@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: 'अनहद' शिवराम की कविता

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

'अनहद' शिवराम की कविता

ल शिवराम की कुछ अटपटी सी, लटपटी सी कविता "सुनो भाई गप्प-सुनो भाई सप्प" आप के सामने थी। आज उन की एक बहुत ही लघु कविता आप के सामने है। यह शिल्प का अनुपम उदाहरण है कि कितने कम शब्दों में जबर्दस्त कविता की जा सकती है। न्यूनतम शब्द होते हुए भी  अपनी विषय वस्तु को पूरी तीव्रता से रख देती है।

अनहद

  •  शिवराम
कौन कहता है
कि-
हर चीज की 
एक हद होती है

तुम्हारा ज़ब्र
अनहद,

हमारा सब्र
अनहद।

9 टिप्‍पणियां:

विनोद कुमार पांडेय ने कहा…

तुम्हारा ज़ब्र
अनहद,
हमारा सब्र
अनहद।

जबर्दस्त कविता!!!!

Khushdeep Sehgal ने कहा…

हदें बनती ही हैं टूटने के लिए...और इंसान के सब्र की भी कोई हद होती है...

जय हिंद...

Udan Tashtari ने कहा…

जबरदस्त....पूरा उपन्यास से चार लाईनों मे!!

Randhir Singh Suman ने कहा…

कौन कहता है
कि-
हर चीज की
एक हद होती है

तुम्हारा ज़ब्र
अनहद,

हमारा सब्र
अनहद।nice

Arvind Mishra ने कहा…

सारगर्भित सूक्ष्मिका !

उम्मतें ने कहा…

बेहतरीन

निर्मला कपिला ने कहा…

तुम्हारा ज़ब्र
अनहद,
हमारा सब्र
अनहद।
कमाल चन्द शब्दों मे जिन्दगी भर की दास्तां? बहुत बडिया धन्यवाद और शिव जी को बधाई

राज भाटिय़ा ने कहा…

तुम्हारा ज़ब्र
अनहद,

हमारा सब्र
अनहद।
वाक क्या बात है, बहुत सुंदर

शरद कोकास ने कहा…

अरुण कमल की कविता "अपना क्या है इस जीवन मे सब तो लिया उधार" ..के बाद उतनी ही कम शब्दों मे मार करने वाली कविता है यह .. ।