@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: पूजा-पाठ के फेर में क्यों पड़ूं?

मंगलवार, 30 अक्टूबर 2018

पूजा-पाठ के फेर में क्यों पड़ूं?



दुर्घटना में बाबूलाल के पैर की हड्डी टूट गई और वह तीन महीने से दुकान नहीं आ रहा है। पूरे दिन दुकान छोटे भाई जीतू को ही देखनी पड़ती है। आज सुबह करीब 11:45 बजे मैं उसकी दुकान पर पहुंचा तो वह दुकान शुरू ही कर रहा था। 

जीतू
मैंने उससे पूछा - तुम दुकान आने में काफी लेट हो जाते हो। 

तो वह कहने लगा- भाई साहब सुबह पूजा पाठ करने में दो-तीन घंटे लग जाते हैं। 

मैंने पलट कर पूछा - पूजा में दो-तीन घंटे क्यों लगते हैं, और पूजा करने की जरूरत क्या है? 

वह कहने लगा- भगवान को तो मानना पड़ता है, पूजा भी करनी पड़ती है। 

मैंने उसे कहा - तुम्हारा भगवान न्याय प्रिय है। हर व्यक्ति को कर्म के अनुसार फल देता है, बुरे कर्मो वालों को बुरा फल देता है, अच्छे कर्म वालों को अच्छा फल देता है। तो फिर यह पूजा पाठ करने से मिलने वाले फल पर क्या प्रभाव पड़ेगा? अगर पूजा-पाठ पाठ भजन-कीर्तन उपवास-व्रत से फर्क पड़ता है। तो फिर यह सब रिश्वत या चमचागिरी की तरह नहीं है क्या? और यदि ऐसा है तो फिर तुम्हारा भगवान किसी रिश्वतखोर अफसर या भ्रष्ट नेता की तरह नहीं है क्या?

यह सुनने पर जीतू हंसने लगा। तब वहां उस वक्त एक और ग्राहक नागपाल जी खड़े थे। वह कहने लगे - भाई मैं तो कोई पूजा पाठ नहीं करता। भगवान होगा तो होगा। पूजा पाठ से ना तो वह प्रसन्न होगा, और ना ही पूजा पाठ नहीं करने से अप्रसन्न होगा। फिर मैं इस पूजा-पाठ के फेर में क्यों पड़ूं?

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