@import url('https://fonts.googleapis.com/css2?family=Yatra+Oney=swap'); अनवरत: पाकिस्तान
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गुरुवार, 31 मार्च 2011

शील ने इत्मिनान से क्रिकेट मैच देखा

सुरेश के सुबह सो कर उठने के पहले अखबार आ जाता है। शील ही पहले उसे पढ़ती है। सुरेश यदि बीच में उठ जाए तो उसे कॉफी बना कर दे देती है और फिर अखबार पकड़ लेती है। जब तक पूरा न पढ़ लिया जाए, उसे नहीं छोड़ती। यह अपने शहर, देश दुनिया के बारे में ताजा होने का सब से अच्छा तरीका है। फिर उसे अक्सर यह भी तो देखना होता है कि उस दिन पूनम, प्रदोष या कृष्णपक्षीय चतुर्थी तो नहीं पड़ रही है या कोई ऐसा त्यौहार तो नहीं है जिस में व्रत या पूजा वगैरा करनी हो। कहीं ऐसा न हो कि उन में से कोई छूट जाए। सोने से ले कर दाल-चावल तक के भाव उसी से तो पता लगते हैं और किसी के मरने-गिरने की खबर भी। अखबार से उसे यह सब जानकारी सुबह-सुबह मिल जाती है और दिनचर्या तय करना आसान हो जाता है। उसी से उसे यह भी खबर लगती है कि आज अदालत में काम होगा या वकील लोग यूँ ही मुकदमों में तारीखें ले कर वापस लौटेंगे। पिछले दो-एक बरस से यह खूब होने लगा है। महीने में दो-चार दफ़े तो वकील हड़ताल कर ही देते हैं और साल में कम से कम एक बार लंबी हड़ताल  भी करते ही हैं। इस से वह जान जाती है कि सुरेश को दिन में आज कितनी फुरसत रहेगी? उसी हिसाब से वह सुरेश से करवाए जाने वाले बाहर के कामों की उसे याद दिलाती है। 
शील को सप्ताह भर से ढोल पीट रहे टीवी चैनलों से पता चल गया था कि बुधवार को क्रिकेट विश्व-कप का फाइनल मैच होने वाला है। वह समझ गई थी कि सुरेश की कोशिश रहेगी कि ढ़ाई बजे के पहले घर पहुँच जाए और बिस्तर पर बैठे-लेटे वह मैच का आनंद ले सके। पहले तो सुरेश को क्रिकेट का बहुत ज़ुनून होता था। लेकिन अब उस पर उतना ध्यान नहीं देता। आखिर दे भी कब तक? वह ऐसा करने लगे तो धंधा ही चौपट हो जाए। फिर भी अगर भारत की टीम खेल रही हो तो मैच देखने की उस की कोशिश जरूर रहती है। उसे सुबह के अखबार से ही पता लग गया था कि आज के मैच के लिए वकील लोग अदालतों में काम नहीं करेंगे। सुबह जब सुरेश कॉफी पी रहा था तो शील ने पूछ लिया "आज अदालत में काम कितना है?" सुरेश भी अब इस तरह के सवालों का आदी हो चला है। वह तुरंत ही भाँप गया कि उसे कुछ काम बताया जाने वाला है। उस ने केवल इतना ही उत्तर दिया "कोई अधिक काम नहीं है।" तब शील ने बताया कि अदालत में तो आज वकील काम ही नहीं करेंगे। 
-हाँ, काम तो नहीं करेंगे, लेकिन अदालत तो जाना पड़ेगा। जो मुकदमे आज लगे हैं उन में पेशी तो लानी पड़ेगी। तुम तो अपना काम बताओ जो मुझे करने के लिए कहने वाली हो। सुरेश ने कहा। 
शील बताने लगी - मैं सोचती थी कि पोस्ट ऑफिस जा कर पोस्ट मास्टर को नया पता दे आओ। कहीं ऐसा न हो बच्चों की डिग्रियाँ आएँ और लौट कर फिर से युनिवर्सिटी चली जाएँ। फिर वहाँ से निकालना बहुत मुश्किल काम होगा। बच्चों को ही आ कर लेनी होंगी। वैसे भी वे घर कितने दिन के लिए आते हैं। फिर जब आते हैं तो युनिवर्सिटी में अवकाश होता है। वो गुप्ता जी की लड़की उसकी डिग्री आज तक भी युनिवर्सिटी से नहीं ला पाई है। जब गुप्ता जी पत्नी सहित एलटीसी पर गए थे तब आई थी, डाकिए ने लौटा दी। 
शील कुछ देर के लिए रुकी तो सुरेश बोल उठा -अगला काम बताओ। एक वो आप के मिर्च वाले को फोन कर के पूछ लो कि वह मिर्चें कब ला कर देगा? गरमी धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है। अधिक देर हो गई तो उन्हें पीसने में परेशानी होगी। यदि वह एक दो दिनों में ला दे तो ठीक, वर्ना पोस्ट ऑफिस के नजदीक की दुकान पर अच्छी वाली मिर्चें हैं, आधा किलो लेते आना। बिलकुल खतम हो हो जाएंगी तो परेशानी आ जाएगी। गणगौर नजदीक है, गुणे तो बनाने पड़ेंगे। बिना मिर्च के तो बनने से रहे।
... और? सुरेश ने पूछा? 
..... यूआईटी हो कर भी आना। नयी आवासीय योजना में  प्लाटों के आवंटन के फार्म मिलने लगे हों तो वह भी लाना। गुल्लू कह रहा था कि इस बार जरूर भर देना चाहिए। यदि आवंटन मिल गया तो फायदा हो जाएगा। उसे वैसे भी इस बार प्रोपर्टी में इन्वेस्ट के लिए लोन लेना पड़ेगा। वर्ना बहुत सा पैसा सिर्फ इन्कमटैक्स में कट जाएगा। गुल्लू की सैलरी स्लिप ले जा कर लोन एजेंट को दिखा कर पूछ भी लेना कि उसे कितना लोन मिल सकता है। 
... और?  इस बार सुरेश ने पूछा तो यकायक शील हँस पड़ी। कहने लगी - आज के लिए इतना ही बहुत है, फिर अदालत जा कर आज की पेशियाँ भी तो लेनी हैं और  फिर मैच भी तो देखना है। आज शाम तुम्हें दूध लेने नहीं जाना है, मैं ने गाँव वाले से एक किलो ले लिया है। 
सुरेश कहने लगा -कभी कभी बहुत समझदारी करती हो। सच में, आज मैच शाम पाँच बजे क्रिटिकल हो जाता तो मैं नहीं ही जाता।
-कभी कभी क्यों जनाब? हमेशा क्यों नहीं कहते। क्या कभी मैं ने कोई बेवकूफी भी की है? 
सुरेश की कॉफी कभी की खत्म हो चुकी थी, तम्बाकू को चूने के साथ घिस कर सुपारी मिला कर भी फाँक चुका था। वह उठा टॉयलेट में घुसते हुए बोला -मुझे बता कर दिन थो़ड़े ही खराब करना है। शील फिर हँस पड़ी। स्नानादि से निवृत्त हो कर सुरेश ने भोजन किया और निकल गया। उस ने शील के बताए सारे काम कर डाले थे। अदालत पहुँचा तो दुपहर का अवकाश होने में पंद्रह मिनट ही शेष बचे थे। उसे रोज ही अपनी कार पार्क करने के लिए जगह तलाशनी पड़ती थी। कभी कभी तो इस तलाश में कार को एक किलोमीटर बेशी चलाना पड़ जाता था। पर आज तो सारी ही जगह खाली पड़ी थी। कार को एक पेड़ की छाँह भी मिल गई थी। वरना कई सप्ताह से कार दिन फर धूप में तपती रहती थी। ज्यादातर लोग अपना काम निपटा कर घरों को जा चुके थे। अदालत में सन्नाटा पसरा था। मुवक्किलों का तो नाम भी नहीं था। वहाँ या तो अदालतों के कर्मचारी थे या फिर कुछ वकील, मुंशी और टाइपिस्ट आदि ही बचे थे। उन में से भी कुछ जाने की तैयारी में थे। कुछ ने मैच की एक पारी यहीं बार एसोसिएशन के टीवी पर मैच देखना था। जब भीड़ मैच देखती है तो उस का आनंद कुछ और ही होता है। 
सुरेश ने जल्दी-जल्दी देखा कि उस के आज के मुकदमों की तारीख उस के जूनियर और मुंशी ले आए हैं या नहीं। देखा कि एक-दो ही मुकदमे रह गए हैं तो मुंशी को हिदायत दी कि लंच होने के पहले ही शेष तारीखें भी नोट कर ले और बस्ता गा़ड़ी में रख दे। मुंशी ने एक दो नोटिसों पर दस्तखत कराए, जिन्हें आज ही डिस्पैच करना था। कुछ और अदालती कागजों पर दस्तखत करने के बाद सुरेश अपनी लंच-टीम के साथ चाय के लिए निकल गया। उस ने साथियों से पूछा -मैच देखने की क्या तैयारी है? अधिकतर चाय के बाद घर जाने वाले थे। एक दो ने वहीं मैच देखना था। जगदीश कोई गाना गुनगुना रहा था। सुरेश ने पूछा -क्या गुनगुना रहे हो?
-कुछ नहीं, यार! हर कोई ऐरा-गैरा, नत्थू खैरा किरकेट पर गाना बना रहा है तो मैं ने सोचा मैं भी क्यूँ न बना दू? 
-फिर कुछ सूझा? सुरेश ने पूछा।
-हाँ, दो पंक्तियाँ तो सूझ गई हैं। पर गाड़ी आगे बढ़ ही नहीं रही है। 
-तो दो ही सुना दो। गाना वर्डकप फाईनल शुरू होने तक तो बन ही जाएगा। पूरा तब सुन लेंगे। 
- तो सुन ही लो। जगदीश सचमुच गाने लगा ....

देखो देखो देखो S S S S S S S S ओ
किरकट का मैच देखो S S S S S S S S ओ
भारत-पाक भिड़ते देखो S S S S S S S S ओ
भूलो भूलो भूलो S S S S S S S S ओ
राष्ट्रमण्डल को भूलो S S S S S S S S ओ
धोनी-सहबाग-सचिन याद रखो S S S S S ओ
भूलो भूलो भूलो S S S S S S S S ओ
कलमाड़ी की कालिख भूलो S S S S S S ओ
देखो देखो देखो S S S S S S S S ओ
किरकट का मैच देखो S S S S S S S S ओ ...

सुरेश ने जगदीश को बाहों में भर लिया। उस्ताद आज तो मिर्जा और मीर भी तुम्हें दाद दे रहे होंगे। 

चाय से निपट कर सुरेश घर पहुँचा तो टीवी से मैच की आवाजें आ रही थीं। उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि पंद्रह दिन पहले तक अपने फेवराइट सीरियल के समय शील उसे कहती थी कि वह मैच इंटरनेट पर देख ले।  आज अपने फेवराइट सीरियल के समय क्रिकेट मैच देख रही है। उस ने गेट खोल कर कार अंदर रखी। शील ने दरवाजा खोला और तुरंत अंदर जा बैठी। बेडरूम का टीवी चल रहा था। दो ओवर हो चुके थे। शील जम कर बेड पर बैठ कर मैच देखने लगी। सुरेश ने कपड़े बदले और वह भी बेड पर लेट कर मैच देखने लगा। 
शील ने पूरा मैच तन्मय हो कर देखा। आखिरी ओवर की पहली गेंद फेंकने के बाद जब सुरेश ने कहा कि अब भारत जीत गया। तो शील बोली -जीत गया, तो फिर अब गेंद क्यों फैंकी जा रही है? जब तक आखिरी पाक खिलाड़ी आउट न हो गया तब तक वह नहीं उठी। उठी तो सब से पहले घड़ी देखी। उस की प्रतिक्रिया थी -अरे! ग्यारह बज गए! मैं तो सोच रही थी अभी साढ़े नौ ही बजे होंगे।
सुरेश ने कहा -अब भोजन भी बना लो। वर्ना जीत की खुशी में भूखा ही सोना पड़ेगा। 
-भोजन मैं ने दो बजे के पहले ही बना लिया था। बस, गरम कर के लाती हूँ। 
सुरेश सोच रहा था ... तो ये वजह थी, कि शील ने बड़े इत्मिनान से मैच देखा।

शुक्रवार, 16 जनवरी 2009

एक चैट, भारत-पाकिस्तान पर

मकर संक्रान्ति के दिन अवकाश था,  मैं अंतर्जाल पर जीवित पकड़ा गया, एक  ब्लागर साथी के हाथों।  उन से चैट हुई।  चैट इतनी अच्छी हुई कि बिना उन से पूछे सार्वजनिक करने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ।  चलिए बिना भूमिका के आप पढ़िए....

मैं: नमस्ते  

?????? जी! संक्रान्ति की राम राम!

??????: मकर संक्रान्ति की बहुत बहुत बधाई हो आप को भी। सर! क्या हम वर्तमान स्थिति पर कोई बात कर सकते हैं? भारत और पाकिस्तानम के बारे में? यदि आप के पास समय हो?

मैं: आप अपनी बात कहें।

??????:मैं सोचता हूँ कि ये भारत की कायरता है जो उस ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया है। ऐसा ही जब संसद पर हमला हुआ था तब भी हुआ था।  हमने जितने सबूत थे पाकिस्तान को दिए उस ने सब नकार दिए। यहाँ तक कि आतंकवादियों को सबूतों और गवाहों की कमी को दिखाते हुए रिहा तक कर दिया ( हो सकता है ये मेरी सीमित सोच हो) इस लिए आप इस बात पर रोशनी डालिए।

मैं:  आप का कहना कुछ हद तक सही है। लेकिन आज हम कोई दुनिया में अकेले नहीं हैं। पूरा विश्व समुदाय है। हम अपनी जमीन पर कोई भी कार्यवाही कर सकते हैं। लेकिन पाकिस्तान की जमीन पर कोई भी कार्यवाही करने के पहले पूरे विश्व समुदाय में उस के लिए माहौल बनाना आवश्यक है। उस काम को हमारी सरकार बखूबी कर रही है। जल्दबाजी और क्रोध में उठाया गया कदम उल्टा भी पड़ जाता है। हाँ यदि माहौल बनने के उपरांत भी ऐसा न किया जाए तो फिर कायरता है। हमारे देश में तो माहोल है। लेकिन वैश्विक समुदाय में माहौल बनाने में कुछ समय और लग सकता है।  अभी तो हमें सरकार का साथ देते हुए उसे आगे कार्यवाही करने के लिए लगातार तत्पर रखना है।

??????:जब अमेरिका किसी की परवाह नहीं करता तो हम क्यों करें?

मैं:  सबूत केवल पाकिस्तान को ही नहीं दिये हैं अपितु इसीलिए वैश्विक समुदाय में दिए गए हैं ताकि कोई बाद में पंगा न करे।  हम भारत की तुलना अमेरिका से नहीं कर सकते, और परवाह तो उसे भी करनी पड़ती है।

??????:अब पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से लगते इलाकों से सेना हटा कर हमारी सीमा के पास लगा दी।

मैं:  वह अमरीका की चिंता का विषय है।  इस से उस को परेशानी होगी।

??????: वहाँ वजीरीस्तान के कबीलों के सरदारों ने भी पाकिस्तान का साथ देने की हामी भर दी है।

मैं: वह हमारे हित में ठीक है। आप को अमेरिका का अधिक साथ मिलेगा।

??????: कल तक तो अमेरीका का रिप्रेजेण्टेटिव था।

मैं: वे पाकिस्तान का साथ नहीं दे रहे वे वस्तुतः पाकिस्तान को तोड़ना या वहाँ अपनी हुकूमत देखना चाहते हैं।

??????: और आज खिलाफ हो रहा है हाँ जो अमेरीका का मंसूबा है हम वो क्यों नहीं कर सकते?

मैं:पाकिस्तान अपने अंतर्विरोधों से टूटेगा। किसी बाहरी हमले से नहीं।

??????: इंदिरा ने तो जीता जिताया लाहौर तक वापिस दे दिया। कहने का मतलब है कि हम सांस भी लेंगे तो अमेरिका से पूछ कर?

मैं: झगड़े के वक्त पड़ौसी के घर में घुस कर मार करेंगे तो बाद में वापस अपने घर आना तो पड़ेगा न।

??????: आतंकवादियों ने हमारे घर पर आक्रमण किया है, ना कि अमरीका पर?

मैं: आज जमीने युद्ध से नहीं वहाँ के रहने वालों की इच्छा के आधार पर किसी देश में बनी रह सकती हैं।
आप ने सही कहा है। आतंकवाद से निपटना तो हमें ही पड़ेगा। लेकिन दूसरे के घर जा कर मार करने के लिए बहुत तैयारी जरूरी है।
फिर हम मोहल्ले के बदमाश को पीटने के पहले उस के खिलाफ माहोल तो बनना पड़ेगा। वरना खुद ही धुन दिए जाएंगे। और मुकदमा भी आप के खिलाफ ही बनेगा।

??????: ये तो एक्सक्यूज है। अमरीका ने सद्दाम को मारने से पहले, उस के देश को तबाह करने से पहले किसी से पूछा था? लादेन के देश (अफगानिस्तान) में घुस कर उस के देश को तबाह कर दिया?
मैं: वहाँ परिस्थिति भिन्न थी सद्दाम खुद दूसरे देश में सेना ले कर घुसा था और उस देश ने अमरीका की मदद मांगी थी।  आज पाकिस्तान जरा घुसने की हिमाकत कर डाले तो काम बहुत आसान हो जाए।  उस के लिए देश और सेना तैयार खड़ी है,   लेकिन वह ऐसा नहीं करेगा।
??????: आशा करें कि वह ऐसा करे।  ओ.के. सर! आप के साथ चैट कर के अच्छा लगा। मैं आप से सहमत हूँ।

मैं: हाँ तैयारी तो वैसी रखनी चाहिए। पर उस का इंतजार तो नहीं किया जा सकता।  इसलिए विश्व में लगातार माहौल बनाना पड़ेगा और अभी तो संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद के मामले को ऐसे उठाना होगा कि कश्मीर का मामला उठे ही नहीं, और पाकिस्तान उठाने की कोशिश करे तो उस का मुहँ बंद कर दिया जाए।
धन्यवाद!

??????: बहुत धन्यवाद!  ओ. के. सर!

मैं:दिवस शुभ हो!

??????:आप का भी दिवस शुभ हो मकर संक्रांति की बहुत बहुत शुभकामनाएँ।

गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

पाकिस्तान क्यों युद्ध का वातावरण बना रहा है?

मैं आज बात तो करना चाह रहा था अपने विगत आलेख पूँजीवाद और समाजवाद/सर्वहारा का अधिनायकवाद 
के पात्रों आदरणीय गुरूजी सज्जन दास जी मोहता और उन के मित्र जगदीश नारायण जी माथुर और इस पोस्ट पर  आई टिप्पणियों में व्यक्त विचारों के सम्बन्ध में, लेकिन यहाँ दूसरी ही खबरें आ रही हैं। एक खबर तो कल अनवरत पर ही थी- कोटा स्टेशन और तीन महत्वपूर्ण रेल गाड़ियों को विस्फोटकों से उड़ाने की आतंकी धमकी दूसरी खबर अभी अभी आज तक पर सुन कर आ रहा हूँ इसे नवभारत टाइम्स ने भी अपनी प्रमुख खबर बनाया है कि -
"भारतीय सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) ने भी बताया है कि बॉर्डर के दूसरी ओर (पाकिस्तान की तरफ) हलचल तेज है। पाकिस्तानी रेंजर्स को हटाकर वहां पाकिस्तानी सेना को तैनात कर दिया गया है। बीएसएफ, वेस्टर्न जोन के एडीजी यू.के.बंसल ने कहा है कि हमने बुधवार को बॉर्डर का मुआयना किया और हमने पाया कि बॉर्डर के दूसरी तरफ सैन्य गतिविधियां तेज हैं। उन्होंने कहा कि बीएसएफ किसी भी हालात से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार है।"
मुम्बई पर 26 नवम्बर के आतंकवादी हमले के संबंध में एकदम साफ सबूत हैं कि हमलावर पाकिस्तान से आए थे, हमले की सारी तैयारी पाकिस्तान में हुई थी। हमलावरों में से एक को जीवित पकड़ा गया वह चीख चीख कर कह रहा है कि वह पाकिस्तानी है। लेकिन फिर भी पाकिस्तान सरकार लगातार जानबूझ कर इन सबूतों को मानने से इन्कार कर रही है। उस ने यहाँ तक कहा है कि उन के डाटाबेस में कसाब नहीं है।

कसाब का पाकिस्तान के डाटा बेस में नहीं होने का बयान देना अपने आप में बहुत ही गंभीर बात है। इस का अर्थ यह है कि पाकिस्तान अपने प्रत्येक नागरिक का विवरण अपने डाटाबेस में रखता है। हालांकि उस की अफगान सीमा पूरी तरह से असुरक्षित है और एक पुख्ता डाटाबेस बना कर रखना संभव नहीं है। फिर भी हम मान लें कि उन का ड़ाटाबेस पुख्ता है और उस में हर पाकिस्तानी नागरिक का विवरण महफूज रहता है। लेकिन कसाब तो पाकिस्तानी है उस का विवरण उस में होना चाहिए।

पुख्ता डाटाबेस में कसाब का विवरण नहीं होना यह इंगित करता है कि विवरण को साजिश की रचना करने के दौरान ही डाटाबेस से हटा दिया गया है या फिर साजिश को अंजाम दिए जाने के उपरांत। यह पाकिस्तान के प्रशासन में आतंकवादियो की पहुँच को प्रदर्शित करता है। पाकिस्तान के इस तथाकथित डाटाबेस में किसी भी उस पाकिस्तानी का विवरण नहीं मिलेगा जो किसी आतंकवादी षड़यंत्र के लिए या फिर जासूसी के इरादे से पाकिस्तान के बाहर आएगा।

पाकिस्तान के निर्माण से अब तक आधे से भी अधिक वर्ष पाकिस्तान ने सैनिक शासन के अंतर्गत गुजारे हैं। वहाँ कभी भी सत्ता पर सेना काबिज हो सकती है। सत्ता पर सेना का प्रभाव इतना है कि कोई भी राजनैतिक सत्ता तभी वहाँ बनी रह सकती है जब तक सेना चाहे। दूसरी और आतंकवादी बहुत प्रभावी हैं, उन्हें सेना का समर्थन हासिल है। यह इस बात से ही स्पष्ट है कि भारत से संघर्ष की स्थिति में तालिबान उन के विरुद्ध अमरीकी दबाव में लड़ रही सेना के साथ खड़े होने की घोषणा कर चुके हैं। आईएसआई की अपनी अलग ताकत है जो सेना और आतंकवादियों के साथ जुड़ी है।

इन परिस्थितियों में पाकिस्तान की सरकार पूरी तरह निरीह नजर आ रही है। फौज, आईएसआई और आतंकवादी की मंशा के विपरीत कोई भी निर्णय कर पाना पाकिस्तान की चुनी हुई सरकार के विरुद्ध आत्महत्या करना जैसा है। यदि अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आगे पाकिस्तान को आतंकवादियों के विरुद्ध कार्यवाही करनी ही पड़ती है तो पाकिस्तान एक गृहयुद्ध के दरवाजे पर खड़ा हो जाएगा। एक ही बात पाकिस्तान को गृहयुद्ध से बचा सकती है वह यह कि भारत उस पर हमला कर दे। पाकिस्तान द्वारा भारत से युद्ध का वातावरण बनाने के पीछे यही उद्देश्य काम कर रहा है।

इन परिस्थितियों में यह तो नितांत आवश्यक है कि भारत को अपनी सुरक्षा के लिए सेनाओं को तैयार रखना पड़ेगा। भारतीय कूटनीति की सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि किसी भी प्रकार के युद्ध में कूद पड़ने के पहले पाकिस्तान अपने गृहयुद्ध में उलझ जाए।

शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008

दिल ढूंढता है, टूटने के बहाने

मैं ने कभी यह सत्य नियम जाना था कि कोई भी चीज तब तक नहीं टूटती-बिखरती जब तक वह अंदर से खुद कमजोर नहीं होती चाहे बाहर से कित्ता ही जोर लगा लो। जब अंदरूनी कमजोरी से कोई चीज टूटने को आती है तो वह अपनी कमजोरी को छुपाने को बहाने तलाशना आरंभ कर देती है।

पाकिस्तान अपने ही देश के आंतकवादियों पर काबू पाने में सक्षम नहीं हो पा रहा है और जिस तरीके से वहाँ आतंकवादियों ने मजबूती पकड़ ली है उस से यह आशंका बहुत तेजी से लोगों के दिलों में घर करती जा रही है कि एक दिन पाकिस्तान जरूर बिखर जाएगा। इस आशंका के चलते पाकिस्तान के लोगों ने बहाने तलाशना आरंभ कर दिया है। वैसे तो तोड़-जोड़ कर बनाया गया पाकिस्तान पहले भी टूट चुका है। लेकिन उस बार उसे तोड़ने का श्रेय खुद पाकिस्तानियों को प्राप्त हो गया था। उन्हों ने देख लिया कि वे पूर्वी बंगाल की आबादी पर अपना कब्जा वोट के जरिए नहीं बनाए रख सकते हैं तो उन्हों ने उसे टूट जाने दिया। अब फिर वही नौबत आ रही है।

अब वे यह तो कह नहीं सकते कि भारत उन्हें तोड़ रहा है। क्यों कि इस में तो उन की हेटी है। इस से तो यह साबित हो जाता कि पाकिस्तान बनाने के लिए भारत को तोड़ा जाना ही गलत था।यह पहलवान चाहे हर कुश्ती में हारता हो लेकिन कभी भी अपने पड़ौसी पहलवान को खुद से ताकतवर कहना पसंद नहीं करता। इस लिए भारत तो इस तोहमत से बच गया कि वह पाकिस्तान को तोड़ने की साजिश कर रहा है। अब किस के सर यह तोहमत रखी जाए? तो भला अमरीका से कोई पावरफुल है क्या दुनिया में? उस के सर तोहमत रखो तो कोई मुश्किल नहीं,  कम से कम यह तो कहा जा सके कि हम पिटे तो उस से, जिस से सारी दुनिया पिट रही है।

लाहौर हाईकोर्ट की बार एसोसिएशन ने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित कर दिया है कि अमरीका पाकिस्तान में आतंकवाद फैला रहा है और मुम्बई हमला भी उसी के इशारों पर काम कर रहे आतंकवादियों का कारनामा है। यह कारनामा इस लिए किया गया है जिस से पाकिस्तान पर इस हमले को करवाने के आरोप की जद में अपने आप आ जाए।

वकीलों से खचाखच भरी इस बैठक में पारित इस प्रस्ताव में कहा गया कि अमरीका यह सब इस लिए कर रहा है जिस से उस की बनाई योजना के मुताबिक यूगोस्लाविया के पैटर्न पर पाकिस्तान को तोड़ा जा सके। (खबर यहाँ पढ़ें) बैरिस्टर ज़फ़रउल्लाह खान द्वारा पेश किए गए इस प्रस्ताव में कहा गया है कि अमरीका के इस मुंबई कारनामे पर ब्रिटेन सब से अधिक ढोल बजा रहा है जिस से किसी की निगाह अमरीका के इस कुकृत्य पर न पड़ सके। इस प्रस्ताव में पाकिस्तान पर अमरीकी हमलों की निन्दा  करते हुए कहा गया है कि ये हमले पाकिस्तान के उत्तरी भाग को आगाखान स्टेट में बदलने का प्रयास है। जिस के लिए आगाखान फाउंडेशन हर साल तीस करोड़ डालर खर्च कर रहा है।