@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: निर्णय का दिन

शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

निर्णय का दिन

श्राद्धपक्ष चल रहा है। यूँ तो परिवार में सभी के गया श्राद्ध हो चुके हैं और परंपरा के अनुसार श्राद्ध कर्म की कोई आवश्यकता नहीं रह गई है। लेकिन मेरे लिए यह उन पूर्वजों को स्मरण करने का सर्वोत्तम रीति है। आज मेरे दादा जी, उन के छोटे भाई और दादा जी की माता जी के श्राद्ध का दिन था। सुबह-सुबह मैं ने अपने मित्र को भोजन पर बुलाने के लिए फोन किया तो पता लगा आज अभिभाषक परिषद ने नगर के एक स्वतंत्रता सेनानी के निधन पर 12 बजे शोक सभा रखी है।  निश्चित था कि अदालतों में काम नहीं होगा। हम ने तय किया कि अदालत से एक बजे भोजन के लिए घर आएंगे। दस बजे एक संबंधी के साथ पुलिस थाने जाना पड़ा। उन्हें किसी मामले में पूछताछ के लिए बुलाया गया था। चौसठ वर्षीय  संबंधी का कभी पुलिस से काम न पड़ा था। वे मुझे साथ ले जाने को तुले थे। प्रिय हैं, उन के साथ जाना पड़ा। थानाधिकारी ने कहा कि वे आज कानून और व्यवस्था में व्य्स्त हैं और संबंधी को बाद में बुला भेजेंगे। सड़कों पर यातायात रोज के मुकाबले चौथाई था और अदालत में मुवक्किल सिरे से गायब थे। वकील और मुंशी दो बजे तक मुकदमों में पेशियाँ ले कर घर जाने के मूड़ में थे।  सब की दिनचर्या को अयोध्या के निर्णय की तारीख प्रभावित कर रही थी।
मैं ने भी अपना काम एक बजे तक निपटा लिया। मित्रों के साथ घर पहुँचा तो डेढ़ बज रहे थे। भोजन से निपटते दो बज गये। मित्र वापस अदालत के लिये रवाना हो गये। गरिष्ठ भोजन के कारण उनींदा होने लगा, लेकिन एक काम अदालत में छूट गया था। उस के बारे में सहायक को फोन पर निर्देश दिया तो उस ने बताया कि वह भी यह काम कर के अदालत से निकल लेगा। मैं बिस्तर पर लेटा तो नींद लग गई। उठा तो पौने चार बज रहे थे। मुझे ध्यान आया कि कल पहनने के लिए एक भी सफेद कमीज पर इस्त्री नहीं है। नए आवास पर आने के बाद कपड़े इस्त्री के लिए दिए ही नहीं गए थे। मैं पास के धोबी तक बात कर ने गया तो वह घर जाने की तैयारी में था। उस ने आज दुकान तो खोली थी पर केवल इस्त्री किए कपड़े देने के लिए। आज कोई काम नहीं लिया था। इस्त्री गरम ही नहीं की गई वह ठंडी पड़ी थी। मैं ने किराने वाले की दुकान पर नजर डाली, लेकिन एक जमीन-मकान के दलाल की दुकान के अलावा सब बंद थीं। मैं घर लौट आया। पत्नी ने बताया कि बीमा कंपनी से फोन आया था कि उन्हें नया पता नहीं बताया गया इस कारण से मुझे भेजी डाक वापस लौट गई है। मैं ने फोन कर के पूछा कि कोई आवश्यक डाक तो नहीं है। डाक आवश्यक नहीं थी। फिर भी मैं ने बीमा कंपनी जाने का निश्चय किया। नया पता भी उन्हें दर्ज करा देंगे और डाक भी ले आएंगे। मैं घर लौटा। टीवी पर बताया जा रहा था कि कुछ ही देर में अयोध्या निर्णय आने वाला है। 
मेरा मन हुआ कि न जाऊँ और टीवी पर समाचार सुनने लगूँ। लेकिन फिर जाना तय कर लिया। सड़कें पूरी तरह सूनी पड़ी थीं। कार चलाने का वैसा ही आनंद मिला जैसा रात एक बजे से सुबह चार बजे के बीच मिलता है। बीमा कंपनी पहुँचा तो निर्णय आ चुका था। उसी की चर्चा चल रही थी। लोग खुश थे कि निर्णय ऐसा है कि खास हलचल नहीं होने की। कुछ देर रुक कर डाक ले कर मैं लौटा। इस बीच जीवन बीमा के कार्यालय से फोन आ गया। यह मार्ग में पड़ता था मैं कुछ देर वहाँ रुका। उन का आज अर्धवार्षिक क्लोजिंग था। कर्मचारियों को देर तक रुक कर काम निपटाना था। मैं ने वहाँ भी नया पता दिया और डाक ली। 
स बीच बेटी का फोन आ गया कि वह ट्रेन में बैठ गयी है। शाम को पहुँच जाएगी। मुझे तुरंत पंखे का स्मरण आया कि उस के  कमरे में पंखा नहीं है, बाजार से ले कर आज ही लगवाना पड़ेगा। मैं बाजार निकल गया। अब सड़कों पर यातायात सामान्य हो चला था। पंखे की दुकान पर मनचाहा पंखा नहीं मिला। मैं ने पंखा अगले दिन लेना तय किया। पास ही सब्जी मंडी लगी थी। मुझे कांटे वाले देसी बैंगन दिख गए तो आधा किलोग्राम खरीदे और घर के लिए चल दिया। अब यातायात सामान्य से कुछ अधिक लगा। वैसे ही जैसे बरसात रुकते ही रुके हुए लोग सड़कों पर अपने वाहन ले कर निकल पड़ने पर यातायात बढ़ जाता है।  मैं घर पहुँचा तो कुछ मुवक्किल दफ्तर में प्रतीक्षा कर रहे थे। उन का काम निपटाया तब तक स्टेशन बेटी को लेने जाने का वक्त हो गया। स्टेशन के रास्ते में पूरी रौनक थी। बेटी ट्रेन से उतर कर कार को खड़ी करने के स्थान पर आ गयी। ट्रेन से उतरने वाली सवारियाँ सामान्य से चौथाई भी नहीं थीं। बेटी ने बताया कि ट्रेन खाली थी। रास्ते के स्टेशनों के प्लेटफॉर्म भी सूने पड़े थे। मथुरा के स्टेशन पर पुलिस सतर्क थी लेकिन सवारियाँ वहाँ भी नहीं थीं। कार में बैठते ही बेटी फोन करने लगी। उस के सहकर्मियों ने उसे आज यात्रा करने के लिए मना किया था। वह उन्हें बता रही थी कि वह सकुशल आराम के साथ कोटा पहुँच गई है और अपने पापा-मम्मी के साथ कार में घर जा रही है। वह यह भी कह रही थी कि - मैं ने पहले ही कहा था कि आज कुछ नहीं होने का है। लोग वैसे ही बौरा रहे थे।

10 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

फ़ेसला तो आ गया अब सब इस पर अमल भि करे तो अच्छा हो, या फ़िर मिल ब्रेठ कर सारी बात खत्म कर ले जो कसर रह गई है, इसे आगे ना बढाये, बाकी आप ने आज का पोस्ट बडे मुड मे लिखा है पढ कर मजा आ गया, बिटिया को हमारा प्यार कहे ओर आशीर्वाद भी दे,

Arvind Mishra ने कहा…

एक निष्क्रिय दिन की आपकी सक्रियता -बढियां !

Udan Tashtari ने कहा…

आप तो ऐसे दिन भी लगभग सक्रिय ही रहे...बढ़िया रहा वृतांत दिनचर्या का.

उम्मतें ने कहा…

"इस्त्री गरम ही नहीं की गई वह ठंडी पड़ी थी"

कई दोस्त सन्दर्भों से काट कर बात का बतंगड बना सकते हैं इसी लिहाज़ से आपके एक वाक्य को कोट कर रहा हूं ! वैसे ...

इ स्त्री से क्या मतलब है आपका :)

फैसला हो गया जो लगभग सभी के हक़ में है इससे आगे अमन की उम्मीद बांधे आपसे चुहल करने का जी हुआ !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

यहाँ पर भी दोपहर में सब बन्द, कोई हलचल नहीं थी।

Satish Saxena ने कहा…

आज पोस्ट लिखने का अंदाज़ अच्छा लगा राज भाई से सहमत हूँ !
शुभकामनायें !

विष्णु बैरागी ने कहा…

यहॉ भी ऐसा ही कुछ रहा।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी सक्रियता अच्छी लगी ...सारे दिन का वर्तांत बहुत सुगढ़ता से लिखा है

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

ट्रेन ही खाली नहीं सड़कें भी सुनसान थीं :)

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

आपने बहुत शानदार शब्द दिये आज की दैनंदिनी को. मजा आगया पढकर. शुभकामनाएं.

रामराम