@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: अनियमितता के लिए .......

शुक्रवार, 29 अक्टूबर 2010

अनियमितता के लिए .......

ल सुबह श्री विष्णु बैरागी जी का संदेश मिला -
कई दिनों से मुझे 'अनवरत' नहीं मिला है। कोई तकनीकी गडबड है या कुछ और - बताइएगा। 
शाम  को सतीश सक्सेना  जी ने 'अनवरत' की पोस्ट "ऊर्जा और विस्फोट" यादवचंद्र के प्रबंध काव्य "परंप...": पर संदेश छोड़ा -
कहाँ अस्तव्यस्त हो भाई जी ! नया मकान तो अब तक ठीक ठाक हो चुका होगा...? 
 दैव मेरा प्रयत्न यह रहा है कि प्रतिदिन दोनों ही ब्लागों पर कम से कम एक-एक प्रकाशन हो जाए। मैं ने बैरागी जी को उत्तर दिया  -कुछ परिस्थितियाँ ऐसी बनी हैं कि मैं चाहते हुए भी दोनों ब्लागों पर नियमित नहीं हो पा रहा हूँ, लेकिन शीघ्र ही नियमितता बनाने का प्रयत्न करूंगा। मुझे उन का त्वरित प्रत्युत्तर मिला -
......सबसे पहली बात तो यह जानकर तसल्‍ली हुई कि आप सपरिवार स्‍वस्‍थ-प्रसन्‍न हैं। ईश्‍वर सब कुछ ऐसा ही बनाए रखे। आपकी व्‍यस्‍तता की कल्‍पना तो थी किन्‍तु इतने सारे कारण एक साथ पहली ही बार मालूम हुए। निपटाने ही पडेंगे सब काम और आप को ही निपटाने पडेंगे। मित्र और साथी एक सीमा तक ही साथ दे सकते हैं ऐसे कामों में। 
मैं ने बैरागी जी को तो उत्तर दे दिया, लेकिन सतीश जी को नहीं दिया। सिर्फ इसलिए कि सभी ब्लागर मित्रों और पाठकों के मन में भी यह प्रश्न तैर रहा होगा तो क्यों न इस का उत्तर ब्लाग पर ही दिया जाए।
मेरी गैर-हाजरी के कारण अज्ञात नहीं हैं। 19 सितंबर 2010 को मैं ने अपना आवास बदला, एक अक्टूबर को  बहुमूल्य साथी और मार्गदर्शक शिवराम सदा के लिए विदा हो लिए। आवास बदलने के साथ बहुत कुछ बदला है। और 40 दिन हो जाने पर भी दिनचर्या स्थिर नहीं हो सकी है। पुराने आवास से आए सामानों में से कुछ को अभी तक अपनी पैकिंग में ही मौजूद हैं। अभी मैं जिस आवास में आया हूँ वह अस्थाई है। संभवतः मध्य नवम्बर तक नए मकान का निर्माण आरंभ हो सकेगा जो अप्रेल तक पूरा हो सकता है। तब फिर एक बार नए आवास में जाना होगा। इन्हीं अस्तव्यस्तताओं के कारण दोनों ब्लागों पर अनियमितता बनी है। मैं इस अनियमितता से निकलने का प्रयत्न कर रहा हूँ। संभवतः दीवाली तक दोनों ब्लाग नियमित हो सकें। 
ब भी कोई व्यक्ति सार्वजनिक मंच पर नियमित रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहता है तो वह बहुत से लोगों के जीवन में शामिल होता है और उस का दायित्व हो जाता है कि जो काम उस ने अपने जिम्मे ले लिए हैं उन्हें निरंतर करता रहे। मसलन कोई व्यक्ति सड़क के किनारे एक प्याऊ स्थापित करता है। कुछ ही दिनों में न केवल राहगीर अपितु आसपास के बहुत लोग उस प्याऊ पर निर्भर हो जाते हैं। प्याऊ स्थापित करने वाले और उस सुविधा का उपभोग करने वाले लोगों को इस का अहसास ही नहीं होता कि उस प्याऊ का क्या महत्व है। लेकिन अचानक एक दिन वह प्याऊ बंद मिलती है तो लोग सोचते हैं कि शायद प्याऊ पर बैठने वाले व्यक्ति को कोई काम आ गया होगा। लेकिन जब वह कुछ दिन और बंद रहती है तो लोग जानना चाहते हैं कि हुआ क्या है? यदि प्याऊ पुनः चालू हो जाती है तो लोग राहत की साँस लेते हैं। लेकिन तफ्तीश पर यह पता लगे कि प्याऊ हमेशा के लिए बंद हो चुकी है। तो लोग या तो उस प्याऊ को चलाने के लिए एक जुट हो कर नई व्यवस्था का निर्माण कर लेते हैं, अन्यथा वह हमेशा के लिए बंद हो जाती है। एक बात और हो सकती है ,कि प्याऊ स्थापित करने वाला व्यक्ति खुद यह समझने लगे कि इस के लिए स्थाई व्यवस्था होनी चाहिए और वह स्वयं ही प्याऊ को एक दीर्घकाल तक चलाने की व्यवस्था के निर्माण का प्रयत्न करे और ऐसा करने में सफल हो जाए।
फिलहाल अनवरत और तीसरा खंबा फिर से नियमित होने जा रहे हैं। लेकिन यह विचार तो बना ही है कि इन्हें नियमित ही रहना चाहिए और उस की व्यवस्था बनाना चाहिए। इस विचार को संभव बनाने के लिए मेरा प्रयत्न  सतत रहेगा।
सार्वजनिक मंच पर स्वेच्छा से लिए गए दायित्वों को यदि किसी अपरिहार्य कारणवश भी कोई व्यक्ति पूरा नहीं कर पाए तो भी वह लोगों को किसी चीज से वंचित तो करता ही है। ऐसी अवस्था में उस के पास क्षमा प्रार्थी होने के अतिरिक्त कोई अन्य उपाय नहीं हो सकता।  अनवरत और तीसरा खंबा के प्रकाशन में हुई इन अनियमितताओं के लिए सभी ब्लागर मित्रों और अपने पाठकों से क्षमा प्रार्थी हूँ, यह अनियमितता यदि अगले छह माहों में लौट-लौट कर आए तो उस के लिए भी मैं पहले से ही क्षमायाचना करता हूँ। आशा है मित्र तथा पाठक मुझे क्षमा कर देंगे, कम से कम इस बात को आत्मप्रवंचना तो नहीं ही समझेंगे।

14 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अनवरत ही रहें, यही कामना है.

Ashok Kumar pandey ने कहा…

मैं समझ सकता हूं…आप जब भी आयेंगे हम प्रतीक्षारत मिलेंगे

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सटीक उदहारण से समझा दिया है यदि अनुपस्थित हों तो सार्वजानिक तौर पर सूचना देना ज़रूरी है ...

आप अनवरत रहें यही कामना है .

राज भाटिय़ा ने कहा…

आप की हिम्मत हे जी इतने व्यस्त होने के वाजुद भी आप समय निकाल रहे हे ब्लांग के लिये, मुझे एहसास हे आप की व्यस्तता का. धन्यवाद

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

निवास बनाने में और बदलने पूरे घर की गृहस्थी हिल जाती है, आप फिर भी पोस्ट लिख पा रहे हैं, बहुत बड़ी बात है।

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

‘जब भी कोई व्यक्ति सार्वजनिक मंच पर नियमित रूप से अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहता है तो वह बहुत से लोगों के जीवन में शामिल होता है ’

हां जी, हम भी आपके नियमित पाठक हैं :)

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपने प्याऊ के उदाहरण से बहुत सटीक समझाया अपनी और पाठकों की मन वेदना को. आपकी प्याऊ अनवरत चलती रहेगी यही शुभकामना है.

रामराम

उस्ताद जी (असली पटियाला वाले) ने कहा…

27/30
गजब का संप्रेषण है इस पोस्ट में।

उम्मतें ने कहा…

उस्ताद जी ( असली पटियाले वाले ) ठीक ही कह रहे हैं :)

विष्णु बैरागी ने कहा…

मालवी की (और शायद राजस्‍थानी की भी) कहावत है (और कोई समझे न समझे, आप तो समण्‍ ही जाऍंगे) -
'जब तक जीवणा, तब तक सिवणा।' जितना बने, जैसा बने - करने की कोशिश करते रहिएगा।
लोगों की चिन्‍ता मत कीजिए। आप तो जानते ही है ' लोगों का काम है कहना।
अनवरत को फिर से देख/पढ कर अच्‍छा लगा।

विष्णु बैरागी ने कहा…

मालवी की (और शायद राजस्‍थानी की भी) कहावत है (और कोई समझे न समझे, आप तो समण्‍ ही जाऍंगे) -
'जब तक जीवणा, तब तक सिवणा।' जितना बने, जैसा बने - करने की कोशिश करते रहिएगा।
लोगों की चिन्‍ता मत कीजिए। आप तो जानते ही है ' लोगों का काम है कहना।
अनवरत को फिर से देख/पढ कर अच्‍छा लगा।

निर्मला कपिला ने कहा…

ये सिलसिला अनवरत चलता रहे इसके लिये शुभकामनायें दीपावली की भी अग्रिम शुभकामनाये।

निर्मला कपिला ने कहा…

ये सिलसिला अनवरत चलता रहे इसके लिये शुभकामनायें दीपावली की भी अग्रिम शुभकामनाये।

Satish Saxena ने कहा…

धन्यवाद भाई जी ,
यह पोस्ट उदाहरण देने योग्य है और आपके लेखन पर मुझे कोई आश्चर्य नहीं ! आपकी कलम को सादर प्रणाम !