बिलकुल सही है यहाँ चुनाव ही सब से अधिक होते हैं। शायद सब से मजबूत जनतंत्र की यही निशानी है, या फिर जनतंत्र है, यह साबित करने को यह सब करना होता है। अब देखिए ना, अभी मई में देश भर में लोकसभा के चुनाव हुए ही थे। पूरे दो माह तक देश इन की चपेट में रहा। ये चुनाव निपटे ही थे कि फिर से चुनाव के लिए मतदाता सूचियों में संशोधन का काम आरंभ हो गया। नवम्बर में नगर निगम के चुनाव जो होने थे। इस बार इस चुनाव में बहुत कुछ बदला गया। वार्डों का पुनर्सीमांकन किया गया। नए सिरे से पर्चियाँ डाल कर तय किया गया कि किस वार्ड से किस-किस तरह का आरक्षण रहेगा। ऐन वक्त पर यह भी तय हुआ कि इस बार मेयरक का चुनाव वार्ड पार्षद के स्थान पर सीधे जनता ही करेगी। इस जरा सी बात ने बहुत कुछ बदल दिया। पन्द्रह वर्ष से नगर निगम पर काबिज भाजपा को जनता ने विदा किया और मेयर कांग्रेसी चुन दिया। साथ में तीन चौथाई से अधिक वार्ड पार्षद भी कांग्रेस के चुन दिए।
इस बीच कोटा के वकील 29 अगस्त को हड़ताल पर चले गए। हड़ताल एक सौ दस दिन पूरे कर के भी जारी है। बून्दी और झालावाड़ जिलों के वकील भी इस हड़ताल में शामिल हैं। चाहते हैं कि कोटा में हाईकोर्ट की एक अदद बैंच स्थापित की जाए। एक चौथाई साल हड़ताल चलते हो चुका है, लेकिन कोई नतीजा ही सामने नहीं है। जिस दिन नगर निगम के चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होनी थी उस के ठीक पहले मुख्यमंत्री ने बुलाया, बात की। वे सभी मांगें मानने को तैयार थे। लेकिन हाईकोर्ट के मामले में आश्वासन तो दूर मुहँ से कुछ भी निकालने को मना कर दिया। वे जोधपुर से हैं जहाँ हाईकोर्ट की मुख्य पीठ है। वहाँ के लोग जयपुर में स्थापित की गई बैंच को ही पिछले 32 साल में बर्दाश्त नहीं कर पाए तो एक और बैंच को कैसे बर्दाश्त कर पाएंगे। यह बात मुख्यमंत्री के मुहँ से निकले तो कैसे? आखिर उन्हें अगली बार फिर वहीं से चुनाव जो लड़ना है। मुख्यमंत्री और तमाम राजनेता चुनाव में व्यस्त हो गए। इधर हड़ताल जारी रही।
चुनाव के दौरान ही केन्द्रीय विधि मंत्री से दिल्ली में प्रतिनिधि मंडल ने भेंट की उन्हें सब कुछ बताया। उन के मुख से केवल इतना ही निकला कि 2010 में हाईकोर्टों की बैंचें खोलने के प्रस्ताव हैं। इन में एक बैंच राजस्थान में स्थापित की जाएगी। स्थापना कहाँ हो? इस के लिए तथ्यात्मक रिपोर्ट के साथ राज्य सरकार रिपोर्ट करेगी तब निर्णय हो सकेगा। वकीलों का आंदोलन फिर से वहीं आ गया था। गेंद फिर से राज्य सरकार के पाले में थी। चुनाव संपन्न हो गए। उसी दौर में कोटा अभिभाषक परिषद के सदस्य और कोटा ही विधायक चुने गए राजस्थान के विधिमंत्री से बात हुई तो कहने लगे अभी चुनाव में व्यस्त हूँ, चुनाव नतीजे निकलते ही आप लोगों से आ कर मिलता हूँ। हड़ताल चलती रही। जब हड़ताल आरंभ हुई थी तो बार काऊंसिल के चुनाव की तैयारी आरंभ हो चुकी थी और कहा जा रहा था कि हड़ताल तो चुनाव की वजह से हो रही है जिस से उम्मीदवारों को प्रचार का अवसर मिल जाए। हड़ताल के बीच ही राजस्थान की बार कौंसिल के चुनाव हो लिए। डेढ़ माह बाद ठीक दो दिन पहले उस के नतीजे भी आ चुके हैं। हड़ताल फिर भी जारी है।
अब अभिभाषक परिषद के चुनाव आ गए हैं। सब चुनाव टल सकते हैं लेकिन अभिभाषक परिषद के नहीं। विधान में लिखा है कि दिसम्बर की 15 तारीख तक किसी भी हाल में चुनाव संपन्न किए जाएंगे और जनवरी की 3 तारीख तक हर हाल में नयी कार्यकारिणी को कार्यभार सोंप दिया जाएगा। तब से ये दो तारीखें पत्थर की लकीर हो गई हैं। लोगों ने अपने अपने नामांकन भर दिए हैं। परिषद के अध्यक्ष के लिए नौ और सचिव के लिए ग्यारह उम्मीदवार मैदान में हैं। कल नामांकन वापसी का दिन है। उस के बाद ही पता लगेगा कि कितने उम्मीदवार मैदान में रह गए हैं। जिन उम्मीदवारों को चुनाव लड़ना ही है, उन्हों ने प्रचार आरंभ कर दिया है। वकील जब शाम को घर लौटते हैं और पत्नियाँ उन की जेब तलाशी करती हैं तो वहाँ रुपयों की जगह उम्मीदवारों द्वारा याद्दाश्त के लिए दी गई पर्चियाँ निकलती हैं। उन्हें भी पता लग चुका है कि चुनाव आ गया है। वे पूछती हैं। इस चुनाव के बाद तो कोई चुनाव नहीं है न? जवाब मिलता है -नहीं, अब कम से कम एक-दो माह तो कोई चुनाव नहीं है, तो वे कहती हैं तब तो अब हड़ताल भी खत्म हो ही जाएगी।
4 टिप्पणियां:
चुनाव और हड़ताल फिर चुनाव और .....
वकीलों की पत्नियों का चिंतन यथार्थपरक हैं !
चुनाव के बाद चुनाव का गीत है,
राजनीति के कोरे वादों की यही रीत है...
हड़ताल से आम आदमी की कमर टूटती है...नेताओं की राजनीति चमकती है...
जय हिंद...
जिन लोगों के केस लटके पड़े हैं अब तो शायद उन्हें भी वकीलों की लड़ाई में कूदना पड़ेगा। हड़ताल सफल हो और जल्दी ही काम शुरू हो जाए।
घुघूती बासूती
पृथक राज्य के लिए यहां आंध्र प्रदेश में तो आए दिन हड़ताल और बंद होने लगे हैं। पता नहीं कब यह गुथी सुलझेगी और कब यह राज्य और उलझ जाएगा:)
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