"माटी मुळकेगी एक दिन" से शिवराम की एक और कविता ...
'कविता'
रात इतनी भी नहीं है सियाह
शिवराम
चंद्रमा की अनुपस्थिति के बावजूद
और बावजूद आसमान साफ नहीं होने के
रात इतनी भी नहीं है सियाह
कि राह ही नहीं सूझे
यहाँ-वहाँ आकाश में अभी भी
टिमटिमाते हैं तारे
और ध्रुव कभी डूबता नहीं है
पुकार-पुकार कर कहता है
बार बार
उत्तर इधर है, राहगीर!
उत्तर इधर है
न राह मंजिल है
न पड़ाव ठिकाने
जब सुबह हो
और सूरज प्रविष्ठ हो
हमारे गोलार्ध में
हमारे हाथों में हों
लहराती मशालें
हमारे कदम हों
मंजिलों को नापते हुए
हमारे तेजोदीप्त चेहरे करें
सूर्य का अभिनन्दन।
14 टिप्पणियां:
*
निश्चित रूप से रात इतनी सियाह नहीं !
**
ये वही शिवराम हैं न नाटककार?
बढिया रचना प्रेषित की है।आभार।
आदरणीय
दिनेशराय द्विवेदी जी
सादर अभिवन्दन.
अपनी रचनाएँ और अपना साहित्य प्रदर्शन तो सभी करते हैं, परंतु विरले होते हैं कि जो दूसरों के उत्कृष्ट साहित्य को सम्मान देते हुए उसे समाज के समक्ष लाते हैं.
आप ने श्री शिव राम जी कि सुंदर और आशावादी रचना से हमें भी आशान्वित किया . उन्हें तो हमारी ढेर सारी बधाई तो आप प्रेषित करें ही, आप भी हमारा आभार स्वीकरें--- इस नेक कार्य के लिए.
कुछ हृदय स्पर्शी पंक्तियाँ :-
जब सुबह हो
और सूरज प्रविष्ठ हो
हमारे गोलार्ध में
हमारे हाथों में हों
लहराती मशालें
हमारे कदम हों
मंजिलों को नापते हुए
हमारे तेजोदीप्त चेहरे करें
सूर्य का अभिनन्दन।
अच्छी लगीं.
- विजय
हमारे कदम हों
मंजिलों को नापते हुए
हमारे तेजोदीप्त चेहरे करें
सूर्य का अभिनन्दन।
साधुवाद.
आनन्द आया शिवराम जी को पढ़कर हमेशा की तरह!!
सर शिवराम जी कविता तो अद्भुत लगी ..एक दम हटके ..विशेष ..मजा आ गया ॥
अच्छी कविता
न राह मंजिल है
न पड़ाव ठिकाने
जब सुबह हो
और सूरज प्रविष्ठ हो
हमारे गोलार्ध में
हमारे हाथों में हों
लहराती मशालें
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है श्री शिवराम जी को बधाई और आपका भी धन्यवाद इतनी सुन्दर रचना पढवाने के लिये।
"और ध्रुव कभी डूबता नहीं है
पुकार-पुकार कर कहता है
बार बार
उत्तर इधर है, राहगीर!
उत्तर इधर है.."
प्रेरणा भरती पंक्तियाँ । मैं मूक हूँ । चला पड़ा हूँ ।
द्विवेदी सर,
कितना अच्छा हो ब्लॉगिंग को लोकाचारी बनाने के लिए सभी ब्लॉगर इस कविता को आत्मसात कर लें...एक-दूसरे की टांग खिंचाई बंद कर टीम की तरह आगे बढ़ें...
जय हिंद...
dwivedi ji aapko aur shivram ji ko hardik badhayi itni sundar aur hridaysparshi kavita padhwane ke liye..........aabhar.
जय आशावाद!
बाकी मशाल रोशनी के हेतु हो, राख करने को नहीं!
शिवराम जी की कविताओं में देशज शब्दों का प्रयोग बहुत अच्छा लगता है ।
ऐसी कविताऍं निराश होने से बचाती हैं।
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