दस वर्ष पहले हमने नई सहस्त्राब्दी का स्वागत किया। कवि-नाटककार शिवराम ने भी हमारे साथ उस का स्वागत किया। पढ़िए मिलेनियम के स्वागत में उन की कविता जो उन के संग्रह "माटी मुळकेगी एक दिन" से ली गई है।
वैलकम मिलेनियम!
- शिवराम
जिनके बंद हो गए कारखाने
छिन गया रोजगार
जो फिरते हैं मारे मारे
आओ! उन से कहें-
चीयर्स! वैलकम मिलेनियम! हैप्पी न्यू ईयर!
जिन की उजड़ गई फसलें
नीलाम हो गए कर्ज के ट्रेक्टर
बिक गई जमीन
जो विवश हुए आत्महत्याओं के लिए
उन के वंशजों से कहें-
चीयर्स! वैलकम मिलेनियम! हैप्पी न्यू ईयर!
उन बच्चों से जिन के छूट गए स्कूल
उन लड़कियों से
जो आजन्म कुआँरी रहने को हो गई हैं अभिशप्त
उन लड़कों से
जिन की एडियाँ घिस गई हैं
काम की तलाश में
उन से कहें
चीयर्स! वैलकम मिलेनियम! हैप्पी न्यू ईयर!
10 टिप्पणियां:
हाँ हमें मानवता के चेहरे को याद कर संतुलित होते रहना चाहिए ! आभार !
विज्ञान के अंधाधुंध विकास के कारण हुए सुविधाभोगी जीवन के मध्य ये सब होना ही है!!
एक और सशक्त रचना...
बहुत दर्द है इस कविता मै, सच को कितना नजदीक से दर्शाया है.
जिन की एडियाँ घिस गई हैं
काम की तलाश में
उन से कहें
चीयर्स! वैलकम मिलेनियम! हैप्पी न्यू ईयर!
बेहतरीन ! सार्थक अभिव्यक्ति !
इस सदी के क़द से शिवराम जी के कद को तौलती कविता।
आभार
वेलकम मिलेनियम
शिवराम जी को सलाम।
हरकाती पंक्तियां:-
"उन लड़कियों से/जो आजन्म कुआँरी रहने को हो गई हैं अभिशप्त
उन लड़कों से/जिन की एडियाँ घिस गई हैं
काम की तलाश में/उन से कहें
चीयर्स! वैलकम मिलेनियम! हैप्पी न्यू ईयर"
बहुत खूब। आपकी डाक का इंतजार है....
शिवराम जी कविता हमेशा हैरत मे दाल देती है। बहुत सुन्दर सशक्त रचना के लिये उन्हें बधाई
इसमें से 'मिलेनियम' निकाल दें तो यह कविता तो आज की ही लगती है। गोया दस वर्षों में नदियों में अनगिनत क्यूसेक पानी भले ही बह गया हो लेकिन हालात तो जस के तस हैं।
शिवरामजी को साधुवाद और आपको धन्यवाद।
बहुत सही कविता.. जाफरी साहब की पंक्तियां याद आ गईं..
कौन आज़ाद हुआ/किसके माथे से ग़ुलामी की सियाही छूटी/मेरे सीने में अभी दर्द है महकूमी का/मादरे हिन्द के चेहेरे पे उदासी है वही/कौन आज़ाद हुआ!
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