वैसे तो कोटा संभाग के वकील हड़ताल पर हैं, लेकिन अदालत तो रोज ही जाना होता है। कोटा में स्टेशन से नगर को जाने वाले मुख्य मार्ग के एक और जिला अदालत परिसर है और दूसरी ओर कलेक्ट्रेट परिसर। बहुत सी अदालतें कलेक्ट्रेट परिसर में स्थित हैं। रोज हजारों लोगों का इन दोनों परिसरों में आना जाना लगा रहता है। पिछले 75 दिनों से वकीलों की हड़ताल के कारण लोगों की आवाजाही बहुत कम हो गयी है। आकस्मिक और अत्यंत आवश्यक कामो के अतिरिक्त कोई नया काम नहीं हो रहा है। पुराने मुकदमे जहाँ के तहाँ पड़े हुए हैं। यहाँ तक कि सुबह 10.30 बजे से दोपहर 2.00 बजे तक तो जिला अदालत परिसर के दोनों द्वार आंदोलनकारी बंद कर उन पर ताला डाल देते हैं और एक तीसरे दरवाजे के सामने उन का धरना लगा होता है। जिस से कोई भी न तो अदालत परिसर में प्रवेश कर पाता है और न ही बाहर निकल पाता है। वकील धरने पर होते हैं या फिर सड़क पर या कलेक्ट्रेट परिसर की चाय-पान की दुकानों पर। दोपहर दो बजे के बाद ही अदालतें आकस्मिक और आवश्यक कामों का निपटारा कर पाती हैं। इस से पहले वे पुराने मुकदमों की तारीखें बदलने का काम करती हैं। इन 75 दिनों में पेशी पर हाजिर न हो पाने के लिए किसी मुलजिम की जमानत जब्त नहीं की गई है और न ही कोई वारंट जारी हुआ है। नए पकड़े गए मुलजिमान की जमानतें अदालतें अपने विवेक और कानून के मुताबिक ले लेती हैं या नहीं लेती हैं। न्यायिक प्रशासन ठप्प पड़ा है, लेकिन सरकार को कोई असर नहीं है। उस के लिए समाज में न्याय न होने से कोई अंतर नहीं पड़ता।
इस क्षेत्र में हडताल के कारण छाए इस सन्नाटा पिछले तीन दिनों से टूटा है। अब यहाँ सुबह 10 बजे से ढोल बजते सुनाई देते हैं। लोग गाते-नाचते, नारे लगाते प्रवेश करते हैं। एक तरह का हंगामा बरपा है। लगता है जैसे नगर में कोई उत्सव आरंभ हो गया है। राजस्थान के 46 नगरों में आरंभ हुआ यह उत्सव नगर के स्थानीय निकायों के चुनाव का है। इन में राज्य के 4 नगर निगम, 11 नगर परिषद एवं 31 नगर पालिकाएँ सम्मिलित हैं। जिन के लिए 1 हजार 612 पार्षद चुने जाएँगे। अब तक किसी भी निकाय के लिए चुने गए पार्षद ही उन के महापौर या अध्यक्ष का चुनाव करते थे लेकिन नगरपालिका कानून में संशोधन के उपरांत अब महापौर और अध्यक्ष को सीधे जनता चुनेगी। इस तरह के लिए चुनाव कराए जाएंगे। राज्य में जयपुर के अतिरिक्त कोटा, जोधपुर, एवं बीकानेर के नगर निगमों के चुनाव होने जा रहे हैं।
कोटा में 60 वार्डों के लिए पार्षदों के पदों के लिए नामांकन भरना परसों आरंभ हुआ था। लेकिन दोनों प्रमुख दलों काँग्रेस और भाजपा द्वारा प्रत्याशियों की सूची अंतिम नहीं किए जाने के कारण पहले दिन कोई तीन-चार लोगों ने ही नामांकन दाखिल किया। दूसरे दिन भी सुबह तक प्रत्याशियों की सूची अंतिम नहीं हुई इस कारण गति कम ही रही। लेकिन तीसरे और अंतिम दिन तो जैसे ज्वार ही आ गया था। इन तीन दिनों के लिए शहर से स्टेशन जाने वाली मुख्य सड़क पर यातायात पूरी तरह रोक दिया गया था। सारा यातायात पास वाली दूसरी सहायक सड़क से निकाला जा रहा था। लेकिन आज तो स्थिति यह थी कि उस सड़क को भी दो किलोमीटर पहले के चौराहे से यातायात के लिए बंद कर दिया था। केवल छोटे वाहन जा सकते थे। शेष यातायात एक किलोमीटर दूर तीसरी समांनान्तर सड़क से निकाला जा रहा था। वैसे इस मार्ग के लिए नगर में चौथी कोई सड़क उपलब्ध भी नहीं है।
भीड़-भाड़ वाले माहौल को देख कर मैं एक बजे घर से रवाना हुआ था। लेकिन मुझे तीन चौराहों पर रोका गया और यह जानने के बाद ही कि मैं वकील हूँ और अदालत जाना चाहता हूँ मेरे वाहन को उस ओर जाने दिया गया। अदालत पहुँचा तो वहाँ चारों ओर कान के पर्दे फाड़ देने की क्षमता रखने वाले ढोल बज रहे थे। हर ढोल के साथ माला पहने कोई न कोई प्रत्याशी या तो पर्चा दाखिल करने जा रहा था या भर कर वापस लौट रहा था। रौनक थी, भीड़ थी और शोर था। इस बार नगर निकायों के चुनाव में महिलाओं को पचास प्रतिशत आरक्षण मिला है इस कारण से तीस पद तो महिलाओं के लिए आरक्षित हैं ही, कोटा में तो महापौर का पद भी महिला करे लिए आवश्यक है। इस तरह चुनी जाने वाला नगर निगम महिला बहुमत वाला होगा जिस में 31 महिलाएँ और 30 पुरुष होंगे। महिलाएँ तो अनारक्षित वार्डों से भी चुनाव लड़ सकती हैं। ऐसे में यह भी हो सकता है कि महिलाओं की संख्या और भी अधिक और पुरुष और भी कम हो जाएँ। हालांकि यह हो पाना अभी संभव नहीं है।
पर्चा दाखिल करने आई प्रत्येक महिला के साथ कम से कम पन्द्रह बीस महिलाएँ जरूर थीं। जिन में घरेलू महिलाओं की संख्या दो तिहाई से अधिक ही दिखाई दी। वे समूह में इकट्ठा चल रही थीं और पुरुषों की तरह भीड़ नहीं दिखाई दे रही थीं। वे अनुशासित लगती थीं। लगता था किसी समारोह के जलूस की तरह हों। जैसे विवाह में वे बासन लेने या माता पूजने के लिए समूह में निकलती हैं। महिलाएँ कम ही इस तरह सार्वजनिक स्थानो पर आती जाती हैं। लेकिन जब भी जाती हैं वे सुसज्जित अवश्य होती हैं। इन की उपस्थिति ने अदालत परिसर और कलेक्ट्रेट परिसर के बीच की चौड़ी सडक को रंगों से भर दिया था। तीन बजे बाद पर्चा दाखिल होने का समय समाप्त होने के बाद रौनक कम होती चली गई। चार बजते बजते तो वहाँ वही लोग रह गए जो रोज रहा करते हैं।
दोनों ही दलों के प्रत्याशियों की घोषणा से जहाँ कुछ लोगों को प्रसन्नता हुई थी वहीँ बहुत से लोग नाराज भी थे कि जम कर गुटबाजी हुई है। भाजपा में अधिक असंतोष नजर आया। भाजपा का नगर कार्यालय उस रोष का शिकार भी हुआ। वहाँ कुछ नाराज लोग ताला तोड़ कर घुस गए और सामान तोड़ फोड़ दिए जिन में टीवी, पंखे आदि भी सम्मिलित हैं। आज शाम को जब मैं दूध लेने बाजार गया तो पता लगा कि भाजपा के असंतुष्ट गुटों ने साठों वार्डों में अपने समानान्तर प्रत्याशी खड़े कर दिए हैं। अब नगर पन्द्रह दिनों के लिए चुनाव उत्सव के हवाले है। इन पन्द्रह दिनों में बहुत दाव-पेंच सामने आएँगे। आप को रूबरू कराता रहूँगा।
6 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर लगा आप का यह लेख अब महिये भी किसी से कम नही, लेकिन यह तोड फ़ोड जरुरी तो नही थी.
धन्यवाद
महिलाओं की बात से अलग...
मैं अक्सर सोचता हूं कि आखिर इन हड़ताली बकीलों की रसोई कैसे चलती है, ये कोई बंधी-बंधाई पगार वाला धंधा तो है नहीं, और दूसरे, जब से होश संभाला है इन्हें यूं ही हड़ताले करते पाया है...जब इन हड़तालों से कुछ हासिल ही नहीं होता तो फिर हड़तालें क्यों ! बात चीत का रास्ता क्यों नहीं, या फिर कोई और तीसरा नया रास्ता...
बताते रहें..जिज्ञासा रहती है.
ख़ामोश...
अदालत जारी(?) है...पर ये नेताओं की नौटंकी सुने तभी न...
जय हिंद...
आरक्षण.... अब जनता की सेवा की किसे चिंता है,बस राजनीति करो और महिला, जाति, भाषा...किसी भी बहाने से सत्ता हथिया लो॥
हड़्ताल के समय टैम-पास अच्छा होगा:)
वैसे जहाँ तक मुझे पता है ऐसे चुनाव में... बाहुबली की जगह उनकी पत्नियां खड़ी हो जाती हैं. और बात वही की वही रहती है... चुनाव प्रचार भी उन बाहुबली के नाम पर ही होता है. पर यहाँ औरतों की भीड़ देखकर लग रहा है शायद इधर हालात अलग हैं.
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