आज सुबह अदालत के लिए रवाना होने के पहले नाश्ते के वक्त टीवी पर एक समाचार देखा। एक विधवा माँ के तीन नाबालिग बच्चों ने पुलिस थाने में शिकायत कराई कि उन के पिता की मृत्यु के बाद उन की माँ घर के नौकर से विवाह करना चाहती है। वे अब अपनी मां के साथ नहीं रहना चाहते। उन्हें उन की माँ से उन के पिता का धन और घर दिला दिया जाए। माँ जहाँ जाना चाहे जाए। अजीब शिकायत थी।
माँ और उस के प्रेमी नौकर को पुलिस थाने ले आया गया था। माँ कह रही थी कि यह सच है कि वह विवाह करना चाहती है। लेकिन इस में क्या परेशानी है। बच्चों को एक पड़ौसी के घर में बैठा दिखाया गया था। शायद बच्चों को उसी ने थाने तक पहुँचाया था। हो सकता है इस में मीडिया ने भी कोई भूमिका अदा की हो। समाचार दिखाने वाला बता रहा था... देखिए इस माँ को जिस ने प्रेमी से विवाह करने के लिए बच्चों को घर से निकाल दिया। माँ थी कि मना कर रही थी कि वह कैसे अपने ही बच्चों को घर से निकाल सकती है। वह तो बच्चों को खुद अपने साथ रखना चाहती है।
मुझे यह समझ नहीं आया कि उस महिला का वह कौन सा अपराध था जिस के कारण उसे थाने में बुलाया गया था। जहाँ तक अन्वेषण का प्रश्न है तो वह तो मौके पर उस के घर जा कर भी किया जा सकता था। कुल मिला कर यह समाचार उस महिला के प्रति घृणा उत्पन्न कर रहा था।
मैं ने अदालत के रास्ते में दो तीन पुरुषों से बात की तो उन्हों ने इस महिला को लानतें भेजीं। इन परिस्थितियों में लोगों ने यह भी कहा कि उस का प्रथम कर्तव्य अपनी संतानों को जीने लायक बनाने का है। यह भी कि जरूर उस महिला की गलती रही होगी।
जब मैं ने उन से यह कहा कि एक महिला जो हमेशा अपने पति पर निर्भर रही। उस ने सहारे से जीना सीखा। अब पति का सहारा उस के पास नहीं रहा। वह अपने शेष जीवनकाल के लिए उस का सहारा बन सकने वाला एक जीवनसाथी चाहती है, जिस के बिना उस ने जीना सीखा ही नहीं। वह अपने बच्चों को भी पालना चाहती है। शायद उस ने सोचा हो कि वैधव्य की अवस्था में जहाँ अधिकांश पुरुष उसे गलत निगाहों से लार टपकाते हुए नजर आते हैं, वहाँ वह किसी एक के साथ विवाह क्यों न कर ले? लेकिन अपने बच्चों के प्रति जिम्मेदारी निभाते हुए कोई महिला विवाह करना चाहती है तो लोगों को क्यों आपत्ति होना चाहिए?
मैं ने जिन्हें किस्सा सुनाया उन्हें यह भी कहा कि मान लो कि पति के स्थान पर यह महिला मर गई होती और पति ने नौकरानी को अपने घर में ड़ाल लिया होता तब भी पुलिस का बर्ताव यही रहता? क्या तब भी पड़ौसी उस के बच्चों को पुलिस थाने पहुँचाते? क्या उस पुरुष के विरुद्ध किसी की उंगली भी उठती? तब क्या उस पुरुष को एक महिला के सहारे की उतनी ही आवश्यकता होती, जितनी उस की पत्नी को एक पुरुष की है?
इस पर लोगों ने कहा कि वाकई उस महिला के साथ ज्यादती हुई है।
लेकिन क्या आप लोग भी ऐसा ही सोचते हैं? या इस से कुछ अलग?
23 टिप्पणियां:
महिला को चाहिये की वो अपने पति की चल अचल सम्पति का हिस्सा करे और जितना भी हिस्सा महिला का बनता हैं { क्योकि पति की चल अचल सम्पति पर पत्नी , माँ , बच्चे सबका बराबर का हिस्सा होगा } उस हिस्से को लेकर वो अपनी नाम से अलग करे और बाकी का हिस्सा जिनका हैं उनके नाम से अलग जमा करे . इस से बच्चो के अंदर का डर ख़तम हो जाएगा . फिर शादी के बाद वो बच्चो को अपनी साथ रखे और उनकी पढाई लिखाई के लिये स्वयम और जिस से वो विवाह कर रही उसके साथ जीविका के लिये धन कमाने का साधन करे .तब वो सही तरीके से एक अबिभावक का कर्तव्य निभा सकती हैं .
लेकिन मे इस प्रकार के विवाह के बिल्कुल ख़िलाफ़ हूँ जहाँ मालकिन नौकर से शादी करती हैं क्युकी इस मे नौकर का मंतव्य केवल उस मालकिन के अकेले पण का फायदा उठाना ही हैं और धीरे धीरे वो सारी सम्पति अपने लिये खर्चेगा . इस महिला को "ये विवाह" बिल्कुल नहीं करना चाहीये . हाँ इस महिला के विवाह करने मे कोई नुक्सान नहीं हैं जरुर करना चाहिये पर सोच समझ कर . अपनी जिन्दगी को जीना जरुरी हैं और अगर विवाह से उसकी जिंदगी आसान हो जाती हैं तो जरुर क्यों नहीं .
ये उस महिला की निजी जिंदगी है ,मीडिया को अपनी सीमा लांघनी नही चाहिये
उस महिला अथवा अन्य किसी भी व्यक्ति के नितांत निजी मामलों
में पुलिस और मीडिया की दख़लँदाज़ी अनुचित है। कहाँ हैं तमाम
महिला संगठन और महिला आयोग? क्या वे सिर्फ़ तभी बोलेंगे जब
कोई रोता हुआ उनके पास आए? स्वाभिमान, लोकलाज, अथवा नाजानकारी के कारण यदि कोई स्वयम नहीं भी आता तो भी उनका
कुछ दायित्व बनता है अथवा नहीं?
क्या करना चाहिए ये कोई और कैसे कह सकता है ! जैसे समाचार वाले हैं वैसे ही हम... केवल ख़बर पढ़कर क्या कहा जा सकता है. असलियत तो महिला ही जानती है... किसी के ऊपर क्या बात रही है ये बस वही जान सकता है.
मैं तो बस इतना ही जानता हूँ की एक माँ बच्चो को घर से नहीं निकाल सकती... बस !
mahila kya sochati kai ...je kaise adaaj lagaya sakta hai suni sunaee baat par..
बच्चों को छत नसीब रहे उनके हक की, फिर वो महिला का निजी मामला है कि वो किससे शादी करती है. वो चाहें नौकर हो या मालिक. दोनों बालिग हैं-अपना अच्छा बुरा समझते हैं. हम बाहर से बैठकर उनका क्या मनत्व्य है कैसे जान सकते हैं.
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यूँ तो मजाक का विषय नहीं है, फिर भी ऑन द लाईटर साईड:
बाद में तो सभी ने नौकर बन जाना है, अच्छा है पहले से प्रेक्टिस है तो कोई कल्चरल शॉक नहीं लगेगा बंदे को. :)
हो सकता है कि उस महिला की कुछ व्यक्तिगत परेशानी रही हो. वैसे परिस्तियाँ आदमी को विपरीत कदम उठाने के लिए बाध्य कर देता हो . खैर मीडिया हर ख़बर को बढ़ा चदा कर महिमामंडित करता है . वैसे भारतीय नारी को पति की मृत्यु के पश्चात दूसरा विवाह नही करना चाहिए . बाल बच्चेदार महिला का दायित्व है कि वह अपने अभिभावक होने के दायित्व का निर्वहन करे.
अपने बहुत विचारणीय मुद्दा उठाया है . धन्यवाद्
naukar insaan nahi kya?...yadi unhey uchit lagta hai to apni zindagi apney anusaar bitaney ka poora haq hai unhey...haan bacchon ka koi nuksaan na ho iska pehley dhyaan den...
यह एक सब्जेक्टिव मामला है। इसपर जितने मुँह उतनी बात हो सकती है। कोई पुलिस वाला इस महिला के पति की मृत्यु की पड़ताल भी करने लगे तो आश्चर्य नहीं। नौकर के साथ किस प्रकार का और कबसे भावनात्मक सम्बन्ध है, यह भी महत्वपूर्ण है।
जो भी इस विवाह के विरोध में हैं वो सलमान-गोविंदा की "पार्टनर" फ़िल्म देखें!
अभी पार्टनर पिक्चर में गोविंदा कैटरीना कैफ़ के मुलाजिम थे - बाकायदा ठुमके लगे और शादी हुई ना फ़िल्म के अंत में? सलमान भी फ़िल्म में सहनायिका को पटाते हैं जो सिंगल-मदर होती है.
मुझे दु:ख होता है जब लोग ऐसी शिक्षाप्रद फ़िल्मों से कोई पाठ नहीं सीखते!
भारतीय माहौल मेँ ये नई और अजीब बात लगेगी यहाँ ( in USA ) तो किसी को कोई चिँता नहीँ -
- लावण्या
जीवन अमूल्य है। महिला को अपनी जिंदगी जीने का हक है। बच्चे उसकी जिम्मेदारी है। बहस का विषय नहीं ये उसके चुनाव का विषय है। पति ने नौकरानी को अपने घर में ड़ाल लिया होता
जैसे वाक्य पर कोई आपत्ति नहीं हुई! आश्चर्य!!!
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इसमें का करेगा काज़ी....
चाहे तो पड़ोसी के नौकर से कर ले, भाई
बस हमको बख़्स दे,
जब लागी दिल की लगन,
और का जाने का में अगन
तो नैतिकता का पहाड़ा बैठ कर आपही पढ़ो..
पति ने नौकरानी को अपने घर में ड़ाल लिया होता
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इस पंक्ति पर अनूप जी की आपत्ति न उठने की आपत्ति उचित है यदि यह केवल कटाक्ष नही है तो ।यह पंक्ति भोंडी सोच का परिणाम है ।
अभिषेक ओझा की बात सही है।बिना सभी तथ्य जाने हम कैसे किसी के लिए एक राय भी देने काबिल हैं।समाचार मे उस स्त्री को बोलते देख महसूस हो रहा था कि वह किसी ज़िद के चलते,किसी खुन्दक में या सनक में है।मीडिया,पुलिस सब ने उसे घेर रखा है और "कैसी माँ है" के तानों की बौछार उस पर है।अपने जीवन काल में पति उसके साथ कैसा रहा होगा कि वह यह वाक्य कह पा रही है कि - मरा हो या ज़िन्दा मुझे कोई फर्क नही पड़ता।पति के परिवार के अन्य लोग कहाँ हैं?ऐसी कौन सी सम्पत्ति है जिसे छोड़कर वह व्यक्ति स्वर्गवासी हुआ है ?
बहुत सी बातें हैं जिन्हें हम इतनी दूर बैठे बैठे अज़्यूम करके यह कहें कि उसे विवाह करना चाहिये या नही --तो यह गलत होगा।
मुख्य कंसर्न है - बच्चे।
माँ का उन्हें डिस ओन करना एक खतरनाक बात है।इसके जो भी कारण हैं उन्हें कानून की नज़र तो क्या ही समझ पाएगी।पर जो भी कारण हों बच्चों की सुरक्षा और पालन पोषण का दायित्व सुनिश्चित करने के बाद ही कानून का कर्तव्य खत्म होगा।वह स्त्री शादी करे या न करे,पर बच्चों का हित सुनिश्चित हो सबसे पहले।
वैसे इस स्थिति को उलट दिया जाए तो सवाल ही खारिज हो जाएगा-जैसे कि -
विधुर अपनी नौकरानी से विवाह करना चाहता है , आपकी क्या राय है?
यह प्रश्न ही नही रह जाएगा। यही हमारे समाज का सच है।उपरोक्त पंक्ति जितनी भी भोंडी हो यह कड़वा सच वह बयान कर गयी है।एक पुरुष के विधुर होने के बाद कभी कोई प्रश्न की जगह बचती ही नही है।
यहां के स्थानीय अखबारों में कभी-कभार खबरें पढ़ता हूं कि इतने बच्चों की मां अपने अलां-फलां प्रेमी के साथ भागी. ज्यादातर उनमें ऐसे घरों की महिलाएं होती हैं जो गरीब हैं, साक्षरता का अभाव है, पति शराबी है
मेरा स्वयं का निष्कर्ष है कि ऐसी महिला या लड़की जिसका कोई हमदम नहीं है या जो अकेलापन महसूस करती है, समाज-परिवार में अलग-थलग होकर कोई तवज्जो नहीं पाती, वह भावनात्मक रूप से इतनी कमजोर हो जाती है कि उसे कोई भी पुरूष जो उससे कुछ बात कर ले, उसके दर्द को सुने, उससे सहानुभूति दिखाए तो वह उसके प्रति सहजता से आकर्षित हो जाती है. हालांकि कुछ लोग इस प्रकार से महिला या लड़की के आकर्षित होने का गलत फायदा उठा लेते हैं.
उक्त मामले में जो हो रहा है उसके बारे में पूरी तरह जानकर ही टिप्पणी करना उचित होगा
बड़ा अजीब प्रश्न है, लेकिन मुजे लगता है बच्चों और मां को बैठ कर बात करनी चाहिए और पूरी बात तफ्सील से करनी चाहिए. कोई न कोई हल निकल ही आएगा।
यही तो व्यथा है हिन्दुस्तान की.. जहा जो बात करने का फ़ायदा नही ठीक वही पर वो बात की जाती है.. यहा पर लोगो ने अपने अपने नज़रिए से समाधान दे दिए है. पर क्या इनमे से एक भी उस महिला के या उसके बच्चे के काम आएगा.. वो वहा पर उसी परिस्थितियो से जूझ रही होगी. और हम यहा कमेंट कर रहे होंगे..
बजाय इसके यदि उस महिला और उसके बच्चो की परेशानी को दूर करने का प्रयास किया जाए तो वो ज़्यादा ठीक रहेगा.. अन्यथा लोगो के निजी जीवन में बिना इजाज़त घुसने वाले न्यूज़ चैनल और ब्लॉग्स में कोई फ़र्क़ नही रहेगा..
मुझे ऐसा लगता है कि यह उस महिला का अपना फैसला है और इसका निर्णय उसपर ही छोड़ देना चाहिए।
शमा जी ने मुझे मेल किया है
Dineshji,
Aapke blogpe gayee. Pehelebhee gayi thi kayi baar, lekin aaj kisi
kaaranwash, net hang ho jaa raha hai! Is patr dwara kehna chahtee hun
ki aapkaa blog, ek behtareen blogsmese ek hai.
Shama
मीडिया हर जगह फटे में टांग क्यों घुसाये रहता है?
कोई स्त्री अपने जीवन का इतना महत्वपूर्ण निर्णय खुद ले ले, हमसे बिना पूछे - हम इसे मंजूर ही नहीं करना चाहते । वह 'जीव' नहीं, 'वस्तु' है । उसके बारे में जो भी निर्णय करना होगा, हम करेंगे ।
उस बेचारी पर क्या बीत रही होगी, वही जाने । तीन बच्चों की मां निरी मूर्ख और 'देह कामना से त्रस्त' होंगी - यही क्यों माना जाए । यह उसकी अपनी जिन्दगी है और उसका अपना निर्णय । चह बच्चों को अलग भी नहीं कर रही । उसे हौसला बंधाइए । मुमकिन है कि उसका फैसला भविष्य में गलत साबित हो । लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पडता । उस दशा में तलाक लेने का अधिकार उसके पास है ।
कहीं ऐसा तो नहीं कि वह हमारे साथ आने के बजाय नौकर के साथ क्यों जा रही है इसीसे हमें तकलीफ हो रही है ।
इसे तो आप male chauvinism कहकर भी नहीं टरका सकते। अगर पुलिस में सारी महिलाएं होतीं तो भी यकीनन उस औरत को थाने बुलाया ही जाता। महिलाएं भी उसी तरीके से सोचती हैं जैसे पुरुष। कुल जमा पुरुष-समाज में यही होना था।
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