आज गणेश चतुर्थी है। विनायक गणपति मंगलमूर्ति हो कर पधार चुके हैं। पूरे ग्यारह दिनों तक गणपति की धूम रहेगी। गणपति के आने के साथ ही देश भर में त्योहारों का मौसम आरंभ हो गया है जिसे देवोत्थान एकादशी तक चलना है। उस के उपरांत गंगा से गोदावरी के मध्य रहने वाले और हिन्दू परंपरा का अनुसरण करने वाले लोगों को शादी-ब्याह और सभी वे मंगलकाज, जो चातुर्मास के कारण रुके पड़े थे को सम्पन्न करने की छूट मिल जाएगी। प्रारंभ तो कल हरितालिका तीज से ही हो चुका है। वैसे भी गणपति के आने के पहले शिव और पार्वती का एक साथ होना जरूरी भी था। इसलिए यह पर्व एक दिन पहले ही हो लिया। इस दिन मनवांछित वर की कामना के लिए कुमारियों ने निराहार निर्जल व्रत रखे और जिन परिवारों में किसी अशुभ के कारण श्रावण पूर्णिमा को रक्षाबंधन नहीं हुआ वहाँ रक्षाबंधन मनाया गया।
ये ग्यारह दिन पूरी तरह व्यस्त होंगे। हर नए दिन एक नया पर्व होगा। चार सितम्बर को ऋषिपंचमी होगी, पाँच को सूर्य षष्ठी, छह को दूबड़ी सप्तमी और गौरी का आव्हान, सात को गौरी पूजन, आठ को राधाष्टमी और गौरी विसर्जन, आठ को नवमी व्रत, नौ को दशावतार व्रत और राजस्थान में रामदेव जी और तेजाजी के मेले होंगे, दस को जल झूलनी एकादशी होगी, ग्यारह को वामन जयन्ती और प्रदोष व्रत होगा और तेरह को अनंत चतुर्दशी इस दिन गणपति बप्पा को विदा किया जाएगा। अगले दिन से ही पितृपक्ष प्रारंभ हो जाएगा जो पूरे सोलह दिन चलेगा। तदुपरांत नवरात्र जो दशहरे तक चलेंगे। फिर चार दिन बाद शरद पूर्णिमा, कार्तिक आरंभ होगा और दीपावली आ दस्तक देगी। दीपावली की तैयारी, मनाने के बाद उस की थकान उतरते उतरते देव जाग्रत हो उठेंगे और फिर शुरू शादी ब्याह तथा दूसरे मंगल कार्य।
इस पूरी सूची से आप को अनुमान लग गया होगा कि भारतीय धार्मिक सांस्कृतिक पंचांग कितना व्यस्त है। यदि सभी पर्वों को मनाने लगें तो दो-दो तीन-तीन एक दिन में मनाने पड़ें और पूरे बरस में एक भी दिन खाली न छूटे। भारतीय संस्कृति ऐसी ही है। इस ने सभी को अपनाया और उन्हें भारतीय रूप देदिया। अब महाराष्ट्र गणपति उत्सव जोर-शोर से मनाता है तो गुजरात-बंगाल नवरात्र को अधिक महत्व देते हैं। इसी तरह पूरा भारत वर्ष अपने अपने त्योहारों को अधिक महत्व देता है। लेकिन दूसरे भागों के त्योहारों को भी सभी स्थानों पर पूरा मान प्राप्त होता है।
बात कहीं की कहीं चली गई है। मैं बात करना चाहता था इस पखवाड़े के महत्व की। हमारे यहाँ हाड़ौती-मालवा क्षेत्र में इस पखवाड़े में रोठ बनना शुरू हो जाते हैं। पिछले पखवाड़े की चतुर्दशी से प्रारंभ हो कर अनंत चतुर्दशी तक का कोई एक दिन हर परिवार के लिए निश्चित है, जिस दिन रोठ पूजा और कुलदेवता की पूजा होगी। यह पर्व जैन धर्मावलम्बी भी मनाते हैं। रोठ की यह परंपरा धर्म से कुछ अलग सोचने को विवश करती है। आखिर इस परंपरा का आरंभ कहाँ है? जिस से यह जैन धर्मावलम्बियों में भी समान रूप से प्रचलित है। निश्चित ही इस का मूल धर्म में नहीं है। इस का मूल खोजने, चलें उस से पहले यह जान लिया जाए कि इस दिन होता क्या क्या है?
इस दिन के लिए पहले से ही अनाज (गेहूँ) के दानों को निश्चित मात्रा में साफ कर घर की हाथ चक्की को अच्छी तरह धोकर पीसा जाता है। इस से जो आटा प्राप्त होता है। वह महीन न हो कर कुछ मोटा और दानेदार होता है। आज कल नगरों में घर की चक्कियों ने परिवारों से विदा ले ली है। इस कारण रोठ का यह आटा चक्की पर भी पिसवा लिया जाता है। जिस के लिए चक्की वाले पहले से घोषणा कर देते हैं कि फलाँ दिन रोठ का आटा पीसा जाएगा। उस दिन चक्की वाला उस की चक्की को साफ कर धो कर आटा पीसता है और केवल रोठ के लिए उपयुक्त मोटा आटा पीसता है। आजकल बिजली से चलने वाली छोटी चक्कियाँ भी आ गई हैं। जिन लोगों के घरों में वे चक्कियाँ हैं वे उन्हें साफ कर, धो कर यह आटा तैयार कर लेते हैं और पड़ौसियों के लिए भी कुछ लोग यह सेवा मुफ्त कर देते हैं। मेरे यहाँ ऋषिपंचमी के दिन रोठ पूजा होती आई है। इस दिन रोठ बनते हैं, साथ बनती है चावलों की खीर और, और बस कुछ नहीं। रोठ की पूजा होती है, कुल देवता की पूजा होती है। फिर सब मिल कर खीर-रोठ खाते हैं। और हाँ इस दिन हम कोई चीज नहीं खरीदते। सब चीजें पहले ही घर में आ चुकी होती हैं। इस दिन किसी को एक पैसा भी नहीं देना है, पूर्वज ऐसा नियम क्यों बना गए, यह खोज का विषय है। इस पूजा का संबंध मानव विकास की उस अवस्था से है जिस में कृषि का आरंभ हुआ था और जिस में स्त्रियों की मुख्य भूमिका थी। उत्पादन और पारिवारिक समृद्धि के इस पर्व को सहजते सहजते वह इस हाल में आ पहुँचा है। यदि इस पखवाड़े में आप के यहाँ भी किसी तरह की पारंपरिक पूजा होती हो तो उस में भी स्त्रियों द्वारा कृषि जैसे मनुष्य जीवन को बदल डालने वाले आविष्कार की महत्ता के चिन्ह देखने के प्रयास करें शायद आप को मिल जाएँ।
विवरण लम्बा हो रहा है। आज इतना ही बाकी बातें कल। कि रोठ क्या है? कैसे बनता है? दूसरी बातों से इस का क्या संबंध है? कल तक तो प्रतीक्षा करनी ही होगी। और एक राज की बात और कि कल चार सितम्बर है, मेरा जन्म दिन। कल मैं पूरे तिरेपन का हो रहा हूँ और चौपनवाँ वर्ष प्रारंभ हो जाएगा।