आज कल तो खूब मजे हैं, छुट्टियाँ चल रही हैं। यह वाक्य पिछले चार माह में अनेक बार सुनने को मिला। मैं हर बार कहता हूँ -कैसी छुट्टियाँ? तो लोग तुरंत वकीलों की हड़ताल की ओर इशारा कर देते हैं।
हड़ताल का अर्थ कम से कम वकीलों के लिए छुट्टियाँ नहीं हो सकता। हड़ताल में हम भले ही अदालतों में नहीं जा रहे हों लेकिन अपने मुवक्किलों का इतना तो ध्यान रखना ही होता है कि उन के किसी मुकदमे में उन के किसी हित की हानि न हो। रोज अदालत जाना जरूरी है। रोज के मुकदमों में अदालत ने क्या कार्यवाही की है , या केवल तारीख बदल दी है इस का पता लगाना जरूरी है। वही सुबह समय से अदालत तक जाना और वही शाम पाँच बजे वापस लौटने का क्रम जारी है। शाम को दफ्तर में वही समय से बैठना फाइलों को तारीखें बदल कर उन की सही जगह रखना। वही मुवक्किलों का आना, उन की समस्याएँ सुलझाना आदि सब कुछ जारी है। इस बीच किसी को तत्काल किसी उपाय की जरूरत हुई तो उसे उस की व्यवस्था भी कर के दी और उस के हितों की सुरक्षा भी की। जब हम पूर्णकालिक रूप से इस प्रोफेशन में व्यस्त हों तो यह कैसे कहा जा सकता था कि हम छुट्टियों पर हैं।
वास्तव में वकीलों की हड़ताल को हड़ताल की संज्ञा देना ही गलत है। इसे अधिक से अधिक अदालतों का बहिष्कार कहा जा सकता है। बस फर्क पड़ा है तो यह कि वकीलों की कमाई इस बीच लगभग शून्य या उस से कम ही रही है। वकील अपने वकालत के खर्च भी पूरी तरह नहीं निकल पा रहे हैं। वकीलों का मानना है कि वे प्रोफेशन के हिसाब से कम से कम साल भर पिछड़ गए हैं। ऐसे में उन से कोई कहे कि वे छुट्टियाँ मना रहे हैं, तो उन पर क्या गुजरती होगी ये तो वही बता सकता है जिेसे यह सब सुनता पड़ा हो। हो सकता है कुछ गुस्सा भी आता हो। लेकिन यह प्रोफेशन ही ऐसा है, उसे भी वकील मुस्कुराकर या उसे विनोद में बदल कर विषय को ही गुम कर देता है । अब आंदोलन अंतिम दौर में है। सरकार से बात जारी है। हो सकता है नए साल के पहले सप्ताह में कोई हल निकल आए।
वास्तव में वकीलों की हड़ताल को हड़ताल की संज्ञा देना ही गलत है। इसे अधिक से अधिक अदालतों का बहिष्कार कहा जा सकता है। बस फर्क पड़ा है तो यह कि वकीलों की कमाई इस बीच लगभग शून्य या उस से कम ही रही है। वकील अपने वकालत के खर्च भी पूरी तरह नहीं निकल पा रहे हैं। वकीलों का मानना है कि वे प्रोफेशन के हिसाब से कम से कम साल भर पिछड़ गए हैं। ऐसे में उन से कोई कहे कि वे छुट्टियाँ मना रहे हैं, तो उन पर क्या गुजरती होगी ये तो वही बता सकता है जिेसे यह सब सुनता पड़ा हो। हो सकता है कुछ गुस्सा भी आता हो। लेकिन यह प्रोफेशन ही ऐसा है, उसे भी वकील मुस्कुराकर या उसे विनोद में बदल कर विषय को ही गुम कर देता है । अब आंदोलन अंतिम दौर में है। सरकार से बात जारी है। हो सकता है नए साल के पहले सप्ताह में कोई हल निकल आए।
हड़ताल में ही सही अब वाकई ऑफिशियल छुट्टियाँ आरंभ हो गई हैं। अब अदालतें दो जनवरी को ही खुलेंगी। हर अवकाश में बच्चे घर आते थे तो हमें घर ही रहना होता था। इन छुट्टियों में यह संभव नहीं हुआ। बेटा बंगलुरू में है, उस का आना संभव नहीं था। बेटी पूर्वा भी इन दिनों अपने काम में व्यस्त है उस का आना भी संभव नहीं था। अब हमारा छुट्टियों में घर रहना बहुत बोरिंग होता, तो हम ने पूर्वा के पास जाने का प्रोग्राम बना लिया। तो हम आज बल्लभगढ़ आ गए। अब पूरी तरह अवकाश पर हैं। अदालत और घर से पूरी तरह मुक्त। लोटपोट साथ लाए हैं, नैट कनेक्शन बेटी के पास है, तो गाहे-बगाहे हिन्दी ब्लाग महफिल में हाजरी बजाते रहेंगे।
12 टिप्पणियां:
बाहर के लोग इस बात को ठीक से समझ नही पाते इस वजह ऐसे बात चर्चा में आ जाती है..रही बात हड़ताल की तो यह सरकार और वकीलों के बीच की बात है जिसे सुलझाने में सब को एक जुट हो कर आगे आने चाहिए....बढ़िया प्रसंग..
आशा करनी चाहिये कि छुट्टियां जनवरी में समाप्त हो ही जाएंगी.
आप को छुट्टियो की ओर यात्रा की शुभकामनाये, बिटिया को हमारा प्यार
ये बढ़िया रहा कि अब असल छुट्टिया मना रहे हैं. शुभकामनाएँ.
बड़े दिन और छुट्टियों की हार्दिक शुभकामनाएं!
वकीलों की कमाई इस बीच लगभग शून्य या उस से कम ही रही है।
ओह !
'वकीलों की कमाई इस बीच लगभग शून्य या उस से कम ही रही है।'
कमाई शून्य से कम याने घर में घाटा, याने गांठ की पूँजी लगाना। मुनाफे में नुकसान भी घाटा ही होता है।
सो, वकीलों ने इस बार यह सब सहा।
छुट्टियों में यह सब भूल कर आनन्द लीजिएगा।
छुट्टियों के लिये बधाई और क्रिसमस की रामराम.
रामराम.
वकालत व्यवसाय है ...लत नहीं...सो छुट्टी मुमकिन है...पर ब्लागिंग लत है...व्यवसाय नहीं...कभी छुट्टी लेकर बताइये !
हाहाहा !
अगले जनम मोहे कीजौ वकील! :)
आप मजे कर रहे हैं वह तो ठीक है मगर ये लोटपोट के बारे में डिटेल से जानना है.. ये वही बच्चों वाली किताब तो नहीं?? अगर हां तो ये कहां मिलती है?? :)
बड़ा टेढ़ा काम है वकालत का। मैं तो मोटी-मोटी किताबें देखकर ही घबरा जाता हूँ।
एक टिप्पणी भेजें