सुरेश के सुबह सो कर उठने के पहले अखबार आ जाता है। शील ही पहले उसे पढ़ती है। सुरेश यदि बीच में उठ जाए तो उसे कॉफी बना कर दे देती है और फिर अखबार पकड़ लेती है। जब तक पूरा न पढ़ लिया जाए, उसे नहीं छोड़ती। यह अपने शहर, देश दुनिया के बारे में ताजा होने का सब से अच्छा तरीका है। फिर उसे अक्सर यह भी तो देखना होता है कि उस दिन पूनम, प्रदोष या कृष्णपक्षीय चतुर्थी तो नहीं पड़ रही है या कोई ऐसा त्यौहार तो नहीं है जिस में व्रत या पूजा वगैरा करनी हो। कहीं ऐसा न हो कि उन में से कोई छूट जाए। सोने से ले कर दाल-चावल तक के भाव उसी से तो पता लगते हैं और किसी के मरने-गिरने की खबर भी। अखबार से उसे यह सब जानकारी सुबह-सुबह मिल जाती है और दिनचर्या तय करना आसान हो जाता है। उसी से उसे यह भी खबर लगती है कि आज अदालत में काम होगा या वकील लोग यूँ ही मुकदमों में तारीखें ले कर वापस लौटेंगे। पिछले दो-एक बरस से यह खूब होने लगा है। महीने में दो-चार दफ़े तो वकील हड़ताल कर ही देते हैं और साल में कम से कम एक बार लंबी हड़ताल भी करते ही हैं। इस से वह जान जाती है कि सुरेश को दिन में आज कितनी फुरसत रहेगी? उसी हिसाब से वह सुरेश से करवाए जाने वाले बाहर के कामों की उसे याद दिलाती है।
शील को सप्ताह भर से ढोल पीट रहे टीवी चैनलों से पता चल गया था कि बुधवार को क्रिकेट विश्व-कप का फाइनल मैच होने वाला है। वह समझ गई थी कि सुरेश की कोशिश रहेगी कि ढ़ाई बजे के पहले घर पहुँच जाए और बिस्तर पर बैठे-लेटे वह मैच का आनंद ले सके। पहले तो सुरेश को क्रिकेट का बहुत ज़ुनून होता था। लेकिन अब उस पर उतना ध्यान नहीं देता। आखिर दे भी कब तक? वह ऐसा करने लगे तो धंधा ही चौपट हो जाए। फिर भी अगर भारत की टीम खेल रही हो तो मैच देखने की उस की कोशिश जरूर रहती है। उसे सुबह के अखबार से ही पता लग गया था कि आज के मैच के लिए वकील लोग अदालतों में काम नहीं करेंगे। सुबह जब सुरेश कॉफी पी रहा था तो शील ने पूछ लिया "आज अदालत में काम कितना है?" सुरेश भी अब इस तरह के सवालों का आदी हो चला है। वह तुरंत ही भाँप गया कि उसे कुछ काम बताया जाने वाला है। उस ने केवल इतना ही उत्तर दिया "कोई अधिक काम नहीं है।" तब शील ने बताया कि अदालत में तो आज वकील काम ही नहीं करेंगे।
-हाँ, काम तो नहीं करेंगे, लेकिन अदालत तो जाना पड़ेगा। जो मुकदमे आज लगे हैं उन में पेशी तो लानी पड़ेगी। तुम तो अपना काम बताओ जो मुझे करने के लिए कहने वाली हो। सुरेश ने कहा।
शील बताने लगी - मैं सोचती थी कि पोस्ट ऑफिस जा कर पोस्ट मास्टर को नया पता दे आओ। कहीं ऐसा न हो बच्चों की डिग्रियाँ आएँ और लौट कर फिर से युनिवर्सिटी चली जाएँ। फिर वहाँ से निकालना बहुत मुश्किल काम होगा। बच्चों को ही आ कर लेनी होंगी। वैसे भी वे घर कितने दिन के लिए आते हैं। फिर जब आते हैं तो युनिवर्सिटी में अवकाश होता है। वो गुप्ता जी की लड़की उसकी डिग्री आज तक भी युनिवर्सिटी से नहीं ला पाई है। जब गुप्ता जी पत्नी सहित एलटीसी पर गए थे तब आई थी, डाकिए ने लौटा दी।
शील कुछ देर के लिए रुकी तो सुरेश बोल उठा -अगला काम बताओ। एक वो आप के मिर्च वाले को फोन कर के पूछ लो कि वह मिर्चें कब ला कर देगा? गरमी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। अधिक देर हो गई तो उन्हें पीसने में परेशानी होगी। यदि वह एक दो दिनों में ला दे तो ठीक, वर्ना पोस्ट ऑफिस के नजदीक की दुकान पर अच्छी वाली मिर्चें हैं, आधा किलो लेते आना। बिलकुल खतम हो हो जाएंगी तो परेशानी आ जाएगी। गणगौर नजदीक है, गुणे तो बनाने पड़ेंगे। बिना मिर्च के तो बनने से रहे।
... और? सुरेश ने पूछा?
..... यूआईटी हो कर भी आना। नयी आवासीय योजना में प्लाटों के आवंटन के फार्म मिलने लगे हों तो वह भी लाना। गुल्लू कह रहा था कि इस बार जरूर भर देना चाहिए। यदि आवंटन मिल गया तो फायदा हो जाएगा। उसे वैसे भी इस बार प्रोपर्टी में इन्वेस्ट के लिए लोन लेना पड़ेगा। वर्ना बहुत सा पैसा सिर्फ इन्कमटैक्स में कट जाएगा। गुल्लू की सैलरी स्लिप ले जा कर लोन एजेंट को दिखा कर पूछ भी लेना कि उसे कितना लोन मिल सकता है।
... और? इस बार सुरेश ने पूछा तो यकायक शील हँस पड़ी। कहने लगी - आज के लिए इतना ही बहुत है, फिर अदालत जा कर आज की पेशियाँ भी तो लेनी हैं और फिर मैच भी तो देखना है। आज शाम तुम्हें दूध लेने नहीं जाना है, मैं ने गाँव वाले से एक किलो ले लिया है।
सुरेश कहने लगा -कभी कभी बहुत समझदारी करती हो। सच में, आज मैच शाम पाँच बजे क्रिटिकल हो जाता तो मैं नहीं ही जाता।
-कभी कभी क्यों जनाब? हमेशा क्यों नहीं कहते। क्या कभी मैं ने कोई बेवकूफी भी की है?
सुरेश की कॉफी कभी की खत्म हो चुकी थी, तम्बाकू को चूने के साथ घिस कर सुपारी मिला कर भी फाँक चुका था। वह उठा टॉयलेट में घुसते हुए बोला -मुझे बता कर दिन थो़ड़े ही खराब करना है। शील फिर हँस पड़ी। स्नानादि से निवृत्त हो कर सुरेश ने भोजन किया और निकल गया। उस ने शील के बताए सारे काम कर डाले थे। अदालत पहुँचा तो दुपहर का अवकाश होने में पंद्रह मिनट ही शेष बचे थे। उसे रोज ही अपनी कार पार्क करने के लिए जगह तलाशनी पड़ती थी। कभी कभी तो इस तलाश में कार को एक किलोमीटर बेशी चलाना पड़ जाता था। पर आज तो सारी ही जगह खाली पड़ी थी। कार को एक पेड़ की छाँह भी मिल गई थी। वरना कई सप्ताह से कार दिन फर धूप में तपती रहती थी। ज्यादातर लोग अपना काम निपटा कर घरों को जा चुके थे। अदालत में सन्नाटा पसरा था। मुवक्किलों का तो नाम भी नहीं था। वहाँ या तो अदालतों के कर्मचारी थे या फिर कुछ वकील, मुंशी और टाइपिस्ट आदि ही बचे थे। उन में से भी कुछ जाने की तैयारी में थे। कुछ ने मैच की एक पारी यहीं बार एसोसिएशन के टीवी पर मैच देखना था। जब भीड़ मैच देखती है तो उस का आनंद कुछ और ही होता है।
सुरेश ने जल्दी-जल्दी देखा कि उस के आज के मुकदमों की तारीख उस के जूनियर और मुंशी ले आए हैं या नहीं। देखा कि एक-दो ही मुकदमे रह गए हैं तो मुंशी को हिदायत दी कि लंच होने के पहले ही शेष तारीखें भी नोट कर ले और बस्ता गा़ड़ी में रख दे। मुंशी ने एक दो नोटिसों पर दस्तखत कराए, जिन्हें आज ही डिस्पैच करना था। कुछ और अदालती कागजों पर दस्तखत करने के बाद सुरेश अपनी लंच-टीम के साथ चाय के लिए निकल गया। उस ने साथियों से पूछा -मैच देखने की क्या तैयारी है? अधिकतर चाय के बाद घर जाने वाले थे। एक दो ने वहीं मैच देखना था। जगदीश कोई गाना गुनगुना रहा था। सुरेश ने पूछा -क्या गुनगुना रहे हो?
-कुछ नहीं, यार! हर कोई ऐरा-गैरा, नत्थू खैरा किरकेट पर गाना बना रहा है तो मैं ने सोचा मैं भी क्यूँ न बना दू?
-फिर कुछ सूझा? सुरेश ने पूछा।
-हाँ, दो पंक्तियाँ तो सूझ गई हैं। पर गाड़ी आगे बढ़ ही नहीं रही है।
-तो दो ही सुना दो। गाना वर्डकप फाईनल शुरू होने तक तो बन ही जाएगा। पूरा तब सुन लेंगे।
- तो सुन ही लो। जगदीश सचमुच गाने लगा ....
देखो देखो देखो S S S S S S S S ओ
किरकट का मैच देखो S S S S S S S S ओ भारत-पाक भिड़ते देखो S S S S S S S S ओ
भूलो भूलो भूलो S S S S S S S S ओ
राष्ट्रमण्डल को भूलो S S S S S S S S ओ
धोनी-सहबाग-सचिन याद रखो S S S S S ओ
भूलो भूलो भूलो S S S S S S S S ओ
कलमाड़ी की कालिख भूलो S S S S S S ओ
देखो देखो देखो S S S S S S S S ओ
किरकट का मैच देखो S S S S S S S S ओ ...
सुरेश ने जगदीश को बाहों में भर लिया। उस्ताद आज तो मिर्जा और मीर भी तुम्हें दाद दे रहे होंगे।
चाय से निपट कर सुरेश घर पहुँचा तो टीवी से मैच की आवाजें आ रही थीं। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि पंद्रह दिन पहले तक अपने फेवराइट सीरियल के समय शील उसे कहती थी कि वह मैच इंटरनेट पर देख ले। आज अपने फेवराइट सीरियल के समय क्रिकेट मैच देख रही है। उस ने गेट खोल कर कार अंदर रखी। शील ने दरवाजा खोला और तुरंत अंदर जा बैठी। बेडरूम का टीवी चल रहा था। दो ओवर हो चुके थे। शील जम कर बेड पर बैठ कर मैच देखने लगी। सुरेश ने कपड़े बदले और वह भी बेड पर लेट कर मैच देखने लगा।
शील ने पूरा मैच तन्मय हो कर देखा। आखिरी ओवर की पहली गेंद फेंकने के बाद जब सुरेश ने कहा कि अब भारत जीत गया। तो शील बोली -जीत गया, तो फिर अब गेंद क्यों फैंकी जा रही है? जब तक आखिरी पाक खिलाड़ी आउट न हो गया तब तक वह नहीं उठी। उठी तो सब से पहले घड़ी देखी। उस की प्रतिक्रिया थी -अरे! ग्यारह बज गए! मैं तो सोच रही थी अभी साढ़े नौ ही बजे होंगे।
सुरेश ने कहा -अब भोजन भी बना लो। वर्ना जीत की खुशी में भूखा ही सोना पड़ेगा।
-भोजन मैं ने दो बजे के पहले ही बना लिया था। बस, गरम कर के लाती हूँ।
सुरेश सोच रहा था ... तो ये वजह थी, कि शील ने बड़े इत्मिनान से मैच देखा।