कविता के अलावा
- शिवराम
जब जल रहा था रोम
नीरो बजा रहा था बंशी
हम लिख रहे हैं कविता
नीरो को संगीत पर कितना भरोसा था
क्या पता
हमें जरूर यकीन है
हमारी कविता पी जाएगी
सारा ताप
बचा लेगी
आदमी और आदमियत को
स्त्रियों और बच्चों को
फूलों और तितलियों को
बचा लेगी प्रेम
सभ्यता और संस्कृति
पर्यावरण और अंतःकरण
पृथ्वी को बचा लेगी
हमारी कविता
इसी उम्मीद में
हम प्रक्षेपास्त्र की तरह
दाग रहे हैं कविता
अंधेरे में अंधेरे के विरुद्ध
क्या हमारे तमाम कर्तव्यों का
विकल्प है कविता
इति श्री
नहीं, बताओ
और क्या कर रहे हो आजकल
कविता के अलावा ।
10 टिप्पणियां:
अदभुत कविता ! मैं तो कविता की इन पंक्तियों से संकल्प निश्चित कर रहा हूँ अपने कविता-कर्म का, इस विश्वास के साथ कि -
"बचा लेगी प्रेम
सभ्यता और संस्कृति
पर्यावरण और अंतःकरण
पृथ्वी को बचा लेगी
हमारी कविता"
निश्चित ही अद्भुत कविता है
हम प्रक्षेपास्त्र की तरह
दाग रहे हैं कविता
अंधेरे में अंधेरे के विरुद्ध
आभार
कविता में ये ताकत तो है ही
झकझोर देती है ये
हमें कविता के अलावा कुछ करने की जरुरत ही क्या है
G A Z A B
gazab ki soch aur dhaar ke sath aapne apni kavita me jo sawal uthaaya hai
vah anek arthon me upyogi hi nahin, balki prerak aur urjaa dene wala bhi hai
waah !
abhinandan !
कविता शिव को यथासंभव रचती है ..
कविता अ-मनुष्य को मनुष्यता की ओर
प्रेरित करती है .. मनुष्य सर्जना का मूर्त
रूप बनता है .. इसलिए कविता उस कोमलता
को सहेजती है जहाँ --- वह ---
'' बचा लेगी
आदमी और आदमियत को
स्त्रियों और बच्चों को
फूलों और तितलियों को
नदी और झरनों को ''
हाँ , कवि को सदैव सतर्क रहना
चाहिए की वह कहीं '' नीरो '' की
तरह कविता-प्रेम न करे ..
,,,,,,,,,,,, सुन्दर कविता , आभार ...
शायद कविता पर अंधविश्वास की हद तक विश्वास !
कवि की आशावादिता संक्रामक है।
अकूत आत्मविश्वास से भरी अद्भुत कविता। आपको और रचनाकार को आपत्ति न हो तो मैं इसका उपयोग करना चाहूंगा।
बचा लेगी प्रेम
सभ्यता और संस्कृति
पर्यावरण और अंतःकरण
आपके यकीन पर भरोसा करने का दिल करता है।
अँधेरे में अँधेरे के विरुद्ध और भी अँधेरा -यही अंधेरगर्दी तो मची है चहुँ ओर !
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