कल शिवराम की कुछ अटपटी सी, लटपटी सी कविता
"सुनो भाई गप्प-सुनो भाई सप्प" आप के सामने थी। आज उन की एक बहुत ही लघु कविता आप के सामने है। यह शिल्प का अनुपम उदाहरण है कि कितने कम शब्दों में जबर्दस्त कविता की जा सकती है। न्यूनतम शब्द होते हुए भी अपनी विषय वस्तु को पूरी तीव्रता से रख देती है।
अनहद
कौन कहता है
कि-
हर चीज की
एक हद होती है
तुम्हारा ज़ब्र
अनहद,
हमारा सब्र
अनहद।
9 टिप्पणियां:
तुम्हारा ज़ब्र
अनहद,
हमारा सब्र
अनहद।
जबर्दस्त कविता!!!!
हदें बनती ही हैं टूटने के लिए...और इंसान के सब्र की भी कोई हद होती है...
जय हिंद...
जबरदस्त....पूरा उपन्यास से चार लाईनों मे!!
कौन कहता है
कि-
हर चीज की
एक हद होती है
तुम्हारा ज़ब्र
अनहद,
हमारा सब्र
अनहद।nice
सारगर्भित सूक्ष्मिका !
बेहतरीन
तुम्हारा ज़ब्र
अनहद,
हमारा सब्र
अनहद।
कमाल चन्द शब्दों मे जिन्दगी भर की दास्तां? बहुत बडिया धन्यवाद और शिव जी को बधाई
तुम्हारा ज़ब्र
अनहद,
हमारा सब्र
अनहद।
वाक क्या बात है, बहुत सुंदर
अरुण कमल की कविता "अपना क्या है इस जीवन मे सब तो लिया उधार" ..के बाद उतनी ही कम शब्दों मे मार करने वाली कविता है यह .. ।
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