशा में और दूसरा गुरुत्वाकर्षण की दिशा में।  बल का यह दूसरा हिस्सा जो गुरुत्वार्षण की दिशा में लगता है वह वस्तु को पृथ्वी की और दबाता है।  वह नष्ट तो होता ही है साथ ही वस्तु को हटाने में बाधा भी पैदा करता है, क्यों कि यह पृथ्वी के केन्द्र की दिशा में लगता है।  जो ऊर्जा गुरुत्वाकर्षण की दिशा में यहाँ लगती है उसे हम नकारात्मक ऊर्जा कह सकते हैं।  क्यों कि यह नष्ट होते होते भी इच्छित परिणाम के विपरीत काम भी करती है।

इस के विपरीत जब हम उसी वस्तु को इच्छित दिशा में हटाने के लिए खींचते हैं।   तो भी बल दो हिस्सों में विभाजित हो जाता है।  एक खींचने की दिशा में और दूसरा गुरुत्वाकर्षण के विपरीत।  यहाँ पहला हिस्सा तो पहले की तरह इच्छित दिशा में काम करता ही है, दूसरा भाग जो पृथ्वी के केन्द्र की दिशा से विपरीत लगता है वह वस्तु को भूमि से ऊपर उठाता है।  इस तरह पहले जो ऊर्जा नष्ट हो कर बाधा पैदा कर रही थी, वह अब काम आती है और वस्तु को इच्छित दिशा की ओर ले जाने में सहजता उत्पन्न करती है।

हमारे कहे गए और लिखे गए शब्दों के साथ भी यही होता है।  यदि वे इच्छित दिशा में परिवर्तन को रोकने में इस्तेमाल हो जाते हैं।

मैं ने अपने प्रिय एक साथी चिट्ठाकार के लिए एक टिप्पणी की थी।  कि उन में बहुत ऊर्जा है, लेकिन वे नकारात्मक ऊर्जा को साथ लिए चलते हैं और परिणाम शून्य हो जाता है।  तब साथी चिट्ठाकार ने जानने के लिए प्रश्न किया कि नकारात्मक ऊर्जा से मेरा क्या तात्पर्य है?  मेरा नकारात्मक ऊर्जा से वही तात्पर्य था, जो इस आलेख में स्पष्ट किया है।

30 टिप्‍पणियां:

sarita argarey ने कहा…

आपकी जानकारी संग्रह के लिए बेहतर हो सकती है , लेकिन व्यवहार में लाने के लिए बात समझ में आना ज़रुरी है । जलेबी की तरह घुमाव इतने हैं कि समझ पाना मेरे जैसे छोटी बुद्धि के लिए मुश्किल हो रहा है । परिवर्तन नियम है लेकिन हर गलत को सही कहना ही क्या सकारात्मकता मानी जाएगी ? क्या हज़ार लोग मिलकर झूठ को सच कहने लगें तो उसकी तासीर बदल जाएगी ? परिवर्तनशील आधुनिकता में सही बात कहना नकारात्मकता..... और गलत का समर्थन ,रचनात्मकता .....?

निर्मला कपिला ने कहा…

is nakaaratmak urja se kese bachen spasht karen dhanyabaad

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

भौतिकी के नियमों का जीवन मे सरल उपयोग आपने समझाया. अति उत्कृष्ट पोस्ट.

रामराम.

अजित वडनेरकर ने कहा…

आपकी बेहतरीन पोस्टों में इसे गिनूंगा। भौतिकी के नियमों के माध्यम से जीवन दर्शन समझाया है आपने। ...सबसे बड़ी बात उसमें अंतर्निहित-सदाशयी भाव...
इसीलिए तो हम आपके मुरीद हैं वकील साब :)

Unknown ने कहा…

सर जी आप वकील हैं आपसे बातों में तो कोई जीत ही नहीं सकता, अलबत्ता घोड़े और इंजन को आगे लगाने के लिये क्या किया जाना चाहिये और किन बातों से बचना चाहिये, इसे खुलकर आसान शब्दों में स्पष्ट करें… आध्यात्मिक और वैज्ञानिक बातें समझने में मेरी बुद्धि थोड़ी कम पड़ती है…

roushan ने कहा…

नकारात्मक ऊर्जा हमारी समझ में इतनी अच्छी नही आई थी जितनी अब आई है आपकी उस टिप्पणी से हम भी सहमत हैं जिसे स्पष्ट करने में आपने ये आलेख लिखा है

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } ने कहा…

अगर सकारात्मक है तो कही नकारात्मक भी जरूर होगा . दोनों एक दुसरे के अस्तित्व के लिए जरुरी है .

गौतम राजऋषि ने कहा…

आलेख तो बहुत ही सारगर्भित लगा द्विवेदीजी,मगर फिर क्रोध का क्या?कई आक्रोश जो बस उफन कर रह जाते हैं,उनका क्या???

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप का लेख सच मै बहुत ही उपयोगी है, अगर बहस भी करे तो एक वकील से जीत नही पायेगे,इस लिये हम साधू बन कर आप की हर बात से सहमत है.
धन्यवाद

डॉ .अनुराग ने कहा…

एक विचारणीय पोस्ट .....जों वर्ष की शुरुआत में मार्गदर्शक भी. है

Unknown ने कहा…

बहुत सुंदर.......अच्छा लगा पढ़ कर.....

Arvind Mishra ने कहा…

निबंधात्मक और सधुक्कड़ी शैली के सृजनात्मक लेखन का बढियां उदाहरण -पर बहुत कुछ अमूर्त भी हैं और छद्म विग्यानाभास भी लिए हुए है .अब इंजन जहाँ भी लगेगा वही तो गाडी की अगाडी होगी ?

Himanshu Pandey ने कहा…

एक अच्छी मार्गदर्शक प्रविष्टि.

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ ने कहा…

परिवर्तन (परि+वर्तन) शब्द का अर्थ है पुनरावर्तन-पुनः पुनः आवर्तित होंना अर्थात सापेक्ष्यया स्थिर केन्द्र की ओर वापस आना। क्या कोई भी परिवर्तन केन्द्रीय व्यवस्था को मानें बिना संभव है? हम जब चलते हैं तो एक पैर को स्थिर रख दूसरा पैर आगे बढ़ाते हैं, फिर आगे बढ़ा हुआ पैर जब धरातल पर स्थिर होता है तब दूसरा पैर आगे बढ़्ता है,ऎसा न करनें पर हम गिर ही सकते हैं। इसको वैदिक वैज्ञानिकोंनें‘स्थिति-गति-आगति’सिद्धान्त के रूप में निरुपित किया है।सिद्धान्त हुआ ‘स्थिति के बिना गति नहीं हो सकती’।

ऊर्जा नष्ट नहीं होती,वह पदार्थ या कार्य रूप में परिणित हो जाती है। ऊर्जा स्व-स्वरूप में सकारात्मक या नकारात्मक नहीं होती,हाँ, उसका प्रयोग नकारात्मक या सकारात्मक, कैसे भी किया जा सकता है। क्षैतिज या सम धरातल पर किसी वस्तु को ठेलनें या खींचनें में समान गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) लगेगी किन्तु यदि अधिक दूरी तक खींचना है तो आगे से बल लगाना सुविधा जनक होता है हाँ,यदि किसी वस्तु को उठाना है तो अधिक स्थैतिक बल (Dynamic Energy) लगाना पड़ेगा। चन्द्रमा में तो गुरुत्वाकर्षण नहीं है, क्या वहाँ ऎच्छिक परिवर्तन किये जा सकते हैं? क्या वहाँ किये गये किसी भी कार्य या प्रयोग में प्रयुक्त ऊर्जा के सकारात्मक परिणाम ही होंगे?

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` ने कहा…

काश,
सकारात्मक उर्जा का ही सदा उपयोग होता रहे -
एक अच्छी पोस्ट !
आपको २००९ के नव वर्ष मेँ शुभकामना
-स स्नेह,
- लावण्या

PD ने कहा…

अजित वडनेकर जी से सहमत.. कुछ मुझे भी संकेत मिल रहे हैं..

विष्णु बैरागी ने कहा…

'दर्शन' को 'कथा' में बदलने जैसा दुरुह उपक्रम आपने सफलतापूर्वक सम्‍पन्‍न किया । भौतिकी के नियम (सरिताजी के मतानुसार) जलेबी की तरह उलझे हुए ही हैं ।
ऐसे विमर्श कई 'कोहरे' छांटने में सहायक होते हैं ।
शुक्रिया ।

अनूप शुक्ल ने कहा…

ऊर्जा का सकारात्मक इस्तेमाल किया आपने। अच्छा लेख।

Dr. Amar Jyoti ने कहा…

विज्ञान और दर्शन का अद्भुत सम्मिश्रण।
हार्दिक बधाई।

Smart Indian ने कहा…

अच्छी चर्चा रही - यहाँ पर (वर्तमान सन्दर्भ में - याद रहे कि यह भौतिकी की कक्षा नहीं है) एकाध और बात भी ध्यान देने योग्य हैं
१. घोडा अगर मालगाडी के भारी डिब्बे को चाहे आगे से खींचे चाहे पीछे से धक्का दे, हिला भी नहीं सकता है जबकि हाथी उसको धक्के दे-देकर ही गंतव्य तक पहुंचा देता है - कुल ऊर्जा का वार्धक्य बहुत महत्वपूर्ण है.
२. नकारात्मक या व्यर्थ ऊर्जा के कुछ ऐसे रूप भी हो सकते हैं जिन्हें समाप्त करना कठिन या असंभव हो जैसे की यांत्रिक कार्य में अनचाही ऊष्मा बनना. ३. सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ जी का मुद्दा महत्वपूर्ण है - सकारात्मक-नकारात्मक भी सापेक्ष हैं. जो मुझे नकारात्मक दिखता है वह मेरी आवश्यकता (या दृष्टिकोण) बदलने पर सकारात्मक भी हो सकता है. पोस्ट के उदाहरण में गुरुत्वाकर्षण या धरातल बदलने पर भी स्थिति बदल सकती है.

Smart Indian ने कहा…

@ अरविन्द मिश्र जी,
यह ज़रूरी तो नहीं - पुरानी बी एम् डब्ल्यू में इंजन पीची भी होता था. शायद और भी ऐसे वाहन रहे हों. यह ज़रूरी तो नहीं - पुराणी बी एम् डब्ल्यू में इंजन पीची भी होता था. शायद और भी ऐसे वाहन रहे हों.

Arun Arora ने कहा…

वाह जी वाह शानदार मजा आ गया . इतनी अच्छी तरह अगर हमे हमारे भौतिकी के अध्यापक पडहा पाते तो हम जरूर भौतिकी मे कुछ कर दिखाते
सुरेश जी आप लिखते रहे कम से कम आपके लेखन की धनात्मक उर्जा से द्विवेदी जी को मिली ॠणात्मक उर्जा ( न्यूटन महोदय का क्रिया की प्रतिक्रिया का सिंद्धांत यहा सीधे सीधे दिखाई दे रहा है )से द्विवेदी जी ने हमे भौतिकी तो समझाई जलेबी की तरह ही सही लेकिन आखिर मे वे गाडी को धकेल कर सीधे कर पाये :)

Arun Arora ने कहा…

माफ़ कीजीयेगा वैसे हमने भी एक आधीबार गंभीरता से पढाई की है . और हमे लग रहा है कि आप सिरे से गलत बात को ठीक वकीलो की तरह सही ठहराने मे लगे है भाई साहब बुरा ना माने
वैसे तो मुझे लग रहा है कि यह सब बात कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाने वाली ही है. लेकिन क्योंकि बात विज्ञान कि है, और मुझे ऐसा विश्वास है कि स्यूडो-साइंस विज्ञान का ज्यादा नुक्सान करती है, इसलिये सिर्फ यह बताने के लिये टिप्पणी की है कि आपने जो वैज्ञानिक सिद्धांत यहां बताया है, वह गलत है.

-- घोड़े के पीछे तांगा,
-- आदमी के पीछे रिक्शा
-- इंजन के पीछे ट्रेन

इसलिये लगाया जाता है कि घोड़े, रिक्शा चालक, ड्राइवर को सड़क दिख जाये. भाई-साहब इसमें पहला गुरुत्वाकर्षण या उसके विपरीत कोई ऊर्जा नहीं.

गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत (जो चौथी कक्षा में सीखा)
पृथ्वी हर चीज को अपनी तरफ खींचती है (उसके Mass के कारण), आप चाहे आगे जायें या पीछें, दायें या बायें, धकेलें या खीचें पृथ्वी आपको उतनी ही शक्ती से नीचे की और खीचेगी, इस शक्ती का प्रभाव तभी आप पर प्रभाव डालेगा जब आप चढ़ाई पर उतर रहे हों या चढ़ रहे हों. और वो चाहे खींचे या धकेलें बराबर होगा.

न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण शक्ति को दर्शाने के लिये एक equation बनाया - F = mg (सीखा नवीं क्लास में) यहां

F - Force
M - Mass of object
G - Gravitational constant

इसे कहते हैं न्यूटन का universal gravity equation जो कि खींचने और धकेलने वालों पर समान रूप से लागू होता है.

बाकी का मुझे पता नहीं, आपकि पोस्ट में यह बात गलत है, इसलिये बताई की बच्चों और भोले लोगों पर विज्ञान के बारे में गलत धारणा न बने.

लिजिये भाई साहब
लेकिन क्या इस्तेमाल करेंगे इसका क्योकी एक अच्छा वकील गलत को सही ठहराने मे ज्यादा दिलचस्पी लेता है :)

कुश ने कहा…

हू तो मैं भी साइन्स का स्टूडेंट तो मेरे लिए मूल विषय से ज़्यादा साइन्स की बाते रही.. अरूण जी की बात बिल्कुल सही है..

बाकी ऊर्जा तो दोनो ही ज़रूरी है.. यदि नकारत्मक ऊर्जा होगी ही नही तो सकारात्मक ऊर्जा सकारात्मक कैसे कहलाएगी..

Abhishek Ojha ने कहा…

जैसा की पंगेबाज जी ने कहा है... यह कारण स्लोप पर ही लगेगा, समतल पर नहीं. Gravitational Pull will always be neutralized by normal force on plane surface. लेकिन जो आप कहना चाहते थे वो तो सही है ही.

प्रदीप मानोरिया ने कहा…

बहुत सुंदर बहुत बहुत धन्यबाद

अजित वडनेरकर ने कहा…

सही है जी ....हम तो बात सदाशय की कर रहे हैं:) निश्चित तौर पर पोस्ट का उद्धेश्य गणितीय व्याख्या कम और व्यावहारिक सीख देना ज्यादा था। सो वकील साब का उद्देश्य तो पूरा हो रहा है। अलबत्ता कुछ लोगों को ये बताने का अवसर भी मिल गया कि वे किसी ज़माने में अच्छे स्टूडेंट थे :)

डा० अमर कुमार ने कहा…


लिखा तो चौंचक है, पंडिज्जी !
पर, आख़िर में आपने एक टुँगी छोड़ दी..
ऊर्ज़ा से लबरेज़ आपका वह प्रिय साथी ब्लागर कहीं मैं ही तो नहीं ?
बता दो भाई, आपके कहने पर तो सुधर ही जाऊँगा !

Shastri JC Philip ने कहा…

भौतिकी के एक सामान्य निरीक्षण को लेकर जिस सरल तरीके से आपने विषय प्रतिपादित किया है उसके लिए बधाई एवं अनुमोदन स्वीकार करें.

सामान्य बुद्धि से सोचने पर ऐसा लगता है कि किसी वस्तु को खीचो, उठाओं, धक्का दो, तो एक बराबर शक्ति और ऊर्जा लगेगी. लेकिन होता ऐसा नहीं है.

विषय को समझने के लिए मान कर चलें कि हम पहियायुक्त वाहन की बात कर रहे हैं -- किसी भी तरह के पहियायुक्त वाहन की चर्चा.

ऐसे एक वाहन को उठाने में सबसे अधिक शक्ति की जरूरत पडती है एवं उर्जा का कोई सकारात्मक उपयोग गाडी को चलाने में नहीं हो पाता. अत: वह ऊर्जा व्यर्थ है.

धक्क देने में उससे कम शक्ति एवं ऊर्जा की जरूरत पडती है, लेकिन यह उर्जा का सही विनिमय नहीं है.

खीचने में सबसे कम शक्ति एवं सबसे कम ऊर्जा की जरूरत पडती है अत: वाहन को गतिमान रखने के लिये यह सबसे अच्छा तरीका है.

सकारात्मक सोच द्वारा जीवन को आगे की ओर बढाते रहना जीने का सबसे अच्छा नजरिया है एवं दिनेश जी का यह उदाहरण यहां एकदम फिट बैठता है.

सस्नेह -- शास्त्री

चंदन कुमार मिश्र ने कहा…

नकारात्मकता से सकारात्मकता। समीकरण का दायाँ से बायाँ संतुलन।

कुछ लोग भौतिकी भी झाड़ गए और अजित जी की बात सही निकली। पंगेबाज नाम भी नया और मजेदार लगा।