पिछली पोस्ट चार कदम सूरज की ओर
पर शिवराम जी की इसी शीर्षक की कविता पर विष्णु बैरागी जी ने टिप्पणी की थी कि इस कविता का नुक्कड़ नाटकों के रूप में उपयोग किया जा सकता है। शिवराम हिन्दी के शीर्षस्थ नुक्कड़ नाटककार हैं। 'जनता पागल हो गई है' तो उन का सार्वकालिक बहुचर्चित नाटक है। जिसे नाटक की किसी भी फॉर्म में खेला जा सकता है और खेला गया है। मुझे गर्व है कि इस नाटक की अनेक प्रस्तुतियाँ मैं ने देखी हैं और कुछ प्रस्तुतियों में मुझे अभिनय का अवसर भी प्राप्त हुआ। उन के नाटकों में लोक भाषा और मुहावरों का प्रयोग तो आम बात है, लोकरंजन के तत्व भी बहुत हैं। लेकिन वे उन में गीतों का समावेश भी खूब करते हैं और इस तरह कि वे मर्म पर जा कर चोट करते हैं।
ऐसा ही एक गीत है "अंधों का गीत" जो सीधे जनता पर चोट करता है। आज प्रस्तुत है यही गीत आप के लिए। तो पढ़िए .......
अंधों का गीत
- शिवराम
अंधों के इस भव्य देश में
सब का स्वागत भाई!
दिन में भी रात यहाँ पर
बात-बात में घात यहाँ पर
लूटो-मारो, छीनो-झपटो
राह न कोई राही
अंधा राजा, अंधी पिरजा
अंधी नौकरशाही।।
एक के दो कर, दो के सौ कर
या कोई भी घोटाला कर
तिकड़म, धोखा, हेराफेरी
अंध बाजार, अंध भोक्ता
अंधी पूँजीशाही।।
अंधों के इस भव्य देश में
सब का स्वागत है भाई।
14 टिप्पणियां:
गज़ब है जी...
यहां भी शिवराम...
अंधों के इस भव्य देशं में
सब का स्वागत भाई!
गजब की रचना..
अंधों के इस भव्य देशं में
सब का स्वागत भाई!
विकट प्रहार है!!
आनन्द आ जाता है शिवराम जी को पढ़कर.
सही कहा कविवर ने ..
यह अँधेरा अब गहराता ही जा रहा है ..
भारतेंदु जी के प्रहसन '' अंधेर नगरी चौपट राजा ''
की याद आ गयी ..
................. आभार ,,,
तिकड़म, धोखा, हेराफेरी
खुली छूट है भाई
कह गयीं सारी बतियाँ
अमरेन्द्र जी ने संकेत किया सही ही ।
नाटक, प्रहसन आदि में यदि कविताओं का प्रयोग होता है तो निश्चय ही प्रस्तुति सीधे अन्दर तक पहुँच बनाती है । नुक्कड़ नाटकों के लिये शायद संप्रेषण के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्कनीक है बीच-बीच में गीतों का प्रयोग !
आभार ।
nice
अँधयुग की सुचालकता पर सुन्दर प्रहार !!!!!
गजब की रचना. शुभकामनाएं.
रामराम.
कविता तो अच्छी ही है किन्तु 'चार कदम सूरज की ओर' से पहले पढी होती तो तनिक अधिक अच्छी लगती।
एक के दो कर, दो के सौ कर
या कोई भी घोटाला कर
तिकड़म, धोखा, हेराफेरी
खुली छूट है भाई
अंध बाजार, अंध भोक्ता
अंधी पूँजीशाही।
सटीक अभिव्यज्तु है शैवराम जी को बधाई और आपका धन्यवाद
बहुत बढ़िया पोस्ट! बहुत बढ़िया प्रस्तुति है।
अंधों के इस भव्य देशं में
सब का स्वागत भाई!
सटीक चोट की है।शिवराम जी ने।
दिन में भी रात यहाँ पर
बात-बात में घात यहाँ पर
लूटो-मारो, छीनो-झपटो
राह न कोई राही
अंधा राजा, अंधी पिरजा
अंधी नौकरशाही।।
बहुत सही रचना लिखी, ओर आज का यह सच भी है, शिव राम जी ओर आप का धन्यवाद
बहुत सशक्त विधा है यह नुक्कड़ नाटक। यह जरूर है कि बेहतर समझ के लिये नुक्कड़गामी भी होना होगा।
वह यत्न कर रहे हैं।
अच्छी कविता !
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