हम पूर्वा के आवास पर पहुँचे। पूर्वा डेयरी से दूध ले कर कुछ देर बाद आई। तीसरा पहर अंतिम सांसे गिन रहा था, ढाई बज चुके थे। सफर ने थका दिया था और दोनों सुबह से निराहार थे। मैं तुरंत दीवान पर लेट लिया। पूर्वा ने घऱ से लड़्डू-मठरी संभाले और शोभा ने रसोई। कुछ ही देर में कॉफी-चाय तैयार थी। उस ने बहुत राहत प्रदान की। सुबह जल्दी सोकर उठे थे इस लिए चाय-कॉफी पीने के बावजूद नींद लग गई। शाम को उठते ही दुबारा कॉफी तैयार थी और शाम के भोजन की तैयारी। मैं ने पूर्वा का लेपटॉप संभाला और मेल देख डाली।
शाम के भोजन के बाद मैं और शोभा अरुण अरोरा जी के घर पहुँचे। अरुण जी तब तक अपने काम से वापस नहीं लौटे थे। हम कुछ देर मंजू भाभी से बातें करते रहे। तभी अरुण जी आ गए। उन से बहुत बातें हुईं। पिछले दिनों उन्हों ने अपने उद्योग का काया पलट कर दिया। एक पूरा नया प्लांट जो अधिक क्षमता से काम कर सकता है स्थापित कर लिया। अब नए प्लांट को अधिक काम चाहिए, उसी में लगे हैं। काम के आदेश मिलने लगे हैं और प्राप्त करने के प्रयास हैं। कई नमूने के काम चल रहे हैं, नमूने पसंद आ जाएँ तो ऑर्डर मिलने लगें। किसी भी उद्यमी के जीवन का यह महत्वपूर्ण समय होता है। इसी समय वह पूरी निगेहबानी और मुस्तैदी से काम कर ले तो बाजार में साख बन जाती है और आगे काम मिलना आसान हो जाता है। उन के लिए यह समय वास्तव में महत्वपूर्ण और चुनौती भरा है। मैं ने उन से ब्लागरी में वापसी के लिए कहा तो बोले। एक बार नमस्कार कर दिया तो कर दिया। उन के स्वर में दृढ़ता तो थी, लेकिन उतनी नहीं कि उन की वापसी संभव ही न हो। मुझे पूरा विश्वास है, एक बार वे अपने उद्यम की इस क्रांतिक अवस्था से आगे बढ़ कर उसे गतिशील अवस्था में पाएँगे तो ब्लागरी में अवश्य वापस लौटेंगे और एक नए रूप और आत्मविश्वास के साथ।
मैं ने अरुण जी को बताया कि पाबला जी भी दिल्ली आए हुए हैं और कल कुछ ब्लागर दिल्ली में मिलेंगे। पाबला जी आप से मिलना भी चाहते हैं। कल रविवार है, दिल्ली चलिए, शाम तक लौट आएंगे, कल रविवार भी है। उन्हें यह सुन कर अच्छा लगा, लेकिन वे रविवार को भी व्यस्त थे कुछ संभावित ग्राहकों के साथ उन की दिन में बैठक थी। उन्हों ने कहा यदि समय हो तो पाबला जी को इधर फरीदाबाद लेते आइए, मुझे बहुत खुशी होगी। हमने अरुण जी के उद्यम की सफलता के लिए अपनी शुभेच्छाएँ व्यक्त कीं और वापस लौट पड़े। वापसी पर पाबला जी और अजय कुमार झा से फोन पर बात हुई। उन्हों ने बताया कि सुबह 11 बजे दिल्ली में यथास्थान पहुँचना है। दिन में सो जाने के कारण आँखों में नींद नहीं थी। मैं देर तक पूर्वा के लैप पर ब्लाग पढता रहा, कुछ टिप्पणियाँ भी कीं। फिर सोने का प्रयास करने लगा आखिर मुझे अगली सुबह जल्दी दिल्ली के लिए निकलना था।
आज का दिन
आज मुम्बई और देश आतंकी हमले की बरसी को याद कर रहा है, और याद कर रहा है अचानक हुए उस हमले से निपटने में प्रदर्शित जवानों के शौर्य और बलिदान को। शौर्य और बलिदान जवानों का कर्म और धर्म है। जो जन उन से सुरक्षा पाते हैं उन्हें, उन का आभार व्यक्त करना ही चाहिए। लेकिन वह सूराख जिस के कारण वे चूहे हमारे घर में दाखिल हुए, मरते-मरते भी घर को यहाँ-वहाँ कुतर गए, अपने दाँतों के निशान छोड़ गए। देखने की जरूरत है कि क्या वे सूराख अब भी हैं? क्या अब भी चूहे घऱ में कहीं से सूराख कर घुसने की कारगुजारी कर सकते हैं? और यदि वे अब भी घुसपैठ कर सकते हैं तो सब से पहले घर की सुरक्षा जरूरी है। उस के लिए शौर्य और बलिदान की क्षमता ही पर्याप्त नहीं। घर के लोगों की एकता और सजगता ज्यादा जरूरी है। मैं दोहराना चाहूँगा। पिछले वर्ष लिखी कुछ पंक्तियों में से इन्हें ....
वे जो कोई भी हैं
ये वक्त नहीं
सोचने का उन पर
ये वक्त है
अपनी ओर झाँकने और
युद्धरत होने का
आओ संभालें
अपनी अपनी ढालें
और तलवारें
मैं ने अरुण जी को बताया कि पाबला जी भी दिल्ली आए हुए हैं और कल कुछ ब्लागर दिल्ली में मिलेंगे। पाबला जी आप से मिलना भी चाहते हैं। कल रविवार है, दिल्ली चलिए, शाम तक लौट आएंगे, कल रविवार भी है। उन्हें यह सुन कर अच्छा लगा, लेकिन वे रविवार को भी व्यस्त थे कुछ संभावित ग्राहकों के साथ उन की दिन में बैठक थी। उन्हों ने कहा यदि समय हो तो पाबला जी को इधर फरीदाबाद लेते आइए, मुझे बहुत खुशी होगी। हमने अरुण जी के उद्यम की सफलता के लिए अपनी शुभेच्छाएँ व्यक्त कीं और वापस लौट पड़े। वापसी पर पाबला जी और अजय कुमार झा से फोन पर बात हुई। उन्हों ने बताया कि सुबह 11 बजे दिल्ली में यथास्थान पहुँचना है। दिन में सो जाने के कारण आँखों में नींद नहीं थी। मैं देर तक पूर्वा के लैप पर ब्लाग पढता रहा, कुछ टिप्पणियाँ भी कीं। फिर सोने का प्रयास करने लगा आखिर मुझे अगली सुबह जल्दी दिल्ली के लिए निकलना था।
आज का दिन
आज मुम्बई और देश आतंकी हमले की बरसी को याद कर रहा है, और याद कर रहा है अचानक हुए उस हमले से निपटने में प्रदर्शित जवानों के शौर्य और बलिदान को। शौर्य और बलिदान जवानों का कर्म और धर्म है। जो जन उन से सुरक्षा पाते हैं उन्हें, उन का आभार व्यक्त करना ही चाहिए। लेकिन वह सूराख जिस के कारण वे चूहे हमारे घर में दाखिल हुए, मरते-मरते भी घर को यहाँ-वहाँ कुतर गए, अपने दाँतों के निशान छोड़ गए। देखने की जरूरत है कि क्या वे सूराख अब भी हैं? क्या अब भी चूहे घऱ में कहीं से सूराख कर घुसने की कारगुजारी कर सकते हैं? और यदि वे अब भी घुसपैठ कर सकते हैं तो सब से पहले घर की सुरक्षा जरूरी है। उस के लिए शौर्य और बलिदान की क्षमता ही पर्याप्त नहीं। घर के लोगों की एकता और सजगता ज्यादा जरूरी है। मैं दोहराना चाहूँगा। पिछले वर्ष लिखी कुछ पंक्तियों में से इन्हें ....
वे जो कोई भी हैं
ये वक्त नहीं
सोचने का उन पर
ये वक्त है
अपनी ओर झाँकने और
युद्धरत होने का
आओ संभालें
अपनी अपनी ढालें
और तलवारें
14 टिप्पणियां:
द्विवेदी सर,
दिल्ली यात्रा के बारे में आपके मुंह से सुनना अच्छा लगा। रही जहां तक आंतकवाद की बात तो
हमारी सरकार आतंकवाद के मामले में पूरी दार्शनिक है...उसका सिद्धांत सीधा है अगर आपके सामने अचानक शेर (हमारी सरकार के लिए चूहे भी शेर हैं) आ जाता है तो आप क्या करेंगे...आपने क्या करना है...करना तो जो कुछ है वो बस शेर को ही है...आप तो बस ऊपर वाले के भरोसे बैठे रहिए...किस्मत अच्छी तो बच जाएंगे नहीं तो देश की आबादी घटाने में कुछ तो मदद करेंगे हीं...
जय हिंद...
अरूण जी जैसा व्यक्तित्व बहुत कम मिलेगा, नारियल की तहर उपर से कठोर और अंदर से सरस और मुलायम मिठास देने वाला।
अरूण जी अपने काम मे व्यस्त रहे,उनका काम दिनो दिन उन्नति करे यही कामना है।
आपकी यात्रा मंगलमय हो
द्विवेदी जी स्मरण सुन कर अच्छा लगा, लेकिन काफ़ी दिन हो गये आपका राजस्थानी मे लिखा हुआ पढे हुए। मैने एक लेख पढा था आपका जिसमे आपके द्वारा राजस्थानी स्वर को हिंदी के खांचे मे बिठाना अद्भुत लगा था, एक बार फ़िर इच्छा है पढने की। आभार
फोटो बहुत बढ़िया लगाई पंगेबाज की! :)
अरूण जी की पंगेबाज़ी की कमी खलती है।अगर उनकी वापसी होती है तो ये न केवल आपके लिये मेरे लिये या कुछ खास लोगों के लिये बल्कि पूरे ब्लाग जगत के लिये बहुत ही अच्छा होगा।हम तो बस उनकी वापसी की दुआ ही कर सकते हैं।बाकि आप बड़े लोग तो हैं ही समझाने के लिये।
@ Blogger खुशदीप सहगल
भाई, सरकार तो सिस्टम बनाता है। दरअसल हमारा सिस्टम उस अवस्था में पहुँच गया है कि सरकार में पहुँच कर शेर भी चूहा हो जाता है। शेर सरकार के लिए सिस्टम बदलना होगा।
@ महाशक्ति,
आप की बात बिलकुल सही है। अरुण जी का व्यक्तित्व खिलाड़ियों का सा है। खेलते समय कोई नर्मी नहीं। लेकिन मैदान के बाहर आते ही एक दम सहृदयी और सहयोगी।
@ललित जी,
वाकई बहुत मन करता है, अपनी खुद की बोली को लिखूँ, हालांकि बहुत से पाठकों को परेशानी होती है। फिर भी मैं 14 जनवरी को एक पोस्ट अपनी बोली में अवश्य ही लिखता हूँ। इस बार थरूर वाले मामले में एक पोस्ट और लिखी थी। अब ध्यान रखूंगा। वैसा विषय आने दीजिए।
@ज्ञानदत्त G.D. Pandey
बड़े भाई, आप की जय हो, अरुण जी तो छोटे भाई हैं।
@Anil Pusadkar
अनिल जी, आप निश्चिंत रहें पंगेबाज जरूर लौटेंगे। लेकिन अभी उन्हें समय लगेगा। इस समय अपने उद्यम के लिए उन का शतप्रतिशत ध्यान केद्रित रहना आवश्यक है। एक बार उन का उद्यम स्थिरता ग्रहण कर लें, आप उन्हें अपने बीच पाएँगे।
पंगेबाज अरोडाजी के बारे सुनना अच्छा लगा. उनसे जब भी बात होती है मजा आजाता है.
रामराम.
वे जो कोई भी हैं
ये वक्त नहीं
सोचने का उन पर
ये वक्त है
अपनी ओर झाँकने और
युद्धरत होने का
आओ संभालें
अपनी अपनी ढालें
और तलवारें
अच्छी लाईन्स हैं।
आओ संभालें
अपनी अपनी ढालें
और तलवारें
यह आपने बहुत अच्छी बात लिखी है यह संकेत स्थूल नहीं है इसका यह अर्थ भी है कि वैचारिक रूप से भी हमे इतना परिपक्व होना है कि अपनी रक्षा भी कर सके और आवश्यकता हो तो आक्रमण भी ।
बहुत अच्छा लगा आपका संस्मरण ।बाकी खुशदीप जी ने कह दिया है शुभकामनायें
ये वक्त है
अपनी ओर झाँकने और
युद्धरत होने का
आओ संभालें
अपनी अपनी ढालें
और तलवारें
एकदम सही बात।
द्विवेदी जी, इस बार दिल्ली आना हो तो हमें भी बताएं।
ब्लॉग जगत में पंगेबाज जी की कमी खलती है
दिनेश जी बहुत अच्छा लगा आज क लेख ओप्र पंगेवाज जी के पंगे याद आगये अरोरा जी को नमस्ते, बाकी हम भी खुश दीप भाई की टिपण्णी से सहमत है
ज्ञानजी की टिप्पणी से असहमत! :)
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